गांधीजी व्यवहारिकता में बहुत लचीले लेकिन मूल्यों के प्रति बहुत कठोर दिखाई देते हैं।

शिवकुमार शुक्ला

गांधीजी एक बहुत सधे हुए क्रांतिकारी थे। वे हर व्यक्ति के साथ अपना जुड़ाव महसूस करते थे। सभी के लिए उनमें जुड़ाव है पर एक जगह पर आकर वे कठोर भी हैं ।जहां पर तुम उसकी आस्था बदलने की कोशिश करते हो। वहां वे बहुत कठोर है। इसी लिए आस्था बदलने के मुद्दे पर गांधी पहाड़ की तरह अडिग दिखाई देते हैं। कई लोग कहते हैं कि गांधीजी बहुत जिददी थे लेकिन जब हम इसे समझने की कोशिश करते हैं तो पता चलता हैं कि गांधी उन चीजों के लिए जिद्दी हैं जहाँ कोई उनके मूल्यों को बदलने की कोशिश करे। उन जगहों पर वे बहुत लचीले हैं जहां बात व्यवहारिक हो।

गांधी लोगों से केवल इस प्रकार व्यवहार नहीं करते थे कि वे किसी समुदाय के सदस्य हैं बल्कि उनके साथ काम करने वालों का यह कहना है कि वे हर किसी से एक व्यक्ति के रूप में रिश्ता कायम करते थे। हर कोई अलग व्यक्ति है, उसकी जरूरतें अलग हैं और वे उन जरूरतों का ख्याल रखते थे।अपने आग्रहों को छोड़ते हुए। आश्रम में रहने आये बहुत से लोगों से वे कहते थे कि तुम यह करो हालांकि आश्रम का नियम यह है और आश्रम वाले इसको कभी नहीं समझेंगे लेकिन तुम अपना ख्याल छोड़ना मत। यह जो सोच है गांधी की क़ि व्यक्ति को बुनियाद मानना यह गांधी के चिंतन की एक मजबूत बुनियाद है।

एक बार एक इंग्लैंड की ईसाई लड़की गांधीजी के अहमदाबाद आश्रम पर उनसे मिलने आई लेकिन इसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि गांधीजी को पुलिस गिरफ्तार करके ले गयी। गांधी जाते जाते उस लड़की से कह गए कि तुम अपना ख्याल खुद रखना। आश्रम के नियम बहुत कठोर हैं लेकिन तुम अपना ख्याल रखना। गांधी, आश्रम के लोगों से भी कह गए कि ये लड़की जैसे रहना चाहे इसे रहने देना। आश्रम के नियम इस पर लागू मत करना। जब बहुत महीनों तक गांधीजी की जेल से रिहाई नहीं हुई तो उस लड़की ने गांधीजी को पत्र लिखा कि महात्मा जी मेरा दुर्भाग्य है कि मैं आपसे नहीं मिल सकी अब मैं वापस इंग्लैंड जा रही हूँ। गांधीजी ने जो जवाबी पत्र लिखा उसमें उन्होंने लिखा कि मुझे अफसोस है कि तुमसे मेरी मुलाकात नहीं हो सकी लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि तुम मेरे आश्रम से जब निकलोगी तो तुम एक बहुत अच्छे ईसाई की तरह वर्ताब व व्यवहार करोगी।तुम एक अच्छी इंसान बनकर मेरे आश्रम से निकलोगी।

गांधी खुद आधी धोती पहनते थे। ज्यादा ठंड पड़ती थी तो एक चादर ओढ़ लेते थे। लेकिन उन्होंने कांग्रेस की वर्किंग कमेटी में ऐसा कोई नियम नहीं बनाया कि सभी आधी धोती पहनें। गांधी के बगल में नेहरू बैठते थे जो पायजामा और अचकन पहनते थे। उसमें गुलाब का फूल भी लगाते थे। दूसरी ओर मौलाना आजाद बैठते थे और कांग्रेस वर्किंग कमेटी के एकमात्र सदस्य थे जो गांधीजी के सामने सिगार पीते थे। गांधीजी का लचीलापन देखिए कि उनके सामने कोई सिगरेट पिये इसके लिए उसको हिम्मत की जरूरत होगी क्योंकि वे तो मना नहीं करते।

एक बार नेहरू क्यूबा यात्रा पर गए वहां किसी ने उन्हें सिगार का पैकिट भेंट में दिया। क्यूबा की सिगार बड़ी बेशकीमती है। जब वे वहां से लौटकर आये तो वे गांधी को दिखाते हैं कि देखो बापू मुझे क्या मिला गिफ्ट में, और उन्होंने गांधीजी को सिगार का पैकिट दिखाया। गांधीजी ने तुरन्त पैकिट उठा लिया और कहा कि इस पैकिट को मैं अपने पास रख लेता हूँ और मौलाना को दे दूंगा, उन्हें बहुत पसंद है सिगार। गांधीजी ये ध्यान रखते हैं कि ये चीज मौलाना को पसंद है।

इसी प्रकार जब सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान सेवाग्राम आश्रम में आये तो गांधीजी ने बाजार से उनके लिए मांसाहारी भोजन मंगवाया। उन्होंने कहा कि ये आदमी रात को खाना कैसे खायेगा? इसको तो आदत है यही खाने की। जबकि आश्रम में मांसाहार वर्जित था। लेकिन सीमान्त गांधी के लिए उन्होंने इस नियम को लचीला बना दिया। व्यक्ति के बारे में कितना लचीलापन है यह समझने की जरुरत है।

महाराष्ट्र के एक बड़े नेता थे जो कांग्रेस की कमेटी में मौजूद थे। कुछ लोगों ने गांधीजी से कहा कि आपने किसको वर्किंग कमेटी में ले रखा है? ये तो शराब पीता है। तो गांधी ने पूछा कि शराब कब पीता है? रात में पीता है न। तो दिन में उससे काम लिया जा सकता है न । हर आदमी का इस्तेमाल है मेरे पास। कल को वह शराब छोड़ देगा तो मैं रात को भी उससे काम ले सकूंगा। और बड़ी जगह हो जाएगी उनके लिए। क्योंकि वे बड़े वकील भी थे। इतना लचीलापन है उनमें।

दूसरी ओर इतनी कठोरता है कि वे अपनी बात से एक इंच भी इधर से उधर होने को तैयार नहीं। दिल्ली के अंतिम उपवास के समय जब सरदार पटेल गांधीजी से कहते हैं कि आप अपना उपवास स्थगित कर दें तो वे कहते हैं कि सरदार तुम दिल्ली की कानून व्यवस्था देखो क्योंकि ये तुम्हारी नैतिक जिम्मेदारी है। ये सब बात समझना इसलिए जरूरी है कि इनके बिना गांधी को समझने में दिक्कत होगी। इसीलिए मैंने लिखा कि गांधीजी एक बहुत सधे हुए क्रांतिकारी थे। वे हर व्यक्ति के साथ अपना जुड़ाव महसूस करते थे। सभी के लिए उनमें जुड़ाव है पर एक जगह पर आकर वे कठोर भी हैं ।जहां पर तुम उसकी आस्था बदलने की कोशिश करते हो। वहां वे बहुत कठोर है। इसी लिए आस्था बदलने के मुद्दे पर गांधी पहाड़ की तरह अडिग दिखाई देते हैं। कई लोग कहते हैं कि गांधीजी बहुत जिददी थे लेकिन जब हम इसे समझने की कोशिश करते हैं तो पता चलता हैं कि गांधी उन चीजों के लिए जिद्दी हैं जहाँ कोई उनके मूल्यों को बदलने की कोशिश करे। उन जगहों पर वे बहुत लचीले हैं जहां बात व्यवहारिक हो।