हनुमान जी अतुलनीय हैं….!

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हृदयनारायण दीक्षित

भारत की देव-प्रतीति निराली है। जहाँ-जहाँ दिव्यता वहाँ-वहाँ देवता के दर्शन होते हैं। इसीलिए अनेक विद्वान भारत को बहुदेववादी कहते हैं। वस्तुतः भारत के लोग बहुदेववादी नहीं हैं। हम बहुदेव उपासक हैं। भारतीय संस्कृति और परंपरा के एक खूबसूरत देवता हैं हनुमान। वे परम भक्त का अकेला उदाहरण हैं। बुद्धिमान हैं। विवेकशील हैं। बलवान हैं लेकिन अपने आराध्य को हृदय में धारण करके चलते हैं। भारतीय चिंतन में ऐसे अनेक देवता हैं। कोई भी देवता भक्त नहीं है। हनुमान अतुलनीय हैं। सिद्धांतनिष्ठ जान पड़ते हैं। एक हाथ में ध्वज और दूसरे हाथ में वज्र लेकर सिर्फ हनुमान ही निकले। ध्वज सिद्धांत का प्रतीक है और वज्र शक्ति का पर्याय। शक्ति के बिना ध्वज को कौन महत्व देगा। जीवन में शक्ति का महत्व है। लेकिन शक्ति के साथ सिद्धांत भी चाहिए। इसी तरह सिद्धांत के साथ शक्ति अपरिहार्य है। हनुमान देव के पास शक्ति और सिद्धांत दोनों हैं। बड़े निराले देवता हैं हनुमान। संप्रति हनुमान चालीसा को लेकर चर्चा जारी है। चालीसा में देव हनुमान की स्तुति है। हनुमान चालीसा का पाठ भय दूर करने के लिए भी होता रहा है। मुझे याद आता है कि प्रारंभिक शिक्षा के लिए मुझे लगभग 10 कि0मी0 पैदल जाना पड़ता था। रास्ते में जंगल थे। देर हो जाने के कारण जंगल में डर लगता था। आचार्यों ने बताया कि हनुमान चालीसा जेब में रखो, पढो और गाओ। डर नहीं लगेगा।


हनुमान का स्मरण निर्भयदाता है। विज्ञान को महत्व देने वाले विद्वान प्रश्न उठा सकते हैं। वे आस्था आस्तिकता की प्रभाव वैज्ञानिक विश्लेषण में खोज सकते हैं। लेकिन आस्तिक बुद्धि को मानने वाले लोग हनुमान स्तुति मंें रस लेते हैं। वानर रूप हनुमान का शक्तिशाली प्रतीक वाकई आश्चर्यजनक है। विश्व सभ्यता और कला के विवेचनकर्ता हुड ने, ‘‘दि होम ऑफ हीरोज़’’ (पृष्ठ- 41) में लिखा है, ‘‘कीरीट द्वीप की मिनियन कला में हाथी दाँत की मुद्रा में एक वानर है। यह मुद्रा 2200 से 2000 ई0पू0 मानी गयी है।’’ एक अन्य विद्वान मैकॉय का विश्लेषण है कि, ‘‘सुमेर और विलम की वानर मूर्तियों से प्राचीन सिंधु घाटी की मूर्तियों से घनिष्ठता है।’’ मूर्तियाँ शून्य से नहीं पैदा होती। मूर्तिकार इसी संसार से सामग्री लेते हैं और कवि और गीतकार भी। वे ऐतिहासिक तथ्य होती हैं। कलाकार ऐसे ही ऐतिहासिक तथ्यों से प्रेरित होते हैं। वानर रूप हनुमान प्राचीन देवता हैं। बेशक उनकी चर्चा रामायण काल में ज्यादा दिखाई पड़ती है। भारत के हनुमान देवता माया और आयुर्विज्ञान के देवता बताये गये हैं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार वे सीता का पता लगाने के लिए लंका गये थे। लंका की अशोक वाटिका में उन्हें सीता के दर्शन होते हैं। वे सोचते हैं कि मैं सीता माँ से किस भाषा में बात करूँ। संस्कृत में बात करुँगा तो वह मुझे रावण का अनुचर मान सकती हैं। यहाँ वाल्मीकि जी का संकेत है कि हनुमान कई भाषाओं के जानकार थे।


मोहनजोदड़ो में वानरों की मूर्तियाँ मिलीं थीं। संभावना यह है कि हनुमान देवता के प्रतीक के प्रति श्रद्धा के कारण तत्कालीन नागरिक वानरों को पवित्र मानते रहे होंगे। वानर रूप हनुमान की उपासना वैदिक काल में भी दिखाई पड़ती है। ऋग्वेद में वर्णित एक देवता हैं वृषाकपि। संभवतः उनकी स्तुतियाँ बहुत लोग करते थे। इंद्र भी ऋग्वैदिक काल के बड़े देवता हैं। ऋग्वेद में इंद्र चाहते हैं कि स्तोता उनकी स्तुति करें। इंद्र कहते हैं कि, ‘‘उपासकों ने मुझ इंद्र की स्तुति नहीं की। वृषाकपि की ही स्तुति की है।’’ सात्वलेकर के भाष्य में इंद्र ने उन्हें अपना मित्र कहा है। इंद्र के मन में कोई ईर्ष्या नहीं है। वृषाकपि अत्यंत शक्तिशाली कपि हैं। (ऋग्वेद 10.86.1-5) कुछ विद्वानों ने लक्ष्य किया है कि पंजाब और उत्तर भारत में वानरों की पूजा की परंपरा है और दक्षिण भारत में भी। प्राचीन मिस्त्र में भी ऐसी मूतियाँ मिलीं। हनुमान देव की उपासना और लोक श्रद्धा अति प्राचीन जान पड़ती है। ऋग्वेद के रचना काल से लेकर ईसा 2022 ई॰ तक यही परंपरा दिखाई पड़ती है। परम्परा अविक्षिन्न है। सतत् प्रवाही है। इस उपासना में सांस्कृतिक निरंतरता है। इस प्रकृति का दूसरा देवता अन्य प्राचीन सभ्यताओं में नहीं दिखाई पड़ता।


भारतीय देव तंत्र प्राचीन है। यहाँ अनेक देवता हैं। लेकिन कोई भी देवता किसी दूसरे देवता की भक्ति नहीं करता। हनुमान ‘‘अतुलित बलधामा’’ हैं। वे मर्यादा पुरुषोत्तम राम के भक्त हैं। परम शक्तिशाली हैं। लंका युद्ध में लक्ष्मण को तीर लगा। लक्ष्मण मूर्छित हो गये। वैद्य ने बहुत दूर पर्वतों में उगने वाली संजीवनी औषधि को एकमात्र उपचार बताया। हनुमान पर्वत की ओर उड़े। इस उड़ने को आधुनिक संदर्भों में तेज रफ्तार चलना भी कहा जा सकता है। उन्होंने स्वयं औषधि की खोज नहीं की। पूरा पहाड़ उठा लाये। पूरे युद्ध में उनकी भूमिका अग्रणी रही। लेकिन उन्होंने अपने बल, पौरुष, पराक्रम का श्रेय श्री राम को दिया। उन्होंने श्रीराम को ही सारे परिणामों का दाता बताया है। भारत स्वाभाविक ही उनके ऊपर मोहित है। रामकथा के सभी चुनौतीपूर्ण अवसरों पर हनुमान उपस्थित हैं। वे पवन पुत्र हैं। महाषक्तिषाली हैं। लेकिन निरअहंकारी हैं। यत्र-तत्र-सर्वत्र उनकी उपस्थिति विनम्र है।


राम किष्किंधा में थे। सीता को खोज रहे थे। सुग्रीव ने श्रीराम और लक्ष्मण को आते देखा। सुग्रीव डर गये। उन्होंने श्री हनुमान का ही सहारा लिया और कहा कि हनुमान तुम ब्रह्मचारी का रूप धारण कर पता लगाओ कि ये दोनों कौन हैं। हनुमान जी ने वही किया। श्रीराम के पास पहुँचे और पूछा कि, ‘‘आप दोनों वीर इस भूमि पर किसलिये पधारे हैं?- कवन हेतु विचरहु वन स्वामी’’ आप क्यों धूप और वायु सह रहे हैं? क्या आप ब्रह्मा, विष्णु महेश में से एक हैं? या आप दोनों नर और नारायण है? क्या आप जगत के मूल कारण हैं?’’ राम ने उत्तर में अपना परिचय दिया और सीता हरण की बात बतायी। तुलसीदास के अनुसार हनुमान जी श्रीराम के चरण पकड़कर पृथ्वी पर बैठ गये। शंकर ने पार्वती को बताया कि, ‘‘हनुमान की शक्ति और श्रीराम का प्रेम शब्दों में नहीं कहा जा सकता।’’ इस तरह किष्किंधा के राजकुमार सुग्रीव और श्रीराम की मित्रता हो गयी।


भारत का लोकजीवन हनुमान में आश्वस्ति पाता है। हनुमान की उपासना करता है। पंथ निरपेक्षता को ही महत्व देने वाले इस पूरी कथा को मिथ-कल्पना कह सकते हैं। वे श्रीराम को भी लंबे समय से काव्य कल्पना ही मानते रहे हैं। उनका ध्यान दुनिया की प्राचीनतम् ज्ञान साक्ष्य ऋग्वेद की ओर नहीं जाता। लोकमान्यता की ओर भी नहीं जाता। भारत में हनुमान के लाखों मंदिर हैं। करोड़ों उनकी उपासना करते हैं। वे पूरी रामकथा के नायक होने के बावजूद अपने आराध्य को महानायक की तरह हृदय में रखते हैं। दुनिया की किसी अन्य संस्कृति में हनुमान जैसा उपास्य देवता नहीं है। हनुमान चालीसा इसी श्रद्धा का शब्द सृजन है। हनुमान जी की स्तुति का यह गायन निर्विवाद है। [/Responsivevoice]