लखनऊ जेल में खुलेआम हो रहा मानवाधिकारों का हनन

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लखनऊ जेल में खुलेआम हो रहा मानवाधिकारों का हनन।मय सबूतों के साथ की गई शिकायतों पर भी नहीं होती कोई कार्रवाई।मारपीट-उत्पीडऩ से आजित आकर चार बंदी आत्महत्या करने को हुए विवश।

राकेश यादव

लखनऊ। जेल नम्बरदारों के लिए जेल अफसर भगवान होते है। अफसरों के कहने पर नम्बरदारों बंदियों की पिटाई करना तो मामूली बात है अफसरों के कहने पर नम्बरदार बंदियों की हत्या तक कर सकते हैं। जेल में मानवाधिकार का हनन की पराकाष्ठा पार हो गई है। बंदियों का उत्पीडऩ, पिटाई और वसूली जेल में आम बात है। जेल के बाहर दीवार पर दर्ज मानवाधिकार के निर्देश सिर्फ दिखावा है। यह बात सात माह तक जेल की सलाखों में रहकर बाहर आए पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने खास बातचीत में कही। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में उन्होंने मय सबूत के कई शिकायतें की हैं शिकायतों पर कार्रवाई की बात तो दूर कई को तो संज्ञान में ही नहीं लिया गया है।

पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने बताया कि जेल में प्रवेश के दौरान जेल प्रशासन के अधिकारियों ने जामा तलाशी के बाद उन्हें पांच नंबर हाते में भेज दिया। इस हाते में पशुपालन घोटाले के आरोपी अरविंद सेन पहले से बंद थे। उन्होंने कहा कि उन्हें इसी हाते में रहने दिया जाए किंतु जेल अफसरों ने अगले ही दिन उन्हें चार नंबर हाता (जो काफी दिनों से बंद पड़ा हुआ था) कि सफाई कराकर उन्हें एक सजायाफ्ता हत्यारोपी कैदी के साथ बंद कर दिया। इस हाते के आसपास भारी जलभराव होने की वजह से मच्छरों का प्रकोप काफी अधिक था। तमाम मिन्नतों के बाद भी अफसरों ने उनकी बैरक नहीं बदली। इस हाते में कैंटीन तक नहीं आती थी। इसकी वजह से उन्हें दैनिक उपयोग की वस्तुएं मंगवाने के लिए प्रधान बंदीरक्षक से अनुरोध करना पड़ता था। जेल में पांच रुपए का पारले जी बिस्कुट दस रुपये में और 10 रुपये का टूथपेस्ट 20 रुपए में दिया जाता था। यही नहीं 19 रुपए वाला दूध 40 रुपये में मिलता था। उन्होंने बताया कि घुटने तक भरे पानी से गुजर कर उन्हें भोजन लेने जाना पड़ता था।

सात माह तक एक ही हाते में रहने वाले अमिताभ ठाकुर ने बताया कि जेल अफसरों ने पांच बार गाली-गलौज और एक बार तो हाथापाई तक की। एक बार तो जेलर योगेश कुमार ने नम्बरदार बंदियों ने दोनों हाथ पकड़वाकर उनकी पिटाई करने का भी प्रयास किया। उन्होंने बताया कि जब वह भी संभ्रात व्यक्ति है इस पर प्रधान बंदीरक्षक ने अभद्रता करते हुए कहा कि जेल में आने वाला कोई व्यक्ति संभ्रात नहीं होता है। अमिताभ ठाकुर ने बताया कि उन्होंने इस अमानवीय व्यवहार, उत्पीडऩ व मारपीट की शिकायत एनएचआरसी (राष्टï्रीय मानवाधिकार आयोग )के वरिष्ठï अधिकारियों से की है। इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने बताया कि जेल प्रशासन की उगाही, उत्पीडऩ व अवैध वसूली से आजित आकर चार बंदियों ने आत्महत्या तक कर ली।

पूर्व आईपीएस अधिकारी ने बताया कि जेल अस्पताल में सिर्फ सुविधा शुल्क देने वालों को ही रखा जाता है। उन्हें डिप लगी होने के बाद भी बैरक में भेज दिया गया था। सच यह है कि जेल अस्पताल में मोटी रकम देने वाले स्वस्थ बंदियों को ही रखा जाता है। बीमार बंदी बैरक में ही दम तोड़ देते है। उन्होंने बताया कि जेल में बंदियों को पैसा रखना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इस प्रतिबंध के बाद भी बंदियों के पास मोटी रकम रखी रहती है। इसी रकम से वह कैंटीन में मनमाफिक दामों में बिकने वाली खानपान की वस्तुएं लेकर जेल काट रहे हैं। यही नहीं मुंहमांगी रकम देने वाली बंदियों को ही फोन की सुविधा प्रदान की जाती है। जेल के नंबरदार बंदियों को अफसरो से मिलने तक नहीं देते हैं। उन्होंने बताया कि जेल के अंदर चल रहे भ्रष्टाचार की मय सबूत उन्होंने कई शिकायतें की है। इन शिकायतों पर कार्रवाई करना तो दूर की बात अधिकारी संज्ञान में ही नहीं लेते हैं। जेल के अंदर मानवाधिकारों का खुला उल्लघंन होता है। जेल में सिर्फ धनाड्य बंदियों की पूछ होती है गरीब बंदी तो भोजन के लिए तरस रहा है। उधर इस संबंध में जब लखनऊ परिक्षेत्र के डीआईजी जेल शैलेंद्र मैत्रेय से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि उन्हें बयान के लिए सात मई को बुलाया है। सबूत मिलने के बाद ही वह इस बारे में कुछ बता पाएंगे।