खाद मिली त खेती लहरबे करि

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जनार्दन यादव

हम हमेशा मुस्लिम समाज के एक ही पक्ष की चर्चा करते हैं।वह भी इस अंदाज में जैसे यह पूरा समाज़ मध्य युग से बाहर आया ही नहीं और बाकी सब तो उत्तर आधुनिकता में पहुँच गये।दुनिया का ऐसा कोई समाज़ नहीं है जिसमें मध्ययुगीन अवशेष न मिले।आधुनिकता के चैम्पियन बने यूरोपियनों के भी अपने अंधविश्वास रहे।नंग-धडंग नागा साधुओं को लेकर कोई आपका मूल्यांकन करे तो आपको कैसा लगेगा?


मुस्लिम समाज के भीतर से महान् हस्तियों की एक लंबी कतार है। भारतीय मुसलमान के दूसरे खंड में कुछ पर काम भी किया है। 1979 पाकिस्तान के भौतिकविद अब्दुस सलाम को गाॅड पार्टिकल्स के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। उसका श्रेय उन्होंने लाहौर के सनातन धर्म काॅलेज के प्राध्यापक अनिलेन्द्र गांगुली को दिया। उनसे मिलने कोलकाता आये और उनके पाँवों पर नोबेल पुरस्कार रख कहा-सर इसे आप दीजिए। मैंने महान् क्रिकेट खिलाड़ी जहीर अब्बास के कुछ संस्मरण पढ़े हैं। इतने मार्मिक कि अगर आपके भीतर दिल हो तो पढ़कर मर्माहत हो जाय।हमने अनगिनत मुस्लिम शायरों और नामानिगारों को ,लेखकों और विचारकों को पढ़ा है। उनकी महानता विश्व में शीर्ष पर है।भारत में ही इनकी संख्या बहुत अधिक है।मैं आज भी नियमित संगीत सुनता हूँ। मुस्लिम कलाकारों की गायकी आपको मुग्ध कर देगी। किसी भारतीय संगीतकार या गायक से उनकी तन्कीद कराकर देखिये तो?दोनों में कोई नहीं करेगा। क्यों?इस क्यों पर सोचिये।

तैयारी 2024 की…! देश को मुगालते में रखकर अपना स्वार्थसिद्धि करना कोई वर्तमान सरकार से सीखें — अब सेना में भी संविदा पर सैनिक भर्ती होंगे। उनको “अग्निवीर“ कहा जाएगा। उनकी नौकरी चार साल चलेगी यानी ज़िंदगी चार दिन की नहीं चार साल की हो जाएगी।बड़े सरकार ने 17 महीने में 10 लाख नौकरियाँ देने का वादा भी किया है। जानकारों के अनुसार बीते दो साल में दो करोड़ लोग नौकरी खो चुके हैं। वादा तो हर साल दो करोड़ नौकरी देने का था।जनमानस की सोच को सलाम,इतने के बाद भी प्रश्नाकुल नहीं होते।


बावजूद मीडिया से लेकर फेसबुक तक मुसलमानों की ऐसी तस्वीर खींची जाती है जैसे ये आदम युगीन हो।आज भी मेरे संपर्क और दोस्तों में ऐसी मेधा वाले मुस्लिम हैं,कुछ तो युवा है जिनकी प्रतिभा और समझदारी से मैं भी सीखता हूँ । उसी तरह हम हिंदू बिरादरी के डाॅन और हत्यारों से,लुटेरों से लुंपन मूर्खों की ही चर्चा करूँ तो क्या यह हिन्दुओं की वास्तविक तस्वीर होगी? वास्तविक मूल्यांकन होगा?हम सबने अच्छी बातों,अच्छे और योग्य लोगों की चर्चा ही छोड़ दी है। हमने मुस्लिम समाज को टारगेट कर लिया है और बुरी तरह छिद्रान्वेषी हो गये हैं। यह बहुत ही गलत है। आप उस समाज की खूबियों को जानेंगे,उसकी चर्चा करेंगे तो वे भी आप पर यकीन करेंगे। फिर आपकी तन्कीद भी वे स्वीकार करेंगे और समझेंगे। बस यह कि पूर्वाग्रह मत पाले रहिये। बिना समझे-बूझे न बोला कीजिए। यह तो तभी संभव होगा जब आपकी उनसे दोस्ती होगी,बातचीत होगी,आना-जाना होगा। उनसे और उनके लिखे साहित्य से परिचय होगा।उनको समझ पाइयेगा और वे आपको समझ पायेंगे।संकीर्ण सोच से निजात पाना कोई ज्यादे कठिन नहीं है।