भारतीय जीवनशैली में प्रकृति का महत्व

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[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”इस समाचार को सुने”] हमारे शास्त्रों एवं वेदानुसार, जीवन को सुचारु रूप से चलाने वाली प्रकृति ही हमारी जननी है और इस प्रकृति को जीवन देकर सुचारू रूप से चलाने वाली वह परम शक्ति ही विधाता, ईश्वर, या सर्वोपरि सत्ता है।कल तक जो पश्चिमी देश सिर्फ तकनीकी सभ्यता में विश्वास करते थे और तकनीकी युग को आगे बढ़ाने के लिए प्रकृति का नृशंस दोहन कर रहे थे, आज “समस्त प्राणियों के जीवन की एकमात्र जननी प्रकृति को मानते हुये “विश्व पर्यावरण दिवस” मना कर दुनियाँ को जागरूक कर रहे हैं। जबकि भारत आदिकाल से प्रकृति का महत्व को जानते हुये इसके उचित संरक्षण के लिये प्रकृति के कण-कण को पूजनीय बताकर आँवला नवमी, तुलसी पूजा, वट सावित्री, गंगा दशहरा, इत्यादि पर्वों द्वारा इसकी रक्षा करता आ रहा है। यद्यपि कुछ मिथ्यावाचक इन परम्पराओं को तर्कहीन, मिथ्या और अंधविश्वास बता कर देश की युवा पीढ़ी को हमारी अनमोल धरोहर से दूर कर रहे हैं।

हमारे शास्त्रों एवं वेदानुसार, जीवन को सुचारु रूप से चलाने वाली प्रकृति ही हमारी जननी है और इस प्रकृति को जीवन देकर सुचारू रूप से चलाने वाली वह परम शक्ति ही विधाता, ईश्वर, या सर्वोपरि सत्ता है। श्रीमद्भगवत्गीता के अनुसार “निम्नोन्नतं वक्ष्यति को जलानाम् विचित्र भावं मृगपक्षिणां च।माधुयॆमिक्षौ कटुतां च निम्बे स्वभावतः सवॆमिदं हि सिद्धम्।। “अर्थात यह प्रकृति स्वयं में एक रहस्य है पानी को गहराई और पर्वतों को ऊंचाई किसने सिखाई, पशु एवं पक्षियों में विचित्रता किसने सिखाई, गन्ने में मधुरता और नीम में कड़वापन कहां से आया, यह सब स्वभाव प्रकृति के द्वारा दिए गए हैं, इसमें कोई भी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।

भारतीय जीवनशैली में ईश्वर से पहले प्रकृति पूजनीय है। वेद-पुराण, शास्त्र, उपनिषद आदि में जीवनदायिनी प्रकृति की दोहन से रक्षा हेतु सात्विक एवं धार्मिक दायित्वों का उल्लेख है और विभिन्न नदियां विशेषकर गंगा मां के समान पूजनीय हैं। आज स्थिति इतनी दयनीय है कि जिस गंगा माँ को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अपना ही स्वरूप बताया है, अत्यधिक जीर्ण-शीर्ण हालत में है।

भारतीय आध्यात्मिक जीवनशैली में ॠग्वेद से लेकर अथर्ववेद और रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्य, उपनिषद तथा भिन्न-भिन्न शास्त्रों में धार्मिक कृत्यों द्वारा प्रकृति एवं पर्यावरण को दोहन से बचाने के लिए मानव को विभिन्न स्तर पर शपथ दिलाई गई है। इसके बावजूद, जहां आज आधुनिक सभ्यता के पोषक अपने भौतिक लाभ के लिए भारत की हरी-भरी धरती को वृक्ष विहीन, वन विहीन करने में लगे हुए हैं, तो वहीँ अज्ञानी एवं रूढ़िवादी लोग अन्धविश्वास के कारण अपनी माँ समान प्रकृति नदी, वृक्ष, परिवेश, इत्यादि को अस्वच्छ कर प्रताड़ित कर रहे हैं। इसी अज्ञानता के कारण आज न जाने कितने क्षेत्र जलविहीन होकर जल संकट से जूझते नजर आ रहे हैं। न जाने कितनी नदियां, विशेषकर गंगा, पवित्र गंगाजल के स्थान पर गंदाजल का ढेर बनती जा रही हैं।

भारतीय जीवनशैली के उल्लंघन का परिणाम –

वैदिक काल में भी जब देवताओं एवं असुरों द्वारा अमृतपान की लालसा में समुद्र मन्थन कर प्रकृति का निर्दयतापूर्वक दोहन करने से सम्पूर्ण पृथ्वी विचलित हो गई तो अमृत के साथ-साथ हलाहल विष भी उत्पन्न हुआ। तब भगवान शिव ने इसी प्रदूषणरूपी हलाहल का पान कर सृष्टि को प्रदूषण मुक्त किया था। किन्तु आज के प्रदूषण से उत्पन्न जहरीली गैस रूपी हलाहल लाइलाज रोग एवं मृत्यु रूपी रौद्रावतार शिव के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित है। हमें भारतीय जीवनशैली में वर्णित प्रकृति के नियमों को उस परम सत्ता के रचनाकार के दृष्टिकोण से समझना चाहिए। उसकी दृष्टि में पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी जीव उनकी संतान हैं, फिर चाहे उनका निवास जल, थल, या, नभ, कुछ भी हो और इतनी सरल सी बात खुद को सर्वबुद्धिमान एवं सर्वशक्तिशाली समझने वाले मनुष्य की समझ में नहीं आती।

भारत के भावी स्मार्ट शहर, विदेशी जीवन शैली और नवीन प्रौद्योगिकी पर आधारित हैं। बेहतर होगा अगर वे भारतीय जीवन शैली के अनुसार हों, साथ ही वह जीवन-अनुभवों पर आधारित हो। क्योंकि भारत के जीवनानुभव, हर प्रांत में भिन्न-भिन्न हैं। भगवान् सर्वव्यापी है इस बात पर लगभग सभी भारतीयों का विश्वास है। लेकिन भारत के भावी स्मार्ट शहर भी ईश्वर के सामान सर्वव्यापी होंगे, यह समझना गलत होगा। आने वाले कल की टेक्नोलॉजी के मामले में जागरुक होने के साथ-साथ सजग और सतर्क भी होने की आवश्यकता है।भविष्य के स्मार्ट शहरों में इमारतें और सड़कों के साथ-साथ कंप्यूटर के नेटवर्क का भी विचार किया जाएगा। एक इमारत के लोग दूसरे स्थान के लोगों से वीडियो-कॉऩ्फ्रेंसिंग के द्वारा बात कर सकेंगे। विद्यार्थी शायद स्कूल कॉलेज न जाकर, घर पर ही शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे। [/Responsivevoice]