क्या यह लोकतंत्र का मजाक नहीं है?

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महबूबा मुफ्ती और ममता बनर्जी जैसी नेताओं से देश को सावधान रहने की जरुरत।

कश्मीर में एक विधानसभा में 20 हजार मतदाता और जम्मू में 2 लाख। क्या यह लोकतंत्र का मजाक नहीं है?

एस0पी0 मित्तल

म्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने के लिए 24 जून को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में जो बैठक हुई उसमें जम्मू कश्मीर के 8 राजनीतिक दलों के 14 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। बैठक के बाद पीडीपी की नेता और पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती ने अनुच्छेद 370 को बहाल करने और दुश्मन देश पाकिस्तान से बात करने की वकालत की। भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री पद का सुख भोगने वाली महबूबा का मानना है कि पाकिस्तान की मध्यस्थता के बगैर जम्मू कश्मीर की समस्या का हल नहीं हो सकता है।

हालांकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 24 जून की बैठक में भाग नहीं लिया,लेकिन उन्होंने भी पाकिस्तान को खुश करने वाला बयान दिया। ममता ने कहा कि जम्मू कश्मीर के लोगों की आजादी नहीं छीननी चाहिए। अनुच्छेद 370 को हटाने से दुनिया में भारत की बदनामी हुई है। सवाल उठता है कि जब जम्मू कश्मीर में शांति कायम हो रही है तथा पाकिस्तान को आतंकी गतिविधियों का अवसर नहीं मिल रहा है, तब क्या ऐसे बयान दिए जाने चाहिए? अब कांग्रेस पार्टी भी मानती है कि 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में हालात बदले हैं।

अब किसी आतंकी के जनाजे में कश्मीरियों की भीड़ नहीं जुटी है तथा सुरक्षाबलों पर पत्थर भी नहीं फेंके जा रहे हैं। 370 के निष्प्रभावी होने के बाद जम्मू और कश्मीर घाटी खास कर मुस्लिम महिलाओं को अनेक अधिकार मिले हैं तथा सरकारी योजनाओं का भी लाभ मिलने लगा है। यही वजह है कि अब आम कश्मीरी सुकून के साथ रह रहा है। ममता बनर्जी को यदि कश्मीरियों की आजादी की इतनी ही चिंता है तो उन्हें एक बार पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के मुसलमानों से संवाद करना चाहिए।

यहां के मुसलमान पाकिस्तान की सेना के जवानों के बूटों से कुचले जा रहे हैं। हमारे कश्मीर में तो महबूबा मुफ्ती खुलेआम पाकिस्तान का समर्थन करती है, इससे ज्यादा और क्या आजादी चाहिए? ममता बनर्जी और महबूबा मुफ्ती जैसी नेता यह समझ लें कि अब तक जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र का मजाक उड़ रहा था। कश्मीर में एक विधानसभा क्षेत्र में सिर्फ 20 हजार मतदाता और जम्मू में 2 लाख मतदाता। ऐसा क्यों हो रहा था, यह महबूबा और ममता दोनों अच्छी तरह समझती है, क्या यह भेदभाव समाप्त नहीं होना चाहिए? अब परिसीमन के माध्यम से यही भेदभाव समाप्त किया जा रहा है।

अब हर विधानसभा क्षेत्र में समान मतदाता होंगे तो विधायक भी मतदाताओं की सहमति से चुने जाएंगे। जो उम्मीदवार लोकप्रिय होगा, वो चुनाव जीतेगा। महबूबा और ममता भी जानती है कि 370 के हटने के बाद जम्मू कश्मीर के हालात बेहतर हुए हैं, लेकिन अपने तुच्छ राजनीतिक स्वार्थ की खातिर पाकिस्तान परस्त बयान दे रही हैं। 370 के हटने पर जिस पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक भी मुस्लिम देश का समर्थन नहीं मिला, उसी पाकिस्तान को अब महबूबा और ममता बनर्जी तवज्जो दे रही है।

महबूबा और ममता बनर्जी के बयानों को आगे रखकर पाकिस्तान को भारत पर हमला करने का अवसर मिलेगा। भले ही पश्चिम बंगाल के लोगों ने ममता को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाया हो, लेकिन आम बंगाली भी कश्मीर पर दिए ममता के बयान से सहमत नहीं होंगे। ममता को जब देश के साथ खड़े होने की जरूरत है, तब ममता पाकिस्तान के समर्थन में बोल रही हैं। माना कि प्रधानमंत्री मोदी से ममता की नाराजगी है, लेकिन राजनीतिक नाराजगी को देश की एकता और अखंडता से नहीं निकालना चाहिए।