सरकार से सवाल पत्रकार गिरफ्तार

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सरकार से सवाल पत्रकार गिरफ्तार
सरकार से सवाल पत्रकार गिरफ्तार

विचार तो स्वतंत्र होते हैं,न चाहते हुए भी तरह तरह के विचार मन में उतपन्न हो जाते हैं। कलमकार अपने विचार और भावों को शब्दों में अपनी कलम से लिखते रहें हैं, किंतु उन्हे भी कभी-कभी सोचना पड़ता है कि ऐसा लिखें कि न लिखें।पत्रकार के सवाल पूछने पर गिरफ्तारी मतलब चौथे स्तम्भ को कमजोर करने की कोशिश। कलम और कैमरें पर पहरा लगाना चाहतीं हैं सरकार। सरकार से सवाल पत्रकार गिरफ्तार

विनोद यादव

संभल। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को लगातार कमजोर करने की कोशिश की जा रहीं हैं । निष्पक्षता सिर्फ नाममात्र की रह गयी हैं वास्तव में सरकार अपनी बुराइयों को सुनना नहीं चाहती। यहीं वजह हैं आज कल और कैमरे दोनों पर पहरा हैं मेरा मानना हैं वास्तव में अब देश में “आपातकाल लागू है, जो भी सवाल पूछेगा उसे जेल में डाल दिया जाएगा।” ऐसे ही एक घटना संभल के पत्रकार संजय राणा के साथ हुई जिनकों जेल भेज दिया गया। उन्हें मोटे रस्से में बांधकर पुलिस थाने ले गई। उनका अपराध यह था कि उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री गुलाब देबी से गांव के विकास को लेकर सवाल पूछा था। सरकार से सवाल पत्रकार गिरफ्तार

हालांकि उन्हें जमानत मिल गई है लेकिन सवाल इस बात का हैं कलम सिर्फ सत्ता की जी हुजूरी करेगी या आम जन सरोकार के मुद्दे को भी उठाएगीं। पत्रकार ने सरकार के मंत्री से पूछा,गांव में एक भी बारातघर नहीं है, ना ही यहां पर सरकारी शौचालय है। आपने कहा था कि मंदिर से लेकर इस रोड को पक्का कराऊंगी, अभी तक ये रास्ता कच्चा है। बाइक से क्या पैदल चलने वाले लोग परेशान हो जाते हैं। आपने देवी मां के मंदिर की बाउंड्री का वादा भी किया था। अभी तक उस पर भी कार्रवाई नहीं की,आपके दफ़्तर पर गांव के लोग गए,वहां भी सुनवाई नहीं हुई।उस दौरान “मंत्री के साथ मौजूद किसी महिला ने टोका, “आप समस्या रख रहे हो या अपना प्रचार कर रहे हो...?

जब संसद में विपक्ष की आवाज कम हो जाती है तो सड़क पर आंदोलन शुरू होता है। जब किसी देश में विपक्ष कमजोर होता है तो तानाशाहों का जन्म होता है। क्या अब देश में तानाशाहों ने जन्म ले लिया है। क्या अब क्रांति होगी। जैसा अब नज़र आता है कि कैमरा और कलम पर बंदूक का पहरा लग गया है.? ऐसे ही सरकार अब सब जगह पहरा लगाना चाहती है। विचार परिवर्तन होते ही आंदोलन की शुरुआत होती है। क्या अब सबका विचार परिवर्तित होने लगा है? क्या अब सबके दिमाग में एक ही इच्छा है कि इस सरकार से पिंड कैसे छुड़ाया जाए.?आज सरकार किसान,नौजवान,युवा,और मजदूर के खिलाफ कार्य कर रही है। शायद वह किसी संविधान को नहीं मानती है। जो सरकार के हर गलत कार्यों का विरोध करते रहें आज वह भी उनकी प्रसंशा क्र रहे हैं।

“पत्रकार ने कहा, “जब तक जनता की आवाज़ आप तक नहीं पहुंचेगी। आप दावा करते हो कि हमने काम किया है। लेकिन एक गांव में कोई काम ही नहीं हुआ तो हम क्या कहेंगे …? “पत्रकार गांव के लोगों से पूछता है,’आपके गांव में विकास हुआ है’लोगों का जवाब मिला, ‘कोई काम नहीं हुआ है’। मंत्री भड़क उठी और बोली “तेरी निगाहें मैं बहुत देर से पहचान रही थी। जब तू वहां खड़ा था तब भी मैं तेरी निगाहें पहचान रही थी। जो बातें तूने कहीं हैं, ये सारी बातें ठीक हैं। अभी समय नहीं निकला है। गांव कुंदनपुर तू भूल गया। कुंदनपुर भी मेरा, बुद्धनगर भी मेरा है। ये दोनों ही गांव मेरे हैं, मैंने जो भी वादे किए हैं, मैं उन्हें पूरा करूँगी। जो काम तुमने बताए हैं, सभी काम होंगे।

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कलमकार गोपेंद्र सिन्हा लिखते हैं कि कलम पर पहरा नहीं होना चाहिए……

कोई उकेर दे ना अंदर की सच्चाई।तकनीकी जमाने में मुमकिन कुछ भी है भाई।
कोई राज छुपा है गहरा। कलम पर बैठ गया है पहरा।

बढ़ रही महंगाई। मुमकिन वाली रहनुमाई।
निजाम हुआ है बहरा।कलम पर बैठ गया है पहरा।

अर्थव्यवस्था में तंगहाली आई।चौतरफा शुरू हुई खिंचाई।
जख्म हुआ है गहरा।कलम पर बैठ गया है पहरा।

रोजगार का तंगहाली। मंद पड़ने लगी खुशहाली।
फिर भी उसे दिख रहा हरा हरा। कलम पर बैठ गया है पहरा।

जो अपने इतिहास को भूल जाए। उसे भला कौन समझाए।
अक्ल नहीं है बिल्कुल जरा। कलम पर बैठ गया है पहरा।

बच्चों ने नमक रोटी खाई। क्यों लिख दिया सच्चाई।
उसका रोम-रोम है लहरा। कलम पर बैठ गया है पहरा।

किसी के ना होते सियासतदान। कलम के डर से खड़ा रखते कान।
मौका पाते घाव देते गहरा। कलम पर लग गया है पहरा।

कार्यक्रम के खत्म होने के बाद पत्रकार के खिलाफ एक भाजपा कार्यकर्ता से मारपीट के आरोप में केस दर्ज हुआ और उसे गिरफ़्तार कर लिया गया। वहां मौजूद चश्मदीदों ने निष्पक्ष दस्तक को बताया कि वहां पर कोई झगड़ा नहीं हुआ था। अब सवाल है कि पत्रकार को गिरफ्तार क्यों किया गया…? क्या पत्रकार ने कोई गलत बात कही थी….? क्या सवाल पूछना अपराध है….? अगर वह आम युवक होता तब भी क्या सवाल पूछना अपराध है….? क्या भारत में लोकतंत्र नहीं है….? एक बड़े प्रदेश की मंत्री में एक सवाल सुनने भर का धैर्य न हो तो इसे क्या कहेंगे….? क्या यह घटना दूसरे पत्रकारों में भय पैदा नहीं करेगी….? क्या यह सरकार लोगों को गूंगा बना देना चाहती है….? पूरे देश का मीडिया चरणवंदना में लगा है।कहीं छिटपुट सवाल भी बर्दाश्त नहीं हैं….? आपातकाल कैसा होता है….? फासीवाद कैसा होता है….? तानाशाही किसे कहते हैं…? क्या इन्हीं हरकतों की वजह से भारत प्रेस फ्रीडम के मामले में ​फिसड्डी नहीं बना हुआ है….? क्या यह लोकतंत्र की हत्या करने वाली मानसिकताओं का नतीजा नहीं है….? ऐसे तमाम सवाल आज उभर कर आते हैं शिक्षा मंत्री गुलाबदेवी से पत्रकार का सवाल करना पड़ा भारी लगी हथकड़ी।

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पंडित जवाहरलाल नेहरु की सरकार में महाकवि बाबा नागर्जुन ने इंदिरा गांधी की मौजूदगी में सुनाया था। कविता ” देश बेचकर नेहरू जी फूले नहीं समाते हैं लेकिन ओ दौर दूसरा था किसी के कविता लिखने से सवाल पूछने से आंदोलन करने से उस समय की सरकारों की भावनाएं आहत नहीं होती थीं न नोटिस और सीबीआई ,ईडी ,इन्कमटैक्स के अधिकारी भेजे जाते थें।” लेकिन आज के समय में महिमामंडन की राजनीति हैं। इनकी चरणवंदना करतें रहें तो आप अच्छे हैं नहीं किए तो आप देशभक्त नहीं हैं। ये साबित करने में तनिक देरे नहीं लगता। आज हिंदी पत्रकारिता का अस्तर काफी हद तक गिर गया हैं । जिसको लेकर सरकारें कभी चिंतित नहीं रहीं। लेकिन अगर आपने हाशिए के समाज शोषित, वंचित पीडि़त की समस्या को लेकर इनसे सवाल पूछ लिया आपने गुनाह कर दिया। अब आप को नोटिस,पुलिस,बुलडोजर सभी का सामना करना होगा। मेरा मानना हैं पत्रकारों के ऊपर इस तरह से हो रहें उत्पीड़न को लेकर माननीय न्यायालय को अपना कड़ा रुख अख्तियार करना चाहिए। जिससे कलम और कैमरें पर पहरा न लगाया जा सकें। सरकार से सवाल पत्रकार गिरफ्तार