काशी विश्वनाथ यात्रा दर्शन

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काशी विश्वनाथ यात्रा दर्शन
काशी विश्वनाथ यात्रा दर्शन

विश्व की सबसे पुरानतम शहरों में से एक है काशी। उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित यह एक पौराणिक नगरी है। काशी का उल्लेख वेद,पुराण, महाभारत व रामायण में भी किया गया है। काशी वैसे तो काशी विश्वनाथ के लिए जाना जाता है। लेकिन इसके अलावा यहां काशी कोतवाल, संकट मोचन, दुर्गा मंदिर, तुलसी मानस मंदिर भी है। वहीं, घाट की बात की जाए तो दशाश्वमेध घाट व असी घाट की ख्याति देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है। यहां दूर-दूर से लोग भ्रमण करने के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि निर्माण से पहले ब्रह्मा जी काशी आए थे और यज्ञ किया था, जहां पर उन्होंने यज्ञ किया था, आज उसी जगह को दशाश्वमेध घाट के नाम से जाना जाता है।

पौराणिक मान्यता है कि काशी में लगभग 511 शिवालय प्रतिष्ठित थे। इनमें से 12 स्वयंभू शिवलिंग, 46 देवताओं द्वारा, 47 ऋषियों द्वारा, 7 ग्रहों द्वारा, 40 गणों द्वारा तथा 294 अन्य‍ श्रेष्ठ शिवभक्तों द्वारा स्थापित किए गए हैं। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी में स्थित विश्‍वनाथ का शिवलिंग बहुत ही महत्वपूर्ण है। काशी को बनारस और वाराणसी भी कहते हैं। शिव और काल भैरव की यह नगरी अद्भुत है जिसे सप्तपुरियों में शामिल किया गया है। दो नदियों ‘वरुणा’ और ‘असि’ के मध्य बसे होने के कारण इसका नाम ‘वाराणसी’ पड़ा। काशी तीर्थ दर्शन के लिए जा रहे हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर

“काशी विश्वनाथ के दर्शन करने जा रहे हैं तो काशी के कोतवाल कहे जाने वाले बाबा भैरवनाथ के दर्शन जरूर करें। उनके दर्शन किए बगैर तीर्थ अधूरी ही मानी जाती। काशी विश्‍वनाथ में दर्शन से पहले भैरव के दर्शन करना होते हैं तभी दर्शन का महत्व माना जाता है। उल्लेख है कि शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। मुख्‍यत: दो भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव और दूसरे बटुक भैरव।”

बनारस में भारत माता मंदिर, गंगा घाट बनारस, संत रविदास उद्यान, काशी विश्वनाथ मंदिर, तुलसी मानस मंदिर, सठ योगिनी मंदिर, राणसी फन सिटी वॉटर पार्क, शाश्वमेध घाट जैसे और भी कई स्थान है जहाँ पर घूम सकते हैं।

बनारस में परिवार के साथ घूमने की जगह- अस्सी घाट,भारत माता मंदिर,दशाश्वमेध घाट,दुर्गा मंदिर काशी,काशी विश्वनाथ मंदिर,मणिकर्णिका घाट,मन मंदिर घाट,रामनगर किला बनारस।

मंदिर में सामान्य दर्शन का समय सुबह 04: 00 बजे से 11:00 बजे तक है। भगवान् शिव की भोग आरती का समय सुबह 11 : 25 से 12 :20 तक है। काशी विश्वनाथ मंदिर में मुफ्त दर्शन का समय दोपहर 12 : 00 बजे से शाम 07 : 00 बजे तक है। मंदिर में सप्त ऋषि आरती समय शाम 07:00 बजे से रात 08:15 तक है।

शहर से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित दशाश्वमेध घाट पहुंचे। तत्पश्चात यात्री सुबह-सुबह गंगा में डुबकी लगाएं और अपने दिन की शुरुआत काशी विश्वनाथ के दर्शन व आरती के साथ करें, जो सुबह 4 बजे की जाती है। इसके बाद गोदौलिया, भेलुपुर होते हुए दुर्गाकुंड पहुंचे और मां दुर्गा (माता कुष्मांडा देवी) व तुलसी मानस मंदिर के दर्शन करें। दुर्गाकुंड स्थित मां कुष्मांडा देवी का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। वहीं, तुलसी मानस मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां श्रीराम चरित मानस के सातों कांड यहां के संगमरमर के पर्थरों पर अकिंत है। इसके बाद दुर्गाकुंड से होते हुए पदमपुरी कॉलोनी पहुंचे और संकट मोचन (हनुमान जी) के दर्शन करें।

हिंदू धर्म में, मंदिर को पूजा के सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में से एक माना जाता है। हिंदू लोककथाओं के अनुसार, मंदिर को पूरे जीवनकाल में एक बार अवश्य जाना चाहिए। गंगा नदी में एक पवित्र डुबकी के साथभगवान विश्वनाथ के ‘दर्शन’ को ‘मोक्ष’ (मोक्ष) का प्रमुख मार्ग माना जाता है। इस कारण से, लोग अपने जीवन काल में कम से कम एक बार इस स्थान की यात्रा करना चाहते हैं।

64 योगिनी मंदिर जो केवल दो ही जगह पर स्थित है। उसमें से एक जगह काशी है। यह मंदिर गंगा घाट के नजदीक ही है, इसे चौसठ योगिनी माता का मंदिर कहा जाता है।यहां पर दर्शन करने के लिए भक्त अवश्य पहुंचते हैं। ऐसा कहा जाता है, जो इस मंदिर के दर्शन एक बार कर लेता है, उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में स्थित नए काशी विश्वनाथ मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं और वहां घूमने का आनंद ले सकते हैं। इसके बाद शाम को असी घाट पहुंचे, जो संकट मोचन मंदिर से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जहां आपको आसानी से नाव मिल जाएगी, जिसकी सहायता से आप घाटों का भ्रमण कर सकते हैं। नाव की मदद से आप हरिश्चंद्र घाट, दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट व अन्य घाटों को घूमें। शाम 7 के करीब दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती का आयोजन किया जाता है, जो काफी प्रसिद्ध है. नाव से ही आरती का आंनद लें।दूसरे दिन की शुरुआत सुबह-सुबह कचौड़ी जलेबी के साथ करें। उसके बाद शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित सारनाथ जाएं। ऐसी मान्यता है कि सारनाथ में ही भगवान बुद्ध ने पहली बार उपदेश दिया था। यही कारण है कि इस जगह को बहुत और जैन धर्म में भी बहुत ही पवित्र नगर माना गया है। इसके बाद शहर से करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित काशी कोतवाल बाबा काल भैरव के दर्शन कर लें।

काशी विश्वनाथ मंदिर बनारस में कई सहायक मंदिरों के अलावा एक मंडप और एक गर्भगृह है। गर्भगृह में काले पत्थर से बना एक लिंग है और एक चौकोर चांदी की वेदी में फर्श के केंद्र में स्थापित है। मंदिर के दक्षिणी प्रवेश द्वार पर एक के बाद एक पंक्ति में तीन मंदिर हैं, जो विष्णु, विरुपाक्षी गौरी और अविमुक्त विनायक को समर्पित हैं। मंदिर में संलग्न पाँच लिंगों का एक समूह है जिसे नीलकंठेश्वर मंदिर कहा जाता है। अविमूका विनायक मंदिर के ठीक ऊपर शनिश्चर और विरुपाक्ष मंदिर दिखाई देते हैं। अविमुक्तेश्वर नामक एक और लिंग है जो प्रवेश द्वार के पास दाईं ओर देखा जाता है। कुछ लोगों का सुझाव है कि उस स्थान पर मूल ज्योतिर्लिंग विश्वनाथ नहीं बल्कि अविमुक्तेश्वर ज्योतिर्लिंग है।

त्रिशुल की नोक पर बसी है शिव की नगरी काशी-पुरी में जगन्नाथ है तो काशी में विश्वनाथ। भगवान शिव के त्रिशुल की नोक पर बसी है शिव की नगरी काशी। कहते हैं कि गंगा किनारे बसी काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशुल की नोक पर बसी है जहां बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक काशी विश्वनाथ विराजमान हैं। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से मोक्ष मिल जाता है।

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंगकाशी में स्थित है और शिव विश्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध काशी भगवान शंकर को अत्यंत प्रिय है। शास्त्रों में कहा गया है कि जब पृथ्वी जल (प्रलय) में डूब गई थी तो यह स्थान हमेशा के लिए नष्ट हो गया था। ऐसा इसलिए है क्योंकि भगवान शिव ने इस स्थान को अपने त्रिशूल से धारण किया है। जो यहां आकर मरते हैं, वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव यहां मरने वाले को तारक मंत्र देते हैं। वे यहीं निवास करते हैं और मुक्ति तथा सुख के दाता हैं। जो विश्वेश्वर की भक्ति और पूजा करता है वह अपनी सभी इच्छाओं को प्राप्त करता है और जो लगातार उनके नाम का पाठ करता है वह सभी सिद्धियों को प्राप्त करता है और अंत में मुक्त हो जाता है। काशी में उत्तर में दुर्कारखण्ड, दक्षिण में केदारखण्ड, मध्य में विश्वेश्वर खण्ड स्थित है। इसमें विश्वनाथ स्थित हैं। काशी विश्वनाथ का मूल ज्योतिर्लिंग उपलब्ध नहीं है। मुगल आक्रमण के परिणामस्वरूप पुराने मंदिर को नष्ट कर दिया गया और औरंगजेब ने इसके स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण किया। विश्वेश्वर की प्राचीन मूर्ति ज्ञान-वापी में स्थित है।