जानें माँ गंगा का उद्गम

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माँ गंगा का उद्गम भागीरथी गोमुख से हुआ है। यह स्थान हिमालय के गढ़वाल में स्थित हैं। गंगा नदी के उद्गम स्थल की ऊंचाई 3812 मीटर है।माँ गंगा के उद्गम स्थल पर गंगा माता को समर्पित एक बेहतरीन मंदिर है। भागीरथी एक छोटे से गुफानुमा मुख पर अवतरित होती है,घाटी का मूल पश्चिमी ढलान की संतो पन्थ की चोटियों में है।गंगा नदी कई अन्य सहायक नदियां भी हैं। अलकनंदा की सहायक नदी धौली विष्णु गंगा और मंदाकिनी है। महाकुंभ लगने वाले स्थान प्रयाग में धौली गंगा और विष्णु गंगा का संगम होता है।रुद्रप्रयाग में अलकनंदा मंदाकिनी से मिलती हैं। 2000 किलोमीटर का संकरा पहाड़ी रास्ता तय करने के बाद गंगा नदी ऋषिकेश के रास्ते होते हुए प्रथम बार मैदानी इलाके को हरिद्वार में स्पर्श करती हैं।

हम कह सकते हैं कि गंगा नदी की महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ भागीरथी और अलकनंदा हैं। जब ये दोनों नदियाँ देवप्रयाग में मिलती हैं, तो पवित्र नदी गंगा का निर्माण होता है और यह स्थान देवप्रयाग संगम के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें कोई संदेह नहीं इस तीर्थ स्थल का अपना महत्व है।धार्मिक स्थलों में से एक स्थल वाराणसी है जहाँ पूजा-पाठ और भक्ति के रंग में सब रंगे होते हैं। मंदिर की घंटियाँ भक्त को ईश्वर तक पहुँचाती है। गंगा की पवित्र धारा सब पर अपना आर्शीवाद बिखेरती चलती है। सूरज डूबते ही हर शाम यहाँ गंगा आरती होती है और पुजारियों के हाथ से घूमते बड़े-बड़े दिये जैसे शाम को जगमगा देते हैं।अगर आप धार्मिक प्रवृत्ति के हैं तो यहाँ आकर अपनी भक्ति को पूरा कीजिए। भारत में पर्यटन करते समय यहाँ अवश्य जाएं।

भागीरथ ने अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार किया। भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रण किया क्योंकि अंतिम संस्कार की राख को गंगा जल में प्रभावित करना था जिससे भटकती हुई आत्माएं स्वर्ग में स्थान प्राप्त कर सके। भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए ब्रह्मा की घोर तपस्या की ब्रह्मा प्रसन्न होकर गंगा पृथ्वी पर भेजने के लिए तैयार हो गए और साथ में पाताल लोक जाने का भी आदेश दे दिया था।

भारत की पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित वाराणसी एक प्राचीन और धार्मिक नगरी है, जिसे काशी और बनारस के नाम से भी संबोधित किया जाता है। पौराणिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से यह एक समृद्ध स्थल है, जहां भ्रमण के लिए साल भर देशी-विदेशी श्रद्धालु और पर्यटकों का तांता लगा रहता है। यहां के मुख्य आकर्षणों में गंगा घाट और काशी विश्वनाथ मंदिर शामिल है। अस्सी घाट पर आयोजित होने वाली गंगा आरती में शामिल होने के लिए रोजाना श्रद्धालुओं का भारी हुजूम उमड़ता है। एक शानदार अवकाश के लिए यह एक आदर्श स्थल है।

2525 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली यह नदी अनेकों जीवन अपने जल के माध्यम से जीवित रखने में कारगरजीवन दायिनी के रूप में है। गंगा नदी दिव्य महत्वपूर्ण और उपयोगी है। नदी का निर्मल जल पाप नाशक के रूप में भी उपयोगी है। गंगा नदी को माता का दर्जा दिया जाता है।श्रद्धालुओं का अपार प्रेम और विश्वास ही है,जिसके कारण देश के तमाम हिस्सों में महाकुंभ में लाखों से भी अधिक की संख्या में श्रद्धालु पतित पावनी माता गंगा के निर्मल जल में डुबकी लगाने आते हैं।गंगा नदी भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर 2525 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए उत्तराखंड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदर बन तक विशाल भू भाग को सिंचित करती है।

माँ गंगा पवित्रता और दिव्यता के लिए सदा पूजनीय है। माँ गंगा के रग-रग में अनेकों देवी देवता विराजमान है।गंगा नदी का स्वच्छंद बहता हुआ निर्मल स्वच्छ जल अनेकों निर्जीव को जीवन प्रदान करता है। पतित पावनी माँ गंगा का जल सिंचाई, स्नान, कल कारखानों, घरेलू कार्य और पीने के पानी के रूप में काम आता है।गंगा नदी कई पहलुओं से महत्वपूर्ण है। धार्मिक महत्ता से यह नदी पावन,निर्मल और दिव्य है।