जाने…आरटीई अधिनियम क्या है….?

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किसी भी देश की ताकत और भविष्य उस देश के बच्चे होते है। ऐसे में बच्चो के बालपन में उनका अच्छे से शिक्षण मिलना बहुत जरूरी है, ताकि आगे आने वाले समय में देश के लिए अच्छे नागरिक बन सके। पहले के जमाने में शिक्षण का स्तर बिगड़ चुका था। अमीर के बच्चे ही अच्छी पढ़ाई कर पाते थे तो वहीं दूसरी ओर गरीब बच्चो को पढ़ाई नहीं हो पा रही थी।

आरटीई क्या है….? भारत के संविधान (86वां संशोधन, 2002) में आर्टिकल-21ए को सम्मिलित किया गया है। इसके अंतर्गत 6 से 14 साल के सभी बच्चों को उनके नजदीक के सरकारी स्कूल में नि:शुल्‍क और अनिवार्य शिक्षा देने का प्रावधान है।

संविधान के आर्टिकल 21(A) में 6 से 14 बर्ष तक के बच्चों के लिये अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा देने का प्रावधान किया गया है।सविंधान के आर्टिकल 21(A) को ही RTE Act कहा जाता है।86 वें संशोधन द्वारा 21 (A) में प्राथमिक शिक्षा को सब नागरिको का मूलाधिकार बना दिया गया है. यह 01 अप्रैल 2010 को जम्मू -कश्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में लागु हुआ।

आरटीई अधिनियम  में अंकित “नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा” शब्द का अर्थ

नि:शुल्‍क शिक्षा– का तात्‍पर्य यह है कि किसी बच्‍चे जिसको उसके माता-पिता द्वारा स्‍कूल में दाखिल किया गया है, को छोड़कर कोई बच्‍चा, जो उचित सरकार द्वारा समर्थित नहीं है, किसी किस्‍म की फीस या प्रभार या व्‍यय जो प्रारंभिक शिक्षा जारी रखने और पूरा करने से उसको रोके अदा करने के लिए उत्‍तरदायी नहीं होगा।नि:शुल्क शिक्षा शब्द से संविधान का तात्पर्य यह है कि 6 से 14 वर्ष के बच्चों से किसी भी प्रकार की फीस या अन्य शुल्क नहीं लिए जाएंगे।इसके अलावा RTE एक्ट के लागू होने पर 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को यूनिफार्म, बुक, ट्रांसपोर्टेशन या मीड-डे मील के लिए सरकारी स्कूलों में कोई खर्च नहीं देना होगा।

इस एक्ट के अंतर्गत 6 से 14 साल के बच्चों को अगली क्लास में जाने से न रोका जाएगा और न ही उन्हें स्कूल से निकाला जा सकता है।यह कानून हर बच्चे को शिक्षा पाने का अधिकार देता है। यह कानून उपयुक्त सरकारों के लिए इस बात को सुनिश्चित करना अनिवार्य करता है कि प्रत्येक बच्चा प्राथमिक शिक्षा हासिल करे।कानून यह आदेश देता है कि निजी शैक्षणिक संस्थानों को 25 फीसदी सीटें कमजोर तबके के बच्चों के लिए आरक्षित रखना होगा।

अनिवार्य शिक्षा– उचित सरकार और स्‍थानीय प्राधिकारियों पर 6-14 आयु समूह के सभी बच्‍चों को प्रवेश, उपस्थिति और प्रारंभिक शिक्षा को पूरा करने का प्रावधान करने और सुनिश्चित करने की बाध्‍यता रखती है।इससे भारत अधिकार आधारित ढांचे के लिए आगे बढ़ा है जो आरटीई अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार संविधान के अनुच्‍छेद 21-क में यथा प्रतिष्‍ठापित बच्‍चे के इस मौलिक अधिकार को क्रियान्वित करने के लिए केन्‍द्र और राज्‍य सरकारों पर कानूनी बाध्‍यता रखता है।

आरटीई अधिनियम क्यों जरूरी है….?

यह विधेयक प्राईवेट स्कूलों को यह आदेश देता है कि निर्धन छात्रों के लिए प्रत्येक कक्षा में 25 फीसदी सीटें आरक्षित रखनी होगी।आरटीई एक्ट के लागू होने से पहले देशभर में 6 से 14 वर्ष के तकरीबन 80 लाख बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित थे। इन बच्चों को वर्ष 2015 तक प्राथमिक शिक्षा दिलाने का लक्ष्य रखा गया था ।

आरटीई Act का महत्व

आरटीई Act को भारत में लागू करने के बाद हमारा देश भी 135 देशों की सूची में शामिल हो गया जहां बच्चों के लिए अनिवार्य तथा मुफ्त शिक्षा का प्रावधान किया गया है।आरटीई Act के अंतर्गत विकलांग बच्चों को 18 वर्ष तक मुफ्त शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी।

आरटीई के तहत प्रवेश के लिए पात्रता….?

आरटीई अधिनियम  के तहत प्रवेश पाने की पात्रता के बारे में कुछ जानकारी नीचे दी गई है शिक्षा का अधिकार अधिनियम  के तहत सभी निजी स्कूलों को उन बच्चों के लिए 25% सीटें आरक्षित करने का आदेश देता है जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं।

एक परिवार जिसकी कमाई रु3.5 लाख या उससे कम है तो वे आरटीई अधिनियम के तहत सीटों के लिए आवेदन कर सकते हैं। अनाथ, विशेष आवश्यकता वाले बच्चे, प्रवासी श्रमिकों के बच्चे और सड़क के श्रमिकों के बच्चे आरटीई अधिनियम के तहत प्रवेश के लिए पात्र हैं।

आरटीई अधिनियम  का उल्लंघन करने का दंड –

 शिक्षा का अधिकार अधिनियम  2009 के अंतर्गत 6-14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है लेकिन यदि कोई इसका उल्लंघन करता है तो दंड की भी व्यवस्था की गई है जिसका विवरण निम्न है-

यदि निजी स्कूल 6-14 वर्ष की उम्र वाले गरीब बच्चों के लिए 25% सीटे आरक्षित नहीं करता या इस कोटे के अंतर्गत स्कूल में दाखिल हुए बच्चे से फीस लेता है तो बच्चे से वसूली गयी फीस से 10 गुना अधिक जुर्माना स्कूल पर लगाया जाएगा।

यदि किसी स्कूल की मान्यता रद्द कर दी गई है फिर भी संबंधित स्कूल को संचालित किया जा रहा है तो उस पर एक लाख रूपये का अतिरिक्त जुर्माना लगाया जाएगा।साथ ही इसके बाद के हर दिन का दस हजार रुपए अतिरिक्त जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान किया गया है।

आरटीई अधिनियम  के अंतर्गत यदि कोई भी स्कूल बच्चों की स्क्रीनिंग करता है या माता-पिता का इंटरव्यू लेता है तो उस पर 25,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा।यदि जुर्माना लगने के बाद भी स्कूल इस गलती को दोहराते हैं तो जुर्माने की रकम दोगुनी कर दी जाएगी अर्थात संबंधित स्कूल से 50,000 रुपए तक का जुर्माना वसूल किया जाएगा।

आरटीई अधिनियम से जुड़ी जरूरी बातें

  1.  RTE Act में यह व्यवस्था की गई है कि शिक्षक ट्यूशन नहीं पड़ा सकते हैं।
  2. यदि किसी बच्चे का पहले स्कूल में दाखिला नहीं हुआ है तो वह बच्चा अपनी आयु वर्ग के हिसाब से दाखिला करवा सकता है।
  3. इस अधिनियन के अंतर्गत प्राथ्मिक कक्षाओं में छात्रों और शिक्षकों के मध्य 1:3 का अनुपात तय किया गया है।
  4. इसके अलावा उच्च प्राथमिक स्तर पर छात्रों और शिक्षकों के मध्य 35:1 का अनुपात रखा गया है। अर्थात 35 बच्चों पर एक शिक्षक की तैनाती करना अनिवार्य है।
  5. स्कूलों में स्कूल निगरानी स्मीति का निर्माण किया जाएगा।
  6. 6 से 14 साल के बच्चों से बाल-मजदूरी नहीं कराई जाएगी। अर्थात उनसे किसी भी प्रकार की नौकरी नहीं कराई जाएगी।
  7. स्कूल मैनेजमेंट कमेटी के अध्यक्ष बच्चों के अभिभावक ही होंगे।

आरटीई अधिनियम में निम्‍नलिखित प्रावधान है-

किसी पड़ौस के स्‍कूल में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने तक नि:शुल्‍क और अनिवार्य शिक्षा के लिए बच्‍चों का अधिकार।यह स्‍पष्‍ट करता है कि ‘अनिवार्य शिक्षा’ का तात्‍पर्य छह से चौदह आयु समूह के प्रत्‍येक बच्‍चे को नि:शुल्‍क प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने और अनिवार्य प्रवेश, उपस्थिति और प्रारंभिक शिक्षा को पूरा करने को सुनिश्चित करने के लिए उचित सरकार की बाध्‍यता से है।

नि:शुल्‍क का तात्‍पर्य यह है कि कोई भी बच्‍चा प्रारंभिक शिक्षा को जारी रखने और पूरा करने से रोकने वाली फीस या प्रभारों या व्‍ययों को अदा करने का उत्‍तरदायी नहीं होगा।यह गैर-प्रवेश दिए गए बच्‍चे के लिए उचित आयु कक्षा में प्रवेश किए जाने का प्रावधान करता है।

यह संविधान में प्रतिष्‍ठापित मूल्‍यों के अनुरूप पाठ्यक्रम के विकास के लिए प्रावधान करता है और जो बच्‍चे के समग्र विकास, बच्‍चे के ज्ञान, संभाव्‍यता और प्रतिभा निखारने तथा बच्‍चे की मित्रवत प्रणाली एवं बच्‍चा केन्द्रित ज्ञान की प्रणाली के माध्‍यम से बच्‍चे को डर, चोट और चिंता से मुक्‍त बनाने को सुनिश्चित करेगा।

बच्चे देश का भविष्य होते हैं। उन्हीं पर भविष्य में देश की उन्नति निर्भर होती है। उन्हें पूर्ण रूप से शिक्षित करना पालकों का ही नहीं देश की सरकार का भी कर्तव्य है और इसके लिए सरकार कई कार्यक्रम और योजनाएं बनाती है।

ऐसी ही एक योजना है अनिवार्य शिक्षा जिसे क्रियांवित करने के लिए केंद्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम बनाया।शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने से 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को न तो स्कूल फीस देनी होगी, न ही यूनिफार्म, बुक, ट्रांसपोर्टेशन या मीड-डे मील जैसी चीजों पर ही खर्च करना होगा।

बच्चों को न तो अगली क्लास में पहुँचने से रोका जाएगा, न निकाला जाएगा । न ही उनके लिए बोर्ड परीक्षा पास करना अनिवार्य होगा ।शिक्षा का अधिकार कानून के तहत सरकारी टीचरों को गैर-शैक्षणिक कार्यों के लिए नियुक्त किया जाना प्रतिबंधित है,शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकार का दर्जा देने के साथ ही इसे मूल कर्त्तव्यों में शामिल कर अभिभावकों का कर्त्तव्य बनाया गया है ।

जो पालक अपने बच्चों बड़े निजी स्कूलों में पढ़ाने में असमर्थ हैं, उन्हें इस अधिनियम का लाभ मिल रहा है। अच्छे स्कूलों में उनके बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, लेकिन इस बात पर बहस जारी है कि कुछ निजी संस्थान इस अधिनियम के विरोध में भी हैं।

यह भी चर्चा का विषय है कि इस अधिकार के तहत बच्चों को भी प्रवेश तो मिल गया, लेकिन जो अन्य स्कूली खर्च हैं। उन्हें कैसे वहन करेंगे। खैर, जो भी हो यह अधिनियम शिक्षा की दिशा में एक मिल का पत्‍थर साबित हो रहा है।इस अधिनियम द्वारा राज्य सरकार, बच्चों के माता-पिता या संरक्षक सभी का दायित्व तय किया गया है तथा उल्लंघन करने पर अर्थदण्ड का भी प्रावधान है ।