जानें क्या है शिवलिंग का वास्तविक अर्थ….?

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सोम प्रकृति की सृजन शक्ति है
सोम प्रकृति की सृजन शक्ति है

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हृदयनारायण दीक्षित

वाराणसी ज्ञानवापी वाद मे शिवलिंग की चर्चा है। गैरजानकार शिवलिंग का वास्तविक अर्थ नही जानते। भारतीय ज्ञान धर्म परंपरा मे लिंग का अर्थ प्रतीक है। भारत रत्न डा० वामन पांडुरंग वामन काणे ने धर्म परंपरा पर विश्वविख्यात ग्रंथ धर्मशास्त्र का इतिहास लिखा है। उन्होने शिवलिंग को शिव प्रतीक बताया है। (धर्मशास्त्र का इतिहास खंड 4 पृष्ठ 1346) लिंग का अर्थ जनेन्द्रिय नही है। हीगल प्रख्यात चिन्तक थे। उन्होने लंदन से प्रकाशित ‘फिलास्फी आफ फाइन आर्ट‘ मे लिखा है ‘‘प्रतीक प्रारम्भ मे एक विशेष प्रकार का साइन या चिन्ह होता है। इसके प्रति भाव जुड़ता है। तब प्रतीक बनता है‘‘। सी०जी० जंुग प्रतिष्ठित मनोवैज्ञानिक थे। उन्होने ‘‘कंट्रिब्यूशंस टू एनालिटिकल साइकोलोजी‘‘ मे प्रतीकों की व्याख्या की है। उन्होने प्रतीक निर्माण को सांस्कृतिक कर्म बताया है। लोकमान्य तिलक ने भी ‘गीता रहस्य‘ मे प्रतीक का अर्थ बताया है,‘‘प्रतीक यानी प्रति-इक। प्रति का अर्थ प्रत्यक्ष-हमारी ओर और इक का अर्थ है-झुका हुआ। प्रतीक हमको प्रिय लगने वाले किसी पदार्थ,रूप य्ाा आकार का विकल्प है। सौन्दर्यशास्त्र के विद्वान् डा० कुमार विमल ने लिखा है,‘‘उपासना के क्षेत्र मे उपास्य पर चिन्ह, पहचान,अवतार, अंश या प्रतिनिधि के तौर पर आई हुई नाम रूपात्मक वस्तु को प्रतीक कहा जाता है।‘‘ शिवलिंग शिव प्रतीक है। कह सकते है शिव का प्रतिनिधि।


प्रतीक एक तरह से प्रतिनिधि है। विधायकों,सांसदों को जनप्रतिनिधि कहते है। जन की संख्या बड़ी है। जनतंत्र मे सबकी भागीदारी आदर्श मानी जाती है लेकिन संपूर्ण जन प्रत्यक्ष भागीदारी नही कर सकते। वे अपने प्रतिनिधि चुनते है। प्रतिनिधि सभी जनो के प्रतीक है। शिव उपासना का क्षेत्र एशिया के बड़े भाग तक विस्तृत रहा है। शिव का सामान्य अर्थ कल्याण है। देवरूप शिव करोड़ो की आस्था है। वे वैदिक काल के पहले से उपास्य हैं। हम उन्हे देख नही सकते। इसलिए उनका प्रतीक गढ़ा गया शिवलिंग। शिवलिंग अर्थ शिव प्रतीक। भारतीय चिंतन मे लिंग शब्द का प्रयोग सूक्ष्म शरीर के लिए भी हुआ है। शंकराचार्य ने ईशावास्योपनिषद के भाष्य (मन्त्र 17) मे लिंग का प्रयोग सूक्ष्म शरीर के अर्थ मे किया है। उक्त मन्त्र की पंक्ति है,‘‘वायुरलिनममृतं थेदं श्समंात शरीरं-अब मेरी प्राणवायु विश्व मे विद्यमान वायु से मिले और शरीर भस्म हो।‘‘ यह प्रार्थना मृत्यु के समय की है। शंकराचार्य का भाष्य है,‘‘मेरी प्राण वायु स्थूल शरीर को त्यागकर अमर वायु से मिले। कर्म और ज्ञान से संस्कारित लिंग शरीर बाहर निकले। स्थूल शरीर भस्म हो जाए।‘‘ यहा प्रत्यक्ष शरीर से भिन्न एक लिंग शरीर का भी अस्तित्व है। हमारी ज्ञान परंपरा में तीन शरीर माने गए हैं। पहला प्रत्यक्ष स्थूल शरीर। इसके भीतर लिंग शरीर है। 5 ज्ञानेन्द्रियां, 5 कर्मेन्द्रियां, 5 प्राण, मन और बुद्धि 17 तत्वो से बना है लिंग शरीर। लिंग शरीर पुनर्जन्म मे नया स्थूल शरीर पाता है। तीसरा कारण शरीर कहा जाता है।


उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से प्रकाशित ‘हिन्दू धर्म कोष‘ मे भी लिंग शब्द का अर्थ प्रतीक अथवा चिन्ह बताया गया है। सभी भाषाओं मे विस्तीर्ण व्यापक को संक्षिप्त कहने के लिए प्रतीक शब्द या चिन्ह हैं। लोक कल्याण को व्यक्त करने के लिए स्वास्तिक चिन्ह है। राष्ट्र व्यापक सत्ता है। राष्ट्रध्वज राष्ट्रभाव का प्रतीक है। राष्ट्रगान राष्ट्रगीत भी हैं। शिव सर्वव्यापी हैं। विराट हैं। चिंतन ध्यान मे विराट को समेटना कठिन है। प्रतीक के माध्यम से ध्यान व उपासना मे सरलता होती है। परम्परा प्रत्यक्ष स्थूल शरीर के अलावा एक लिंग (सूक्ष्म प्रतीक) शरीर भी मानती है। इसी तरह संपूर्ण अस्तित्व का भी एक प्रत्यक्ष स्थूल शरीर होता है। यह जगत अस्तित्व का प्रत्यक्ष शरीर है। ऋग्वेद के पुरुष सूक्त का ‘पुरुष‘ प्रत्यक्ष है। इसके भीतर जगत का लिंग शरीर है। वेदो मे यह हिरण्यगर्भ है। यह जगत का सूक्ष्म शरीर है। श्वेताश्वतर उपनिषद मे कहते है ,‘‘रूद्र से हिरण्यगर्भ उत्पन्न हुआ। ऋग्वेद (5-42-1) मे कहते हैं,‘‘हम नमस्कारो से रूद्र की उपासना करें।‘‘ उपासना की गहन अनुभूति मे सृष्टि का कण कण शिव हो जाता है। उपासना के लिए विग्रह प्रतीक की आवश्यकता होती है। पूर्वजो ने लिंग/प्रतीक विग्रह की कल्पना की। लिंग जनेन्द्रिय नही है। इसके लिए संस्कृत मे शिश्न शब्द है। इसकी उपासना निंदित थी। ऋग्वेद(7-21-5) मे शिश्न उपासकों को मार भगाने की स्तुति है।

शिवलिंग भगवान शिव का चिह्न हैं। शिवलिंग उनका निर्गुण निराकार स्वरूप है। शिवलिंग भगवान शिव का प्रतीक जो भगवान शिव के परब्रह्म रूप को दर्शाता जब भी मैं शिवलिंग पर जल चढ़ा था तो मुझे उनके परब्रह्म रूप का आभास होता उस आनंद का आभास होता है पूरा शिवलिंग इस बात को दर्शाता है कि किस तरह प्रकृति में जीवात्मा या ईश्वर यह रूप समाया हुआ है।शिवलिंग का जो ऊपर का भाग है वह भगवान शिव के जीवात्मा रूप को बताता है जो सभी लोगों में विद्यमान है और शिवलिंग के नीचे का योनि भाग हमारे इस भौतिक रूप प्राकृतिक रूप का प्रतीक है इस बात को दर्शाता है कि किस तरह हमारे इस बेजान शरीर में सचेतन जीवात्मा प्रवेश करती है।


शिव की उपासना प्राचीन है और लिंग या प्रतीक उपासना भी। शिव में जीवन जगत् के सभी आयाम हैं। यजुर्वेद के 16वें अध्याय मे रूद्र उपासना है। कहते है कि ‘‘वे रूद्र शिव हैं। वे प्रथम प्रवक्ता है। नीलकण्ठ हैं। वे सभारूप है, सभापति भी हैं। सेना है, सेनापति भी हैं। वे ग्राम गली मे है, राजमार्ग मे भी है। वे कूप नदी मे हैं। वे वायु प्रवाह, सूर्य चंद्र वास्तु और प्रलय मे हैं।‘‘ यहां घुलोक स्थित, अंतरिक्ष स्थित, पृथ्वी मे व्याप्त रूद्र को नमस्कार किया गया है। वे रूद्र शिव हैं। लिंग प्रतीक शिव उपासना अति प्राचीन है। मार्शल ने हड़प्पा खोदाई मे मिली मूर्तियों के आधार पर लिखा है कि ‘‘इससे निश्चित रूप से प्रमाणित होता है कि लिंग पूजा का उद्भव भारत मे आर्यों के आगमन से पूर्व हुआ‘‘। मार्शल आर्यों को विदेशी आक्रमणकारी मानते थे। यह सही नही है लेकिन उनके निष्कर्ष मे लिंग प्रतीक की उपासना अति प्राचीन है। आर्य आक्रमण का सिद्धांत महाझूठ है हड़प्पा सभ्यता वैदिक सभ्यता का विस्तार थी। ऋग्वेद,यजुर्वेद,अथर्ववेद मे शिव उपासना के उल्लेख है। शिव भारतीय देवतंत्र के निराले देवता है।


भारतीय मनीषा ने शिव को हरेक रूप मे देखा है। रस और आनंद पाया है। नृत्य उत्कृष्ट कला है। स्वाभाविक रूप में यह आनंद के अतिरेक से प्रकट होता है। भरतमुनि का नाट्य्ा दुनिया का अनूठा ग्रंथ है। भरत ने शिव को नृत्य का प्रथम रचनाकार बताया है। नृत्य आनंदरस की भाव पूर्ण दैहिक अभिव्यक्ति है। भरतमुनि ने एक सूत्र मे कहा है कि ब्रह्मा ने शिव से भरत के नाटक देखने का आग्रह किया। शिव ने नाटक देखे और कहा,‘‘संध्या के समय मैने जब नृत्य करते हुए नृत्य का निर्माण किया तब मैने इसे अंगहारों से जोड़ते हुए और भी सुन्दर बनाया है। तुम इन अंगहारों का नाटक की पूर्व रंग विधि मे प्रयोग करो‘‘। भरतमुनि के अनुसार रोचक अंगहारों से युक्त शिव को नाचते देखकर पार्वती भी नाचीं।‘‘ महाभारत-अनुशासन पर्व मे भी शिव नृत्य का वर्णन है। शिव का नृत्य सर्वसुलभ है। यह बड़े बड़ो का मनोरंजन नही है। शिव नृत्य उल्लास मे गणो को भी सम्मिलित करते है – हँसते गायते, च वे नृत्यते च मनोहरम्/बाधयत्यति बाध्यानि विचित्राणि गणैमुताः। अथर्ववेद मे शिव शक्ति को अनेकशः नमन है- ‘‘हमारी ओर आती शिवशक्ति, हमारी ओर से लौटती शिवशक्ति, हमारे निकट उपस्थित शिव शक्ति, हमारे पास खड़ी शिव शक्ति को सब तरह नमस्कार है। बावजूद इसके कुछ विद्वान शिव उपासना को आयातित बताते है। यह सरासर झूठ है। लिंग प्रतीक शिव उपासना से भारतीय वांग्मय भरा पूरा है। शिव उपासना का जन्म और विकास भारत में हुआ। यहां से एशिया के बड़े भूभाग मे विस्तृत और व्यापक हुआ।

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