जानें क्या है वैदिक विवाह पद्धति व उन्नति..?

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सिर्फ कोसें नहीं कुछ अच्छाइयों की नकल करें।

“वैदिक विवाह पद्धति व उन्नति”

चौ0 लौटनराम निषाद

पिछड़ी,दलित समाज के कुछेक बन्धु कहते हैं कि वेद हम लोगों के लिए नहीं है।स्वयं हम भी वेद,पुराण आदि को नहीं मानता,पर उसमें यदि कुछ उचित लगता है और तर्क की कसौटी पर खरा उतरता है तो उसको अपनाने में कोई हर्ज नहीं।ब्राह्मण,क्षत्रिय, वैश्य आदि सवर्ण जातियाँ अपने गोत्र व फिरके में वैवाहिक रिश्ता नहीं करती हैं।माना कि वेद हमारे लिए लिए नहीं है,पर वेदोक्त कुछ पद्धतियां वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उचित हैं तो उसको अपनाने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए।हमारे शूद्र वर्ण की सबसे बड़ी बुराई अपने ही कुरी,फिरके, गोत्र व खाप में वैवाहिक रिश्ता करने की है,जो हमारे टूट-फूट व कमजोरी का सबसे बड़ा कारण हैं।हमने में ही छोटा-बड़ा बनने बनाने में परेशान हैं,अपने ही भाई को नीच कहते फिरते हैं।पिछड़े वर्ग की कुछ प्रमुख जातियों यथा-यादव,कुर्मी,निषाद, लोधी,कोयरी,पाल आदि से अभी नहीं कह रहा कि आप पिछड़े-दलित वर्ग की सभी जातियों में विवाह करें,पर अपनी जाति-उपजाति के कुरियों, खापों,फिरकों में तो करनस शुरू करें।आग्रह यह है कि शुरू ही न करें,अनिवार्यता स्थापित करें।हमें वेद की एक बात बहुत अच्छी लगती है,वह है वैदिक विवाह पद्धति।सृष्टि की निर्मात्री स्त्री/मातृशक्ति है।अतः हम लोगों को विवाह संस्कार वैदिक व्यवस्थानुसार करना चाहिए।इससे हमारी एकता,बन्धुता व गोत्रीय/उपजातीय प्रेम-सौहार्द्र मजबूत होगा।

विवाह संस्कार के विषय में मनुस्मृति के तृतीय अध्याय के पंचम श्लोक में इस प्रकार उल्लेख है-

असपिंडा च या मातुरसगोत्रा च या पितुः। सा प्रशस्ता द्विजातीनां दारकर्मणि मैथुने।।
(मनुस्मृति-3/5)
मनुस्मृति के अध्याय 3 के पाँचवें श्लोक में बताया गया है कि माता की सात पीढ़ी तक की या पिता के गोत्र की जो कन्या न हो,वह पत्नी बनाकर सन्तानोत्पत्ति के योग्य होती है।अर्थात जो कन्याय माता की 7 पीढ़ियों में न हो और पिता की सगोत्री न हो,उसी कन्याय को पत्नी बनाना उत्तम है।क्योंकि इस सूत्र के अनुसार ही विवाह कर सन्तति उत्पन्न करना योग्य है।
उत्तम विवाह वही है जो अपने माता पिता के गोत्र,कुल,पिण्ड, कुरी/फिरका/खाप व रक्त-सम्बन्ध में न हो।हमे सगोत्रीय, सपीण्डिय,निजकुरी व रक्त सम्बन्धी विवाह से बचना चाहिए।गोपथ पुराण अध्याय-2 का 21 वां मन्त्र भी ऐसा ही सन्देश देता है-
परोक्षप्रिया इवहि देवाः द्विषः।।
(गोपथ पुराण-2/21)
जो अपने गोत्र(सगोत्रीय) व माता के कुल की निकट सम्बन्ध में हो,उस कन्या से विवाह नहीं करना चाहिए।क्योंकि जैसी प्रीति परोक्ष पदार्थ में होती है,वैसी प्रत्यक्ष पदार्थ में नहीं।
उदाहरण-

1.जो वस्तु जिस स्थान पर पैदा होती है,उस स्थान पर उसकी मान्यता व महत्ता न्यूनतम रहा करती है।परन्तु अन्य स्थान पर जहाँ वह वस्तु पैदा नहीं होती,वहाँ पर अगर उस वस्तु को भेज दिया जाय/निर्यात किया जाय तो उसकी मांग/मान्यता अधिक हो जाती है।
2.किसी व्यक्ति ने अंगूर के गुण सुना हो और खाया न हो,तो उसका मन उसी में लगा रहता है।
3.अगर पानी में पानी को पिलाकर विलयन बनाया जाय तो उसमें कोई विशिष्टता व विलक्षणता नहीं होती है और अगर पानी(विलायक) में चीनी(विलेय) मिलाकर जो विलयन बनाया जाय तो स्वादिष्ट शर्बत बन जाता है।
4.पानी मे पानी मिलाने से कोई रासायनिक अभिक्रिया नहीं होती हसि।परन्तु जब पानी मे कोई अमल या क्षार डाल दिया जाता है तो रासायनिक क्रिया के पश्चात एक नया उत्पाद पैदा होता है।

उदाहरण स्वरूप:-

H2O+H2SO3=H2SO4+H2
जल+सलफ्यूरेट अम्ल=सल्फ्यूरिक अम्ल+हाइड्रोजन

2KOH+H2SO4=K2SO4+2H2O
पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड+सल्फ्यूरिक अम्ल=पोटैशियम सल्फेट+2H2O2
जब पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड क्षार व सल्फ्यूरिक अम्ल में आपसी रासायनिक अभिक्रिया होती है तो एक नया अम्ल पोटैशियम सल्फेट उत्पन्न होता है और जल के 2 अणु अलग हो जाते हैं।ठीक इसी प्रकार अपने गोत्र,पिण्ड, कुरी या रक्तसम्बन्ध में बेटी-बेटी का विवाह करने से जो सन्तान उत्पन्न होती है,उसमें कोई विशिष्टता/विलक्षणता नहीं होती है।बल्कि इस प्रकार के वैवाहिक सम्बन्ध से जो सन्तान पैदा होती है,वह शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक रूप से दुर्बल होती है।जब वर व वधू अलग अलग कुरी,गोत्र,फिरका के होते हैं तो उत्पन्न सन्तान बौध्दिक, शारिरिक, मनसिक रूप से हृष्ट-पुष्ट,स्वस्थ,सुंदर व विकसित होती है।
हम लोगों को जूनियर हाईस्कूल में 6वीं से 8वीं तक कृषि विज्ञान विषय पढ़ाया जाता था।जिसमें अच्छी पैदावर भूमि की उर्बरा शक्ति के लिए उपाय बताए जाते थे।कुछ बाते अभी याद हैं,जो इस प्रकार हैं-
1.जब एक ही जमीन में बार बार एक बीजपत्री फसल(गेहूं,जौ,बाजरा,ज्वार,धान आदि) या द्विबीजपत्री फसल(चना,मटर,उरद, मूंग,मसूर,सरसो,राजमा,मूंगफली, सोयाबीन आदि) बोन से उत्पादकता तो घटती ही जाती है,खेत की उर्बरा शक्ति कमजोर हो जाती है।अतः अच्छी पैदावार व खेत की उर्बराशक्ति को बनाये रखने के लिए एकबीजपत्री फसल के बाद द्विबीजपत्री फसल व द्विबीजपत्री फसल के बाद एकबीजपत्री फसल बोना चाहिए।जिसे फसल चक्र कहा जाता है।
2.बीजू(बीज से पैदा या उगा) से कलमी पेड़ पौधे में अच्छा,अधिक व स्वादिष्ट फल पैदा होता है।कलमी पेड़ पौधा तैयार करने के लिए एक पेड़ की शाखा में दूसरे पेड़ की टहनी या उपशाखा को काटकर कलम बनाकर रोपित करते हैं।बाद में उसे मुख्य शाखा से काटकर अलग कर रोपित कर देते हैं।
3.फसलों की नई बीज या संकर बीज के बारे में जानते होंगे कि दो प्रजातियों में क्रास के बाद एक नई प्रजाति विकसित होती है।
4.चुम्बकीय गुण-चुम्बक के दो ध्रुव उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव होते हैं।जब उत्तरी ध्रुव की तरफ उत्तरी ध्रुव या दक्षिणी ध्रुव की तरफ दक्षिणी ध्रुव को लाते हैं तो विकर्षण हानि कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है,लेकिन जब उत्तरी ध्रुव की तरफ दक्षिणी या दक्षिणी ध्रुव की तरफ उत्तरी ध्रुव को लाते हैं तो आकर्षण या दोनों आपस मे चिपक जाते हैं।
5.रंग परिवर्तन- मुख्य रंग 7 होते हैं लेकिन एक रंग को दूसरे में मिलाने से तीसरा रंग बन जाता है।लाल में लाल या सफेद में सफेद,पीला में पीला मिलाने पर कोई नया रंग नहीं बनता।पर,जब काला में सफेद या पीला में हरा या लाल में नीला मिलाने से एक तीसरा सुंदर रंग बन जाता है।

ब्राह्मण :–

  • ब्राह्मण की श्रेणी- सर्यूपारिय ब्राह्मण,शाकद्वीपीय ब्राह्मण,कान्यकुब्ज ब्राह्मण।
  • ब्राह्मण की शाखाएं- गौड़ ब्राह्मण,कुमायूंनी ब्राह्मण,गढ़वाली ब्राह्मण,नागर ब्राह्मण,कोंकण ब्राह्मण,कर्नाटकी ब्राह्मण,माथुर ब्राह्मण,बंगाली ब्राह्मण,उड़िया ब्राह्मण,कश्मीरी ब्राह्मण,गुजराती ब्राह्मण,भूमिहार ब्राह्मण,शर्मक ब्राह्मण ,सुरसेनीआदि।
  • ब्राह्मण के गोत्र- गौतम,शांडिल्य,भारद्वाज, उपमन्यु,श्रीनेत, भार्गव,वत्स,पारासर, कुलकर्णी,नम्बूदरीपाद नय्यर,चित्तपावन,कश्यप,वशिष्ठ।
  • ब्राह्मण के फिरके- दूबे, द्विवेदी,तिवारी,त्रिवेणी,त्रिपाठी,चौबे,चतुर्वेदी, पांडेय,मिश्रा,शुक्ला,झा,ओझा,जोशी,बहुगुणा,पत्रा,महापात्रा, चटर्जी,बनर्जी,मुखर्जी,मुखोपाध्याय, चट्टोपाध्याय, बंद्योपाध्याय,अग्निहोत्री,पाठक आदि।
  • क्षत्रिय के फिरके- गौतम,सूर्यवंशी, चंद्रवंशी, सेंगर,बिसेन,चंदेल,गौर,चौहान,घाटी, शेखावत,शक्तावत,मेहरावत, भदौरिया,रावत,बिष्ट आदि।
  • वैश्य के फिरके व गोत्र- गर्ग,गोयल,चायल,तायल,कंसल,बंसल,अग्रवाल,अग्रहरि,केसरी,केसरवानी, नायल, बोरा,मेहरोत्रा,टण्डन,खत्री आदि।
  • यादव की उपजातियाँ व गोत्र- अत्रि,ग्वाल,गोवार,गोप,गवली,टेटवार,ठेठवार,दढ़होर,कृष्णावत,कमरिया,घोष,घोषी,कन्नौजिया,सदगोप,नवगोप,भेड़िहार,धनगर,कोर्चा,कुरुबा,लिंगायत,मेषकर,भेषकर,गोपालक,महिषपालक,अथरहवा,बिसहवा,बिनअहिरा,राव,कृष्णवंशी, विष्णिवंशी,बनाफरआदि।
  • मल्लाह की उपजातियाँ- चाई, मुड़ियारी,सोरहिया,बथवा,तीयर,कुलवत, खुलवट,बनपर,बनफर, नरवरिया, जरिया,मथुरिया,बड़गुज्जर,नावरिया,केवट,धीवर,झीवर,सिंघाडिया,गोड़िया,खैरहा,खोरोट,जलिया,पटनी,रैकवार,सोंधिया,गंगौता,बरमैया,तुरैहा,तुरहा1,महिषी,गोढ़ी,गंगापुत्र आदि।
  • लोधी की उपजातियाँ- लोधे, लोध,लोधा,महालोधी,पथरिया,जरिया,मथुरिया,नरवरिया,महदेले,भटेरे,सिंहरौर,कवलपतिया,खरवार,किसान,खागी,खड़गवंशी,चंद्रवंशी आदि।
  • बिन्द/केवट के फिरके- खरबिंद, ओड़बिन्द,लोधबिन्द,ख़र्चवाह,अन्तर्वेदी, मैवार, मायावार,घसियारी, पत्थर कट, बेलदार,मुड़हा,मटियारी,नोनिया बिन्द,नूनबिन, चटाई बिन आदि।
  • गड़ेरिया के फिरके- भेड़िहार,गवली,धनगर,भेड़पालक,मेषपालक,पाल,होलकर,निखर,बघेल आदि।


क्या सबका खून एक है…?
पहले लोक कहते थे कि सबके खून का रंग लाल ही व एक होता है।लेकिन जब वैज्ञानिक खोज हुई तो पता चला कि खून(ब्लड) के 3 भाग -आरबीसी(लाल रक्त/रुधिर कणिका),डब्ल्यू बीसी(श्वेत रुधिर/रक्त कणिका) व प्लाज्मा होते हैं।और वैज्ञानिक खोज हुई तो खून/ब्लड के 4 ग्रुप-ए, बी, एबी व ओ के साथ साथ आरएच+ व आरएच- और डीएनए व आरएनए आदि का पता चला।
ब्राह्मण का गुण मिलान-
विवाह सम्बन्ध के दौरान जो गुण या गनना बनाता,मिलाता है,वह बेकार है और उसका कोई वैज्ञानिक गुणधर्म नहीं होता,सिर्फ मन के भुलावे के।विवाह में जो गुण या गनना की बात होनी चाहिए, वह रक्त गुण व चम्बकीय गुणधर्म आधारित होनी चाहिए।
यदि ग्वाल लड़के की ग्वाल लड़कीं व ग्वाल लड़कीं की डड़होर लड़के या डड़होर लड़कीं की ग्वाल लड़के साथ वैवाहिक सम्बन्ध करना हो तो इनसे उत्पन्न सन्तति का गुणधर्म में क्या परिवर्तन होगा,इस पर विचार करना आवश्यक है-
माना ग्वाल लड़के व लड़कीं का रक्त गुणधर्म 10 व डड़होर लड़का लड़की का रक्त गुणधर्म 12 है और ग्वाल की ग्वाल,डड़होर की डड़होर या ग्वाल की डड़होर में वैवाहिक सम्बन्ध बने,तो चम्बकीय व रंग(कलर) के सम्मिलन की तरह प्रभाव पड़ेगा।
यथा-1.जब ग्वाल लड़का का ग्वाल लड़कीं के साथ वैवाहिक संबंध होगा तो सन्तति का गुणधर्म चुम्बक के उत्तरी ध्रुव व उत्तरी ध्रुव या दक्षिणी ध्रुव को दक्षिणी ध्रुव की ओर लाने पर जो विकर्षण की स्थिति होती है,वैसा ही रहेगा-यानी 10 का 10 या 12 का 12 ही रहेगा।
यदि ग्वाल लड़के का डड़होर लड़कीं या डड़होर लड़का का ग्वाल लड़कीं का वैवाहिक सम्बन्ध होगा तो सन्तति में दोनों फिरकों का गुणधर्म आपस मे जुड़ जाएगा-10+12=22
या 12+10=22 होगा।यह वैज्ञानिक गुणधर्म है और यही स्वस्थ,विद्वान,बौद्धिक व सुंदर सन्तति उत्पन्न होने का तरीका है।
सफल विवाह के आवश्यक नुस्खे-
हर माता-पिता अपने पुत्र-पुत्री के सफल विवाह के लिए चिंतित रहते हैं।अपने बेटे और बेटी की अच्छी व सफल शादी के लिए भागदौड़ करते हैं।हर माता-पिता चाहते हैं कि उनके पुत्र-पुत्री का जीवन सुखमय व दाम्पत्य जीवन सफल रहे।इसके लिए हमारे कुछ आवश्यक नुस्खे हैं,जो अंग्रेजी वर्णमाला के A से H अक्षर से बने शब्दों पर ध्यान देना आव्वष्यक है।
1.Age(उम्र)- लड़के की उम्र लड़कीं से 1 से 5 वर्ष अधिक हो।लड़के-लड़कीं की उम्र बराबर या लड़कीं लड़के से कुछ अधिक उम्र की हो और उनमें अच्छा तालमेल बन सकता है,तो किये जाने में कोई हर्ज नहीं है।स्वयं हमारी पत्नी हमसे 3-3.5 वर्ष उम्र में बड़ी हैं।
2.Beauty(सुन्दरता)- लड़के लड़कीं की शादी करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि लड़कीं लड़के से बीस यानी सुंदर हो।दोनों की सुंदरता में ज्यादा फर्क नहीं होना चाहिए।
3.क.Character(चरित्र)- लड़के लड़कीं के चरित्र का पता करके ही रिश्ता बनाना सुखद रहेगा।
3.ख. Colour(रंग)- लड़के व लड़कीं के रंग में ज्यादा फर्क नहीं होना चाहिए।लड़कीं का रंग लड़के से कुछ साफ सुथरा हो तो ठीक है।
4.Dowry(दहेज)- दहेज(द=देना,हेज=इज्जत) वर्तमान समय में बेटी वाले के गले का फांस बन गया है।शादी के बाद वरपक्ष व वधूपक्ष के लोग रिश्तेदार बन जाते हैं।हमारे पूरब की भाषा में हित बन जाते हैं जिसका अर्थ भलाई होता है और हमे इसी शब्द की सार्थकता पर विशेष ध्यान देना चाहिए।लड़का वाला लड़कीं के परिवार से लेनदेन के मुद्दे पर ऐसा व्यवहार करें कि वह लड़कीं वाले के दिल मे सम्मान का स्थान बनाकर रहे।
5.Education(शिक्षा)- लड़का का शैक्षिक स्तर लड़कीं से उच्च हो या लड़का व लड़कीं के शैक्षिक स्तर में अंतर न हो।
6.Family(परिवार)- लड़का-लड़की के पफीवर का आचार-विचार या सभव समान हो।
7.Gentle(भद्रता)- लड़का-लड़की दोनों का चाल-चरित्र व व्यवहार समान हो।
8.Height(ऊँचाई या कद)- लड़के की ऊँचाई या कद काठी लड़कीं से अधिक हो।दोनों का कद समान हो या शारीरिक कद में अंतर उचित नहीं है।…[/Responsivevoice]

(यह लेखक के अपने विचार हैं)