जानें गुजरात में किसका दबदबा,कौन है किस पर भारी

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गुजरात में कैसा है जातीय गणित, किस बिरादरी का दबदबा, कौन है किस पर भारी,आइये जानते हैं।

अजय सिंह

गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 की सरगर्मियों के बीच राज्य की राजनीति में जातियों के समीकरण भी फिट किए जा रहे हैं। सभी पार्टियां जातियों पर फोकस कर रही हैं और टिकट बंटवारे में भी यह फैक्टर कारगर होता है।अभी तक कांग्रेस व भाजपा में ही आमने सामने की टक्कर होती रही है,लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी भी पूरे दमखम के साथ गुजरात विधानसभा में हाथ आजमाने के लिए जोर आजमाइश कर रही है।सम्भावना है कि आप के चलते भाजपा को ही अधिक नुकसान उठाना पड़ेगा।जो चुनावी परिदृश्य उभर रहा है,अगला विधानसभा चुनाव बड़ा रिचक होगा।इस बार हार जीत का 3-4 प्रतिशत का अंतर रहेगा।कांग्रेस 3-4 प्रतिशत वोटों के साथ उछाल मारती है तो भाजपा के लिए सत्ता संग्राम बेहद मुश्किल होगा।

गुजरात विधानसभा चुनाव-2022 के लिए सभी राजनैतिक पार्टियां कमर कस चुकी हैं। लेकिन इतना तय है कि विधानसभा चुनाव इस बार भी जातीय समीकरण के आधार पर लड़ा जाएगा। गुजरात में जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां का समीकरण दूसरे राज्यों से अलग है। इसका कारण है कि गुजरात में अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी समुदाय के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा करीब 52 फीसदी है। गुजरात में ओबीसी वर्ग में कुल 146 जातियां शामिल हैं, जो राज्य की राजनीति में प्रभावी भूमिका निभाती हैं।पिछड़ी जातियों में भी कुल ओबीसी आबादी की आधा से अधिक कोली समाज की है।यह जातीय समूह अभी तक उचित हिस्सेदारी नहीं पा सका है। 12 से 13 प्रतिशत आबादी पाटीदार समुदाय की है,जिसका कांग्रेस व भाजपा दोनों में मजबूत दखलंदाजी है। 2002 से 2017 का रिकॉर्ड देखा जाय तो दोनों दल 45 से 55 उम्मीदवार पाटीदार समाज से ही उतारते आ रहे हैं।कोली समाज 12-14 टिकट पर ही सीमित कद दिया जाता है।

सवर्ण मतदाताओं की संख्या सबसे कम –

गुजरात की कुल आबादी 6 करोड़ से ज्यादा है। इसमें 52 फीसदी संख्या पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की है। पिछड़ा वर्ग में शामिल 146 जातियां-उपजातियां ही तय करती हैं कि राज्य की सत्ता किसके हाथ में रहेगी। राज्य में सवर्ण मतदाताओं की संख्या सबसे कम है। माना जाता है कि राज्य में सबसे प्रभावी पाटीदार बिरादरी यानी कि पटेल समुदाय की हिस्सेदारी 12-14 फीसदी है, जिसे राज्य में सबसे ताकतवर जाति माना जाता है। लगभग 4 प्रतिशत संख्या सवर्ण क्षत्रिय वर्ग की और दलितों की संख्या मात्र 7 फीसदी ही है।बताते चले कि गुजरात मे ठाकोर क्षत्रिय ओबीसी में भी हैं।

गुजरात में जातियों की संख्या प्रतिशत में –

गुजरात विधानसभा चुनाव में जातिगत राजनीति की बात करें तो महत्वपूर्ण पाटीदार बिरादरी को साधने के लिए बीजेपी ने हार्दिक पटेल को अपने खेमे में मिला लिया है, जिससे माना जा रहा है कि पाटीदार पटेलों को वोट बीजेपी को जा सकता है। राज्य में कुल ओबीसी 52 प्रतिशत हैं। वहीं सामान्य क्षत्रिय 4 प्रतिशत, पाटीदार 14 प्रतिशत, दलित 7 प्रतिशत, आदिवासी समुदाय 16-17 प्रतिशत, मुस्लिम आबादी 9-10 प्रतिशत हैं। वहीं ब्राह्मण, बनिया, कायस्थ को मिलाकर कुल 5 प्रतिशत मतदाता हैं।

कोली सर्वाधिक, पर सबसे ताकतवर हैं पाटीदार –

माना जाता है कि पाटीदार समाज गुजरात में राजनीतिक तौर पर सबसे ताकतवर समुदाय है। संख्याबल की दृष्टि से देखा जाय तो गुजरात में सिर्फ़ कोली ही 24 प्रतिशत से अधिक हैं।हार्दिक पटेल को भाजपा में लेने के पीछे बीजेपी की यही रणनीति है कि पाटीदारों का वोट उन्हें मिलता रहे। पाटीदार समाज के नेताओं की बात करें तो सरदार बल्लभ भाई पटेल से लेकर केशुभाई पटेल, चिमनभाई पटेल, आनंदीबेन पटेल जैसे नाम गुजरात की राजनीति में बड़े चेहरे हैं। वहीं युवा हार्दिक पटेल भी इसी पाटीदार बिरादरी से आते हैं। यही कारण है कि विधानसभा चुनाव -2022 से ठीक एक साल पहले भाजपा ने पाटीदार नेता भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया। वहीं अब बड़े नेता हार्दिक पटेल को भी अपने खेमे में शामिल कर लिया है।

टिकट बंटवारे में भी वरीयता –

गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 की बात करें तो भाजपा ने पाटीदार समाज के 50 लोगों को टिकट दिया था। वहीं कांग्रेस ने 41 टिकट पाटीदार बिरादरी को दिए थे। भाजपा ने कुल 58 फीसदी टिकट ओबीसी उम्मीदवारों को दिए थे। जबकि कांग्रेस ने 62 फीसदी टिकट ओबीसी समुदाय के कैंडिडेट को दिए। भाजपा ने 14 दलितों को टिकट दिया था, वहीं कांग्रेस ने 13 दलितों को मैदान में उतारा था। गुजरात विधानसभा चुनाव-2022 में भी टिकट बंटवारे के दौरान कास्ट फैक्टर प्रभावी रहेगा।

गुजरात में किस जाति के कितने वोट –

गुजरात विधानसभा चुनाव-2022 में जाति फैक्टर कितना काम करेगा, यह वोटों की संख्या से भी समझा जा सकता है। गुजरात विधानसभा चुनाव-2017 के दौरान ओबीसी के कुल 1.68 करोड़ मतदाता थे। इसमें ठाकोर, कोली, सुथार, दर्जी जैसी कई जातियां शामिल हैं। वहीं 14 प्रतिशत से अधिक मतदाता पाटीदार जाति के ही हैं। कोली समुदाय के मतदाता 24 प्रतिशत से अधिक हैं।जबकि ब्राह्मण और जैन मतदाताओं की संख्या 47 लाख है। इसके अलावा 51 लाख आदिवासी मतदाता हैं। जबकि दलित मतदाताओं की संख्या 30.69 लाख थी। वहीं मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी करीब 41 लाख है। गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 में वोटों की यह संख्या बढ़ जाएगी।


गुजरात में उत्तर प्रदेश,बिहार के भी लोगों की आबादी गुजरात की कुल आबादी में 15 प्रतिशत से अधिक है,जिनकी हार जीत में अहम भूमिका रहती है।परप्रांतियों में उत्तर प्रदेश के निषाद,मल्लाह,केवट की आधा से अधिक आबादी है,जो अहमदाबाद, बड़ोदा,सूरत,बलसाड़,नवसारी,भरूच,जामनगर,राजकोट,कच्छ सौराष्ट्र में है।निषाद कोली मछुआरों के सामाजिक न्याय की लड़ते आ रहे राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ.लौटनराम निषाद ने कहा कि गुजरात में 24 प्रतिशत से अधिक कोली व 5-7 प्रतिशत से अधिक निषाद, केवट,माछी,धीवर, गोड़िया,कहार,भोई आदि हैं,पर 30 प्रतिशत की आबादी वाला समुदाय राजनीतिक उपेक्षा का शिकार है।2001 से 2021 तक भावनगर के पुरषोत्तम भाई सोलंकी गुजरात मन्त्रिमण्डल में राज्यमंत्री से आगे नहीं बढ़ पाए।भूपेंद्र पटेल मन्त्रिमण्डल से तो कोली समाज का प्रतिनिधित्व ही खत्म कर दिया गया। भाजपा सिर्फ़ वोट लेना जानती है,अधिकार व सम्मान देना नहीं।गुजरात में एक कहावत प्रचलित है-“मार खाये माँछी, माल खाये घाँची”।भाजपा की दृष्टि में कोली,निषाद, माँछी, खारवा,तांडेल, भोई सिर्फ वोटर व सपोर्टर ही समझे जाते हैं,हकदार नहीं।