जानें किसने सोशल इंजीनियरिंग को छोड़ा और किसने जोड़ा….!

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पिछड़ों को दरकिनार कर काँग्रेस को मजबूत करना असम्भव।कांग्रेस ने सोशल इंजीनियरिंग को छोड़ा,भाजपा ने मजबूती से जोड़ा।

लखनऊ। देश व प्रदेश के जातिगत समीकरण में पिछड़ी जातियों की सर्वाधिक आबादी है।राजनीति की दिशा-दशा में परिवर्तन में इस वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।भाजपा पिछड़े वर्ग की सबसे बड़ी विरोधी पार्टी रही है,पर वर्तमान में मुखौटा राजनीति के चलते वह सफलता को अर्जित करती आ रही है। भाजपा का संगठन हो या मंत्रिपरिषद गठन व टिकट का वितरण,वह माइक्रो सोशल इंजीनियरिंग को ध्यान में रखकर आगे बढ़ती है।केन्द्रीय मण्डल को देखा जाय तो 26 ओबीसी,12 एससी व 8 एसटी के साथ 3 मुस्लिम मंत्री हैं।उत्तर प्रदेश के मन्त्रिमण्डल में भी 29 पिछड़े,अतिपिछड़े वर्ग के मंत्री हैं।दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी पिछड़ों को जोड़ने का कोई विशेष अभियान नहीं चला पा रही।राजस्थान के 3 दिवसीय चिंतन शिविर में पिछडों,वंचितों को 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व संगठन व टिकट वितरण में दिए जाने का निर्णय हुआ।

राज्यसभा चुनाव में ऐसा नहीं किया गया।यों कहा जाय कि कांग्रेस ने पिछड़ों की तरफ मुड़कर भी नहीं देखा।कांग्रेस के जो 10 राज्यसभा सदस्य भेजे गए उसमें 5 ब्राह्मण,1-1 मुस्लिम, दलित व 3 सामान्य वर्ग से सम्बंधित हैं।भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने पिछड़ी जातियों को विश्वास में लेने के लिए इन्हें हर स्तर पर हिस्सेदारी देने का कदम उठाना चाहिए।कांग्रेस जब तक पिछड़ी,अतिपिछड़ी जातियों को माइक्रो सोशल इंजीनियरिंग के तहत जोड़ने का कदम नहीं उठायेगी, कांग्रेस को मजबूती मिलना मुश्किल है।कहा कि राजस्थान, छत्तीसगढ़ से 1-1 ओबीसी को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाना अपेक्षित था।पर,राज्यसभा में जिन्हें भेजा गया,सभी सामान्य वर्ग के ही रहे।वैसे छत्तीसगढ़, राजस्थान, पुड्डुचेरी में कांग्रेस की सरकार है और तीनों मुख्यमंत्री ओबीसी के ही हैं।राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सैनी,छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भुपेश बघेल कुर्मी व पुड्डुचेरी के मुख्यमंत्री एन. रंगास्वामी वन्नियार जाति के हैं।


भाजपा बार बार सफलता पा रही है क्योंकि सबसे ज्यादा उसका जोर ओबीसी,एससी,एसटी को जोड़ने पर दे रही।उसकी सोशल इंजीनियरिंग के सामने अन्य दलों की सोशल इंजीनियरिंग काफी कमजोर है।कांग्रेस में तो सोशल इंजीनियरिंग दिखती ही नहीं है।कांग्रेस के संगठन में भी ओबीसी के चेहरे दिखते ही नहीं।कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन में साफतौर पर चंदन यादव,सत्यनारायण पटेल,धीरज गूजर, जितेन्द्र बघेल,सोनल पटेल,नीलेश पटेल राष्ट्रीय सचिव हैं,महासचिव के रूप में तो कोई ओबीसी दिखता नहीं।देवेन्द्र यादव उत्तराखंड के प्रभारी हैं।उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश,राजस्थान जैसे हिन्दी पट्टी के राज्यों में पिछड़ों को आगे किये बिना कांग्रेस मजबूत नहीं किया जा सकता।


राज्यसभा की 57 सीटों में से भाजपा ने 23 उम्मीदवार उतारा था, जिसमें 11 ओबीसी,एमबीसी व 3 दलित रहे। 3 कुनबी/पटेल के साथ 1-1 निषाद,कोर्चा,वोक्कालिगा, मौर्य/यादव,गुजर,सैनी,साहू जाति के राज्यसभा में निर्वाचित हुए।यह भाजपा की मुखौटा राजनीति का हिस्सा है।उत्तर प्रदेश से भाजपा के 23 सांसद व 90 विधायक ओबीसी वर्ग के हैं।योगी मन्त्रिमण्डल में 29 ओबीसी मंत्री हैं।भाजपा ने 2017 में कोरी जाति के रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाया तो इसबार संथाल आदिवासी द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया है,जो उसकी माइक्रो सोशल इंजीनियरिंग का हिस्सा है।तमिलनाडु,कर्नाटक,आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, केरल,पुड्डुचेरी में 62 से 71 प्रतिशत व उत्तर प्रदेश,बिहार,राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़,झारखण्ड,ओडिशा में 50 से 60 प्रतिशत ओबीसी की संख्या हैं।हिन्दू पिछड़ों की सबसे अधिक संख्या तमिलनाडु, गुजरात व मध्यप्रदेश में है।देश के पिछड़ों में यादव, निषाद, कुर्मी, एझवा, कोर्चा,कुरुबा,लिंगायत,वोक्कालिगा,सफ़ालिगा,मोगाविरा,बंजारा,धीवर,कश्यप,गुजर,कोली,आगरी,वन्नियार,अग्निकुला क्षत्रिय, वन्नियाकुला क्षत्रिय,वेस्था, भोई आदि प्रमुख जातियाँ हैं।


उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरण में 43 प्रतिशत से अधिक हिन्दू पिछड़ी जातियाँ हैं।जिसमें यादव के बाद निषाद/कश्यप,कुर्मी,मौर्य/शाक्य/सैनी/कुशवाहा, राजभर, चौहान, जाट, गुजर, पाल,साहू,विश्वकर्मा,नाई/सबिता,लोधी/किसान,बिन्द,प्रजापति,बंजारा, बियार,अर्कवंशी आदि प्रमुख हैं।जिसमे से कुछ प्रदेश कर हर क्षेत्र तो कुछ क्षेत्रीय स्तर पर प्रभावशाली हैं।निषाद/कश्यप/बिन्द-10.25%,यादव-8.6%,कोयरी/काछी/सैनी-4.55%,कुर्मी-4.1%,लोधी/किसान-3.60 प्रतिशत, पाल-2.38%, जाट-1.97%, विश्वकर्मा-1.72%, साहू-1.61%, राजभर-1.31%,चौहान-1.26%, नाई/सबिता-1.11%,कानू/भुर्जी-1.01%,गुजर-0.72% हैं।