नेता जी का संघर्ष

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मुलायम सिंह यादव का संघर्ष –

इटावा जिले के सैफई गांव में 22 नवंबर, 1939 को जन्‍मे मुलायम सिंह यादव ने शुरुआती जीवन एक शिक्षक के रूप में शुरू किया और 1967 में पहली बार विधानसभा के सदस्य चुने गए। वह वर्ष 1977 में रामनरेश यादव के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश सरकार में पहली बार मंत्री बने। वर्ष 1989 में वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 1996 में मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतने के बाद संयुक्त मोर्चा की सरकार में वह रक्षा मंत्री भी बने।मुलायम सिंह यादव संघर्ष के बाद राजनीति में अलग पहचान बनाने वाले नेता। ठेट देसी अंदाज। कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद। भरी भीड़ में पुराने कार्यकर्ता को नाम से पुकारना। चेहरे पर मुस्कान, धोती-कुर्ता परिधान। ऐसे ‘धरतीपुत्र’ मुलायम सिंह यादव ने राजनीति में न सिर्फ अपना एक अलग मुकाम हासिल किया बल्कि एक ऐसी पार्टी खड़ी कर दी, जिसने कई बार प्रदेश की सत्ता संभाली। वह न सिर्फ उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे बल्कि एक बार देश के रक्षामंत्री भी रहे। मगर, ये सब एक दिन में उन्होंने हासिल नहीं किया। राजनीति में उन्हें विरासत में नहीं मिली थी। एक साधारण से परिवार से निकलकर पहले शिक्षक और फिर राजनीति में कदम रखा। इसके बाद उन्होंने पीछे पलटकर नहीं देखा। देखते ही देखते वह नेताजी बन गए। उनकी खड़ी की समाजवादी पार्टी के भी बहुत से युवा नेता उनके संघर्ष की कहानी नहीं जानते होंगे। लेकिन इस बार उनके जन्मदिन पर कार्यकर्ताओं को उनके संघर्ष की गाथा सुनाई जाएंगी। कैसे वह एक शिक्षक से नेताजी बने, इसके बारे में वह जानेंगे।

किसानों के मसीहा माने जाने वाले समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव जब पहली दफा चुनाव मैदान में उतरे थे तो उन्होंने ‘एक वोट एक नोट’ का नारा देकर लोगों के बीच न केवल खूब पहचान बनाई, बल्कि लोगों का दिल भी जीत लिया था। मुलायम सिंह यादव अपने भाषणों में लोगों से एक वोट और एक नोट (एक रुपया) देने की अपील करते थे। नेता जी कहते थे कि हम विधायक बन जाएंगे तो किसी न किसी तरह से आपका एक रुपया ब्याज सहित आपको लौटा देंगे। मुलायम की इस बात को सुनकर लोग खूब ताली बजाते थे और दिल खोलकर चंदा देते थे।

अपने लंबे राजनीतिक जीवन में मुलायम सिंह यादव ने कई बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं। उन्होंने 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना की। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश में अपने पुत्र अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया और अखिलेश 2017 तक इस पद पर बने रहे।इटावा जिले के सैफई गांव में 22 नवंबर, 1939 को जन्‍मे मुलायम सिंह ने शुरुआती जीवन एक शिक्षक के रूप में शुरू किया।मुलायम सिंह ने 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना की।2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को बहुमत मिलने के बाद उन्होंने अपने पुत्र अखिलेश को सीएम बनाया।

22 नवंबर को सपा संरक्षक व पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन है,प्रदेश भर में सभी जगहों पर विभिन्न कार्यक्रमों के साथ ही गोष्ठियां आयेाजित की जाएंगी। इनमें नेताजी के संघर्ष और समाजवादी विचारधारा पर चर्चा की जाएगी,कार्यकर्ताओं को बताया जाएगा कि कितने संघर्ष के बाद उन्होंने पार्टी को इस मुकाम तक पहुंचाया। मुलायम सिंह यादव का जन्म इटावा के गांव सैफई में 22 नवंबर 1939 को हुआ था। राजनीति में आने से पूर्व मुलायम सिंह यादव आगरा विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर और बीटीसी करने के उपरांत इंटर कालेज में प्रवक्ता नियुक्त हुए और सक्रिय राजनीति में रहते हुए नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।

तीन बार रहे मुख्यमंत्री-

  • 5 दिसंबर 1988 से 24 जून 1991 तक।
  • 5 दिसंबर 1993 से 3 जून 1995।
  • 29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007।

रक्षामंत्री-

  • 1 जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक।

राजनीतिक सफर-

दरअसल मुलायम सिंह यादव के राजनैतिक गुरु नत्थूसिंह मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती प्रतियोगिता के दौरान मुलायम से काफी प्रभावित हुए और फिर यहीं से मुलायम सिंह यादव का राजनैतिक कैरियर शुरु हो गया। मुलायम सिंह यादव साल 1967 में इटावा की जसवंतनगर विधानसभा से पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। मुलायम सिंह यादव यह चुनाव भारतीय राजनीति के दिग्गज राममनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर जीते थे। इसी बीच 1968 में राममनोहर लोहिया का निधन हो गया। इसके बाद मुलायम उस वक्त के बड़े किसान नेता चौधरी चरणसिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल में शामिल हो गए। 1974 में मुलायम सिंह बीकेडी के टिकट पर दोबारा विधायक बने। इसी बीच इमरजेंसी के दौरान मुलायम सिंह यादव भी जेल गए। जसवंतनगर से तीसरी बार विधायक चुने जाने पर मुलायम सिंह यादव रामनरेश यादव की सरकार में सहकारिता मंत्री बने। चौधरी चरणसिंह के निधन के बाद मुलायम सिंह यादव का राजनैतिक कद बढ़ना शुरु हुआ।हालांकि चौधरी चरण सिंह की दावेदारी के लिए मुलायम सिंह यादव और चौधरी चरण सिंह के बेटे और रालोद नेता अजीत सिंह में वर्चस्व की लड़ाई भी छिड़ी।1990 में जनता दल में टूट हुई और 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की नींव रखी। राजनैतिक गठजोड़ के चलते मुलायम सिंह यादव 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 1991 में हुए मध्यावधि चुनाव हुए और मुलायम सिंह यादव को हार का मुंह देखना पड़ा। 1993 में मुलायम सिंह यादव ने सत्ता कब्जाने के लिए बहुजन समाज पार्टी के साथ गठजोड़ कर लिया। यह गठजोड़ काम कर गया और वह फिर से सत्ता में आ गए। मुलायम सिंह यादव केन्द्र में रक्षा मंत्री भी बने। एक बार गठजोड़ के चलते मुलायम सिंह यादव देश के प्रधानमंत्री बनने के काफी करीब पहुंच गए थे, लेकिन लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया।

पहलवानी का था शौक

मुलायम सिंह यादव को बचपन से ही पहलवानी का बड़ा शौक था।शाम को स्कूल से लौटने के बाद वे अखाड़े में जाकर कुश्ती लड़ते थे,जहां पर वे अखाड़े में बड़े से बड़े पहलवान को चित्त कर देते थे । नेता जी का बचपन अभावों में बीता पर वे अपने साथियों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे।मुलायम सिंह छोटे कद के थे,लेकिन उनमें गजब की फुर्ती थी।अक्सर वे पेड़ों पर चढ़ जाते थे और आम, अमरुद, जामुन बगैरह तोड़कर अपने साथियों को खिलाते थे।कई बार लोग उनकी शिकायत लेकर उनके घर पहुंच जाते थे।तब उन्हें पिताजी की डांट भी पड़ती थी।मुलायम सिंह यादव के पिता एक पहलवान थे और मुलायम सिंह को भी पहलवान बनाना चाहते थे हालांकि मुलायम सिंह पहलवानी के कारण ही राजनीति में आए।

जहाँ पढ़े,वहां पढ़ाया भी-

मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी के जिस कॉलेज में पढ़ाई की, बाद में उसी कॉलेज में पढ़ाया भी।मुलायम सिंह यादव को राजनीति में लाने का श्रेय अपने समय के कद्दावर नेता नत्थू सिंह को जाता है।चौधरी नत्थू सिंह ने मुलायम सिंह के लिए अपनी सीट छोड़ दी। उन्हें चुनाव लड़वाया और सबसे कम उम्र में विधायक बनवाया।उस समय बहुत सारे लोग ऐसे थे जिन्होंने मुलायम सिंह को विधानसभा का टिकट दिए जाने का विरोध किया था, लेकिन नत्थू सिंह के आगे किसी का विरोध नहीं चला।मुलायम सिंह यादव आज देश के बहुत बड़े नेता हैं, लेकिन जब भी उनसे मुलाकात होती है तो बचपन की पुरानी बातों को याद करते हैं।मुलायम सिंह ने न जाने कितने लोगों की मदद की है, लेकिन वे कभी किसी पर इस बात का एहसान नहीं जताते। जब नेता जी को पहली बार विधानसभा का टिकट मिला था तो लोगों ने जनता के बीच जाकर वोट के साथ-साथ चुनाव लड़ने के लिए चंदा भी मांगा था । मुलायम सिंह अपने भाषणों में लोगों से एक वोट और एक नोट (एक रुपया) देने की अपील करते थे।नेता जी कहते थे कि हम विधायक बन जाएंगे तो किसी न किसी तरह से आपका एक रुपया ब्याज सहित आपको लौटा देंगे।लोग मुलायम सिंह की बात सुनकर खूब ताली बजाते थे और दिल खोलकर चंदा देते थे।

चौधरी नत्थू सिंह ने मुलायम सिंह को राजनीति में आगे बढ़ाया
शुरूआती दौर में मुलायय और उनके साथी साइकिल से चुनाव प्रचार करते थे,बाद में चंदे के पैसों से एक सेकेंड हैंड कार खरीदी पर लोगों को इस कार में खूब धक्के लगाने पड़ते थे, क्योंकि यह कार बार-बार बंद हो जाया करती थी।मुलायम सिंह को राजनीति में बहुत संघर्ष करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी।चौधरी नत्थू सिंह ने मुलायम सिंह को राजनीति में आगे बढ़ाया।नत्थू सिंह ने मुलायम सिंह के लिए अपनी सीट छोड़ी। वे कहते थे कि मुलायम सिंह पढ़े-लिखे हैं, इसलिए इनको विधानसभा में जाना चाहिए।नेता जी मुलायम सिंह की एक बड़ी खासियत है कि वे अपने लोगों को हमेशा याद रखते हैं।अपनों को कभी भूलते नहीं. भारतीय राजनीति में जमीन से जुड़े नेताओं का जब भी जिक्र किया जाता है तो उनमें समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का नाम काफी ऊपर दिखाई देता है।

जब मंच पर इंस्पेक्टर को उठाकर पटका
मुलायम सिंह यादव का उनके गृह राज्य उत्तर प्रदेश में उनकी खांटी राजनीति के कारण ‘धरती पुत्र’ की संज्ञा दी जाती है । उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह से जुड़े कई किस्से मशहूर हैं । इन्हीं किस्सों में से एक किस्सा ऐसा है, जिसमें कहा जाता है कि उन्होंने मंच पर ही एक पुलिस इंस्पेक्टर को उठाकर पटक दिया था । बताया जाता है कि वह पुलिस इंस्पेक्टर मंच पर एक कवि को उसकी कविता नहीं पढ़ने दे रहा था।