राष्ट्र से प्रेम करें युवा,अपने क्षेत्र को बेहतर बनाएं-उदय प्रताप सिंह

522

उदय प्रताप सिंह सुप्रसिद्ध कवि हैं। वह शिक्षक भी रहें है, कई स्कूलों में प्रिंसिपल के तौर उन्होंने अपनी सेवाएं दी हैं। इसके अलावा वह मैनपुरी से 1989 से पहली बार सांसद हुए थे। उदय वहां से दो बार जीतें। वह राज्य सभा में भी रहें हैं। उदय प्रताप समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के गुरु/ शिक्षक भी रहें हैं। उनके जीवन से जुड़े किस्से और सफर पर न्यूज़ ऑफ इंडिया -( न्यूज़ एजेंसी ) संवाददाता शुभांकर भानु ने उनसे बातचीत की है , पेश है बातचीत का पूरा अंश…


आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि कैसी थी, बचपन कैसे परिवेश में बीता….?

मेरा जन्म 1932 में मैनपुरी के एक ऐसे परिवार में हुआ जो शिक्षित और सुसंस्कृत था। मेरे दादा अंग्रेजो के ज़माने में पीसीएस अफसर थे। उनके लिए अंग्रेजो ने पत्र लिखा था कि यादव समाज के लोग हमारे विरोधी हैं, यदि यादव समाज के व्यक्ति को नौकरी मिल जाएगी, तो वो हमारे समर्थन में हो सकते है। मेरे दादा के पिता भी ईस्ट इंडिया कंपनी के दौर में शिक्षक थे। मेरे पिता जी डॉक्टर थे। मेरा परिवार पैसे के मामले में साधारण था लेकिन शिक्षा के मामले में उच्च कोटि का था। मुझे संस्कार और साकार्तमक विचार बचपन से मिले।

आपने कविता करना कब शुरू किया, पहली कविता कब लिखी….?

मेरे परिवार में शुरू से ही कविता का माहौल था। मेरे ताऊ जी शिक्षक थे, उनकी लाइब्रेरी बहुत बड़ी थी। मेरे घर में भी बहुत बड़ी लाइब्रेरी थी। जहां मैं किताबे पढ़ा करता था। मेरे हाईस्कूल पास करने पर ताऊ जी ने मुझे ‘ कविता कौमुदी ‘ नामक किताब भेट की थी। जिसमे मैने सभी कवियों के बारे में पढ़ा और कविता में रुचि बढ़ी। मैने मनोरंजन के लिए कविता करना शुरू किया था। पहली कविता मैने बहुत कम उम्र में लिखी, जो ‘ मोती जी सोते रहें थी। मैं अपने कॉलेज का छात्रसंघ अध्यक्ष चुना गया था। मेरे कॉलेज के दीक्षांत समारोह में मैने एक कविता सुनाई जो बहुत प्रसिद्ध हुई। सैनिक नामक अखबार में मेरी पहली कविता ‘नए साल का अभिनंदन ‘ छपी थी। जो काफी मशहूर हुई और मुझे इसके बाद सम्मेलनों से निमंत्रण आना शुरू हो गए।

आप कवि से एक शिक्षक कैसे बनें…..?

शिक्षक बनने का निर्णय इसलिए लिया क्योंकि उस दौर में कविता कोई आय का माध्यम नहीं होता था। कविता खुद के लिए की जाती थी। मेरे पिता जी ने मुझसे कहा था कि खुद कमा कर खर्चा करने में अलग ही आनंद आता है। एमए पास करने के ठीक बाद मैं एक इंटर कॉलेज में लेक्चरर बन गया। इसके बाद मैं करहल के जैन इंटर कॉलेज में लेक्चरर बन गया जहां मुलायम सिंह यादव मेरे शिष्य थे। इस कॉलेज में मैने भारत के सभी बड़े कवियों को बुलाया था।

आपकी राजनैतिक सफर की शुरुआत कैसे हुई…?

राजनीति जिंदगी का एक अभिन्न अंग है। जैसे सांस के बगैर जिंदा नहीं रह सकते वैसे ही राजनीति आवश्यक है।
हालांकि मेरी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन मैंने शिक्षा के साथ साथ सीपीआई ज्वाइन की थी। उसी दौरान लोहिया जी फर्रुखाबाद से चुनाव लडे थे जिसमे मैने उनकी सहायता की थी। मेरे पास समाजवादी पार्टी में आज तक कोई पद नहीं रहा। सन 1987 में मेरी पत्नी की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद मुलायम सिंह ने 1989 में मुझसे मैनपुरी से लोक सभा चुनाव लडने को कहा, मेरे मना करने पर भी नेता जी ने मुझे टिकट दे दिया। मैं वहां से दो बार जीता। जिसके बाद मैं राज्यसभा में भी रहा।

आपके जीवन से जुड़ा कोई महत्वपूर्ण किस्सा, जो आप बताना चाहेंगे?

एक किस्सा मैं बताना चाहूंगा, गुड़गांव के एक कॉलेज में मैं प्रिंसिपल था। वहां के टीचर्स और मैनेजमेंट के अधिकतर लोग यादव समाज के थे। वहां पर एक यादव छात्र ने एक दलित छात्र को सिर्फ इसलिए पीट दिया क्योंकि वो आगे की बेंच पर बैठ गया था। मुझे ये बहुत बुरा लगा और उस यादव छात्र को मैने निलंबित कर दिया। मैं जात पात के खिलाफ हमेशा रहता था। आरोपी छात्र वहां के मैनेजमेंट के अध्यक्ष का रिश्तेदार था। मुझ पर बहुत दबाव बनाया गया लेकिन मैंने उसका निलंबन वापस नहीं किया। यहां तक वो छात्र मेरा रिश्तेदार भी निकल आया। अंत में मैने यह शर्त रखी कि यदि छात्र उस दलित बालक से माफी मांग ले और और दलित बालक उसका निलंबन वापस लेने को कहे तब मैं करूंगा। जिसके बाद ऐसा ही हुआ, पीड़ित बालक ने आरोपी छात्र को माफ किया और निलंबन वापस हुआ। जिसके बाद मेरे कार्यकाल के दौरान ऐसा करने की हिम्मत किसी की नही हुई।

आपके छात्र मुलायम सिंह से जुड़ा कोई किस्सा जो बताना चाहेंगे ….?

जब ट्रांसफर नारायण कॉलेज शिकोहाबाद में हुआ था, वहां मैंने नकल पर रोक लगा दी। एक बार मेरे टीचर ने मुझे बताया कि इंटर के पेपर में डिप्टी एसपी के बेटे नकल कर रहे। तो मैने उस छात्र की कॉपी बदलवा दी। जिसके बाद वो छात्र वहां से चला गया और पेपर के बाद डिप्टी एसपी मेरे पास आए। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं आपको देख लूंगा। उनके चले जाने के बाद मैने अपने छात्र और उस वक्त के नेता प्रतिपक्ष मुलायम सिंह को फोन किया। हालांकि उनका फोन लगा नही तो मैने एमएलसी प्रभाकर मिश्रा से ये बात नेता जी तक पहुंचाने को कहा। तब वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री थे। ये बात उसी दिन शाम को सदन में उठ गई, नेता जी ने कहा कि क्या ऐसे सीओ को अपने पद पर रहना का अधिकार है, तो वीर बहादुर ने कहा बिलकुल नहीं है और उसका ट्रांसफर कर दिया। उक्त घटना के कुछ वक्त सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के चलते मेरा भी ट्रांसफर वापस पहले वाले कॉलेज में हो गया। जहां एक एसपी ने मुझसे कहा कि उस सीओ का प्रमोशन रुक गया जांच बैठने के कारण, उसको माफ कर दीजिए, जिससे वो एसपी बन पाए। तो मैने ये लिख कर दे दिया था कि अब मेरा ट्रांसफर हो गया है, मुझे पूरी घटना याद नही तत्कालीन प्रिंसिपल को ऐतराज ना हो तो मुझे डिप्टी एसपी से कोई शिकायत नही है। जिसके बाद उस सीओ का प्रमोशन हो पाया। मेरे सांसद बनने के बाद वही सीओ मुझे आगरा के एक कार्यक्रम में एसपी के तौर पर मिले थे। जहां उन्होंने मुझे धन्यवाद कहा।


एक ऐसी घटना और है, 1992 के रथयात्रा के दौर में मुलायम सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कुछ साधुओं को गिरफ्तार करवा दिया था। प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने मुझे दिल्ली बुलाया और कहा कि आप मुलायम सिंह से कहिए कि इन साधुओं को छोड़ दें, वो आपकी बात मानेंगे। मैं दिल्ली से सीधे लखनऊ गया और मेरे कहने पर नेता जी ने तुरंत उन साधुओं को छोड़ दिया। जिस कारण से नवंबर में वो गोलीकांड भी हुआ। इसपे मुलायम सिंह ने मुझसे कहा कि गुरुजी ये आप की वजह से हो गया। उन्होंने अपने इस्तीफे में ये घटना बताई थी। जिसमे उन्होंने लिखा कि मैंने अपने गुरु की बात मानकर उन साधुओं को छोड़ने का निर्णय लिया था जिसका मुझे कोई खेद नही है। यदि उनको ना छोड़ता तो ये घटना ना होती।

पुराने समय में और आज के समय में आपको क्या अंतर लगता है…?

पहले के समय और अब के समय में बहुत अंतर है। तब में और अब मे गिरावट तो आई है। चाहे वो शिक्षा हो, राजनीति हो या परिवार हो। अब पैसे का महत्व ज्यादा है। पुराने ज़माने में शिक्षकों की, पोस्टमास्टर की इज्जत ज्यादा होती थी। जब कि इन लोगो के पास पैसा नहीं होता था। जो महाजन ब्याज पर पैसे चलता था गांवों में लोग उसका पानी नहीं पीते थे। मैंने भी कभी कविता को पैसे से नही तोला। अब कविता में भी बाजारवाद आ गया है। पहले आदमी की अच्छाई बुराई देखी जाती थी, अब सिर्फ पैसा देखा जाता है। और ये अंतर हर क्षेत्र में है।

आप युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे?

मैं युवाओं को ये संदेश देना चाहूंगा कि सबसे पहले अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दे। मैने अब देखा है कि युवाओं का ध्यान अपने स्वास्थ्य पर नही है। पैसे को प्राथिमिकता ना बनाए। अच्छा खाइए, परिश्रम करिए और हमेशा सकारात्मक सोच बनाए रखिए। इसका मतलब ये है कि किसी से घृणा ना करिए, अपने पर ध्यान दीजिए, सदैव आशावादी रहिए। आने वाला समय प्रतिस्पर्धा से भरा हुआ है। तो मेहनत करें, शिक्षा पर ध्यान दे। राष्ट्र से प्रेम करिए। जिस देश में रह रहे है, उसके लिए सोचिए और गांव क्षेत्र को बेहतर बनाइए। अगर किसी को राजनीति में जाना है तो पहले अपने साधन बनाइए। अब तो साधन भी ज्यादा हैं तो आपके पास बहुत विकल्प हैं।