अल्पसंख्यकों का कांग्रेस से किनारा..!

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अल्पसंख्यकों का कांग्रेस से किनारा..!
अल्पसंख्यकों का कांग्रेस से किनारा..!

70 साल तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस से एक-एक कर खिसक रहा वोट बैंक। अब अल्पसंख्यकों ने किया कांग्रेस से किनारा…!

आर.के. यादव

लखनऊ। सवर्ण, दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक मतों को साथ लेकर देश में लंबे समय तक राजकाज चलाने वाली कांग्रेस अब प्रदेश में हाशिये पर आ गई है। दलित, पिछड़ों के बाद अब कांग्रेस पार्टी से अल्पसंख्यक मतदाताओं ने नाता तोड़ लिया। यह अलग बात है कि कांग्रेस के नेता इस बात को मानने का तैयार नहीं है। किंतु दलित वोट पर बसपा का कब्जा और पिछड़ों और अल्पसंख्यक वोट बैंक के बसपा और सपा के बीच हुए बटवारे के कारण कांग्रेस ही रही सही उम्मीदों पर भी पानी फिरता नजर आ रहा है। आलम यह है कि एक-एक कर कांग्रेस का वोट बैंक ही समाप्त होता जा रहा है। इसके बावजूद कांग्रेस पार्टी सत्ता में वापसी का दंभ भरने से बाज नहीं आ रही हैं।


प्रदेश में हाशिये पर चल रही प्रदेश कांग्रेस नगर निकाय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर अपनी खोयी हुई साख को वापस लाने की कवायद में जुटी हुई है। पिछले करीब तीन दशक से सत्ता के बाहर होने की वजह से कांग्रेस संगठन की स्थित भी दयनीय हालत में है। पार्टी नेतृत्व आम जनमानस में पैठ बनाने के लिए आए दिन नए-नए प्रयोग कर रहा है। इन प्रयोगों के बावजूद कांग्रेस का वोट बैंक बढऩे के बजाए घटना ही जा रहा है। पहले कांग्रेस के सबसे मजबूत माने जाने वाले दलित वोट बैंक पर कांशीराम की अगुवाई में मायावती ने कब्जा किया। पिछड़ों और अल्पसंख्यक के वोट बैंक के सहारे पार्टी सपा की मुहिम को भी करारा झटका लगा। बसपा और सपा क बीच अल्पसंख्यकों के मतों के विभाजन की वजह से यह दोनों ही पार्टी इस वोट बैंक को वापस लाने के लिए कोई कोर कसर बाकि नहीं रख रही है।


एक समय में अल्पसंख्यकों को अपना बड़ा वोट बैंक मानने वाली कांग्रेस पार्टी से भी अब इस वोट बैंक ने किनारा कर लिया है। अल्पसंख्यक मतदाताओं का एक बड़ा तबका मोदी सरकार के मुफ्त राशन, सरकार की अल्पसंख्यकों के लिए जारी की गई अन्य योजनाओं के चलते इस वोट बैंक का रूझान सत्तारुढ़ पार्टी से भी जुड़ता दिख रहा है। हकीकत यह है कि अल्पसंख्यक मतदाताओं को अब कांग्रेस के प्रति कोई रुझान नहीं रह गया है। इस वर्ग के मतदाता प्रदेश में हो रहे निकाय चुनाव के दौरान सपा और बसपा की रणनीति से नाराज होकर कांग्रेस के बजाए भाजपा की ओर आकर्षित हो रहे है। ऐसे में प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति बद से बदतर होती नजर आ रही है। कांग्रेस हाईकमान ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को पुराना वर्चस्व वापस लाने के लिए नया प्रयोग किया है। इस प्रयोग के तहत एक प्रदेश अध्यक्ष व छह प्रांतीय अध्यक्ष मनोनीत किए गए हैं। जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर मनोनीत किया गया यह नेतृत्व कितना कारगर साबित होगा यह लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश में होने वाले नगर निकाय व पंचायत चुनाव में देखने का मिलेगा। अल्पसंख्यकों का कांग्रेस से किनारा