गलती की कीमत चुकानी है-गहलोत

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राजस्थान। एसीबी के डीजी हेमंत प्रियदर्शी की गलती की कीमत कौन चुकाएगा। रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार हुए सरकारी कार्मिक का नाम और फोटो उजागर नहीं करने वाला आदेश 6 जनवरी को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के कार्यवाहक डीजी हेमंत प्रियदर्शी ने ही वापस ले लिया है। ऐसा काला आदेश प्रियदर्शी ने ही 4 जनवरी को जारी किया था। अपना ही आदेश लेते वक्त प्रिदर्शी ने कहा कि अब यह चैप्टर क्लोज हो गया है।
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक स्तर के हेमंत प्रियदर्शी भले ही अपनी ओर से चैप्टर को क्लोज माने, लेकिन राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विचार और सोच से अभी यह मामला खत्म नहीं हुआ है। सीएम गहलोत का ध्येय वाक्य है कि हर गलती की कीमत चुकानी होती हैै। इस विचार के चलते ही जुलाई 2020 में कांग्रेस के ही नेता सचिन पायलट से डिप्टी सीएम और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष का पद छीन लिया गया था। हेमंत प्रियदर्शी ने भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वाला जो काला आदेश निकाला, उसमें अशोक गहलोत सरकार की बहुत फजीहत हुई।
यह माना गया कि गहलोत सरकार भ्रष्टाचारियों को बचाने का काम कर रही है। दो दिन में तीन बार मीडिया के सामने आकर गहलोत को सफाई देनी पड़ी। सीएम ने भी माना कि एसीबी के आदेश में गलती हुई है। अब आदेश को वापस लेकर गलती को स्वीकार लिया गया है, तब सीएम के विचार और सोच के मुताबिक सवाल उठता है कि इस गलती की कीमत कौन चुकाएगा। गृह विभाग का प्रभार भी अशोक गहलोत के पास ही है। गहलोत मुख्यमंत्री और गृह मंत्री की हैसियत से पहले ही कह चुके हैं कि दोषपूर्ण आदेश निकालने से पहले हेमंत प्रियदर्शी ने उनसे कोई चर्चा नहीं की।

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यानी गहलोत ने तो स्वयं को निर्दोष घोषित कर दिया है। अब आरोप के दायरे में हेमंत प्रियदर्शी ही आते हैं। हालांकि पूरे पुलिस महकमे के मुखिया प्रदेश के पुलिस महानिदेशक उमेश मिश्रा हैं, लेकिन जैसा हेमंत प्रियदर्शी का स्वभाव है, उससे नहीं लगता कि उन्होंने काला आदेश जारी करने से पहले उमेश मिश्रा से चर्चा की होगी। वैसे भी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के प्रभारी भी डीजी स्तर के ही होते हैं।
इसे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मेहरबानी ही कहा जाएगा कि हेमंत प्रियदर्शी को एडीजी होते हुए भी एसीबी का कार्यवाहक डीजी बनाया। प्रियदर्शी के ही स्थायी डीजी बनने की चर्चा पुलिस विभाग में थी, क्योंकि पिछले चार वर्षों में सीएम गहलोत ऐसे अजूबे करते आए हैं। सीएम गहलोत भले ही एसीबी के काले आदेश से अनभिज्ञता प्रकट करें, लेकिन यह सवाल अब भी कायम है कि क्या इतना बड़ा निर्णय हेमंत प्रियदर्शी अपने स्तर पर कर सकते हैं। और वह भी तब जब उनके पास सिर्फ काम चलाऊ चार्ज हो? हो सकता है कि आने वाले दिनों में प्रियदर्शी के जुबां पर सच आए।