सीटों में कमी को मोदी ने गंभीरता से लिया

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श्याम कुमार

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार की दूसरी पारी में मंत्रियों में विभागों का जो वितरण हुआ है, वह स्पश्ट संकेत दे रहा है कि इसमें केंद्रीय नेतृत्व का योगदान है तथा उसने फूंक-फूंककर कदम उठाया है। केंद्रीय नेतृत्व को विशेष रूप से प्रधानमंत्री मोदी को आभास हो गया कि उत्तर प्रदेश की पिछली योगी-सरकार में मंत्रियों को जो छूट मिल गई थी, उसका भारतीय जनता पार्टी को नुकसान हुआ। मंत्रियों के आचरण से अन्य दलों की पिछली सरकारों तथा भारतीय जनता पार्टी की सरकार में अंतर कम हो गया था। जिन मंत्रियों को वर्तमान मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है, उनमें कतिपय बहुत योग्य हैं और शुरू में बड़े शालीन भी थे। बाद में उनका आम नेताओं-जैसा अहंकारी स्वभाव हो गया और वे जनता की मदद करने के बजाय उसे झांसा देने लगे। कुछ के तो भ्रष्टाचार में काफी लिप्त होने की खबरें आने लगीं।

तमाम मंत्रियों के बारे में यह आम चर्चा थी कि वे जनता की समस्याओं को हल करने में कोई रुचि नहीं लेते हैं, जनता से मिलते नहीं हैं, यहां तक कि उन मंत्रियों से फोन पर भी बात कर पाना संभव नहीं होता है, आदि-आदि।
पिछली सरकार की जो भी सफलता थी, उसका एकमात्र श्रेय प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को था। माफियाओं एवं अन्य अपराधियों के विरुद्ध उनके कड़क रवैये का तथा आजादी के बाद भी सत्तर साल से घोर उपेक्षित रहे हिंदुओं के पक्ष में उनके खुलकर उतर आने का जनता पर बहुत अच्छा असर हुआ। उन्हें हिंदू ह्रदय सम्राट माना जाने लगा। उनकी ईमानदार छवि भी बहुत प्रभावकारी हुई। विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध हर समय दूरबीन एवं खुर्दबीन लगाए रहता है, फिर भी वह मोदी पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगा सका। मोदी के विरुद्ध सिर्फ मनगढ़ंत झूठी बातें फैलाता रहा। उसी प्रकार योगी आदित्यनाथ पर भी विपक्ष भ्रश्टाचार का मामूली आरोप भी नहीं लगा पाया। मोदी की भांति योगी की बड़ी धवल छवि जनता के ह्रदय में बसी हुई थी।


मोदी और योगी की अत्यंत ईमानदार, योग्य एवं स्वच्छ छवि तथा भारी लोकप्रियता के बावजूद उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में सीटों में आशा के अनुरूप बढ़ोत्तरी होने के बजाय इस बार भाजपा की सीटें कम हुईं। इस चुनाव में भाजपा को 255 तथा उसके सहयोगी दलों को 18 सीटें मिलीं। जबकि पिछली बार भारतीय जनता पार्टी को 312 एवं उसके सहयोगी दलों को 13 सीटें प्राप्त हुई थीं। हालांकि भाजपा को इस बार भी जो सीटें मिली हैं, वह प्रचण्ड बहुमत है और भाजपाई उसकी खुषी मना रहे हैं। लेकिन मोदी की पारखी एवं दूरदर्शी निगाहों ने सीटों में हुई कमी को पूरी गंभीरता से लिया। केंद्रीय नेतृत्व को यह समझ में आ गया कि उत्तर प्रदेश में कुछ मंत्रियों के निकम्मेपन, अहंकारी आचरण एवं भ्रश्टाचार के कारण ऐसा हुआ है। इसीलिए केंद्रीय नेतृत्व ने वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव पर दृष्टि केंद्रित करते हुए नए मंत्रिमंडल के गठन में बेहिचक निर्ममतापूर्ण कदम उठाया।


मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बार-बार सचेत करने पर भी अनेक मंत्री अपने आचरण से बाज नहीं आए। योगी आदित्यनाथ ने अनेक बार सचेत किया, किन्तु लोकनिर्माण विभाग एवं नगर विकास विभाग ने प्रदेश की जर्जर सड़कों की दशा नहीं सुधारी। कभी मिट्टी भर दी जाती थी तो कभी मामूली पैचवर्क कर दिया जाता था। फिर भी सड़कें दुर्दशापूर्ण रहती थीं। पांच साल तक प्रदेश की सड़कें गड्ढ़ों से भरी रहीं तथा लोग नरक भोगते हुए उन गड्ढ़ों में हताहत होते रहे। केवल कुछ वीआईपी सड़कों का बार-बार रंगरोगन किया जाता रहा। जनता चिल्लाती रही, किन्तु दोनों विभाग कान में तेल डाले बैठे रहे और भ्रष्टाचार में डूबे रहे।

अधिकतर मंत्रियों से लोगों का मिल पाना तो दूर, उनसे फोन पर सम्पर्क कर पाना भी असंभव हो गया था। मंत्री जनता से कभी मिलते भी थे तो उसके फरियादपत्रों पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होती थी। केशव प्रसाद मौर्य के बारे में तो आम चर्चा थी कि वह समझते हैं कि पिछला विधानसभा-चुनाव उन्हीं की बदौलत भारतीय जनता पार्टी ने जीता। उनके बारे में यह आम चर्चा थी कि वह मुख्यमंत्री बनने के लिए लालायित हैं। उनके निकटवर्ती अनेक लोगों पर तरह-तरह के आरोप लगे। इसी से जनता में इस बात की बहुत सराहना हुई है कि इस बार केशव प्रसाद मौर्य का विभाग बदल दिया गया है। वैसे लोगों का कहना है कि केशव प्रसाद मौर्य खुद चुनाव हार गए हैं तथा उनके जनपद की सारी सीटें भी भाजपा हार गई है, इसलिए उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाने के बजाय प्रदेश-भाजपा का अध्यक्ष बना दिया जाना चाहिए था। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में वह बहुत कारगर होते।


आशुतोष टंडन(गोपालजी) के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने स्वयं अपना नुकसान किया। वह बहुत योग्य हैं और चाहते तो अपने काम से भारी यश अर्जित कर सकते थे। लालजी टंडन से मेरी पांच दशक पुरानी मित्रता थी। किन्तु आशुषुतोष टंडन(गोपालजी) से मेरा कोई खास परिचय नहीं था। जब वह मंत्री बने तो एक दिन मैं अचानक उनके कक्ष में गया तो वहां कुछ अन्य पत्रकार भी बैठे थे। मुझे उतनी देर में गोपालजी की कार्यप्रणाली ने बहुत प्रभावित किया और मैंने उनके बारे में लिखा था कि यदि उनका ऐसा ही रूप कायम रहा तो वह कभी मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं। श्रीकांत शर्मा के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने प्रदेश में बिजली की दषा में चमत्कारिक सुधार किए। भाजपा से पहले सपा की सरकार के समय प्रदेश में बिजली सिर्फ गिनेचुने जिलों के अलावा अन्य जिलों में पूरी तरह नदारद रहती थी। लेकिन श्रीकांत शर्मा पर भी अहंकार हावी हो गया और वह विभाग में भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगा पाए।


स्वाती सिंह का अहंकार में चूर रहना तो बहुत मशहूर था। एक बार कई वरिष्ठ पत्रकारों को समय देकर उन्होंने बहुत इंतजार कराया और फिर भी नहीं मिलीं। जयप्रताप सिंह कभी ईमानदारी के लिए बहुत चर्चित थे। आबकारी विभाग में उन्होंने अच्छा काम किया था। किन्तु स्वास्थ्य मंत्री के रूप में वह विफल रहे। महेंद्र सिंह का पुनः मंत्री न बन पाना लोगों को आष्चर्यजनक लगा और खल भी गया। वह बड़े काबिल एवं विनम्र माने जाते रहे हैं। जब वह संगठन में थे तो वरिष्ठो के चरणस्पर्श किया करते थे। उनके बारे में भी सुना जाने लगा था कि वह भी घमंडी हो गए हैं और अन्य मंत्रियों की भांति जनता को झांसा देने लगे हैं। उनके विभाग पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगा। लोगों का मानना है कि महेंद्र सिंह को अब पार्टी का प्रदेश-अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए। वह स्फूर्तिवान हैं, इसलिए सफल होंगे। वैसे, प्रदेश अध्यक्ष के रूप में श्रीकांत शर्मा एवं डाॅ. दिनेश शर्मा के नाम भी चर्चित हैं।