ममता की छांव में

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केवल प्रसाद सत्यम

मां मेरी अनपढ़ मगर, ज्ञान ध्यान में भोर।
देख अंधेरा द्वेष छल, जने सूर्य सुख घोर।।

मां की ममता छांव में, सकल ब्रह्म विस्तार।
करें प्रगति उत्थान नित, सौंप सभ्यता प्यार।।

मां धरती जल अग्नि नभ, जिए हवा गम्भीर।
दृष्टि वृष्टि से सृष्टि रच, होती नहीं अधीर।।

अजर अमर पावन बहुत, मां गरिमा का नाम।
करें पुष्ट जन जीव जड़, स्वयं कृष्ण श्रीराम।।

काल चक्र करके यहाँ, प्रतिक्षण कुटिल प्रहार।
मिटा नहीं पाया कभी, सृजन प्रेम उपकार।।

राम कृष्ण दिन रात के, प्रगति चक्र आधार।
सत्य प्रेम यश सौंप कर, करें सृष्टि विस्तार।।

सीता राधा रुक्मिणी, सावित्री सुख वार।
जीवन भर खटतीं रहीं, सौंप सभ्यता प्यार।।

जीवन–बन्धन प्रेम का, जैसे तितली–रंग।
सुन्दर चंचल मोहनी, प्रतिपल भरें उमंग।।

एक क्रुद्ध सौ युद्ध रण, करके जाता हार।
अन्त शांति की शरण में, जा कर पाता प्यार।।