नाम मुलायम काम रहा फौलादी

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नाम मुलायम है, लेकिन काम बड़ा फौलादी है… जिसका जलवा कायम है उसका नाम मुलायम है।

नब्बे के दशक में इन नारों की गूंज ने उत्तर प्रदेश से कांग्रेस की नींव ही नहीं हिलाई बल्कि उसके तत्कालीन राष्ट्रीय नेताओं और राहुल प्रियंका के पूर्वजों के घर से उनकी पार्टी का बोरिया बिस्तर समेटने की भी बुनियाद रख दी। इसी कालखंड में देश की राजनीति की दिशा व दशा तय करने वाली लोकसभा सीटों के लिहाज से सबसे बड़े एवं महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में छोटे कद के मुलायम के बड़े सियासी किरदार की धमाकेदार आमद दर्ज हुई। इस किरदार ने नए जातीय गुणा-भाग के ऐसे प्रयोग किए, जिससे न सिर्फ प्रदेश नए राजनीतिक समीकरणों की रचना हुई बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी सर्वथा नई सियासी गणित की शुरुआत हो गई। राम मनोहर लोहिया और राजनारायण जैसे समाजवादी विचारधारा के नेताओं की छत्रछाया में सियासी सफर शुरू करने वाले मुलायम वर्ष 1967 में 28 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने। मुलायम लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, चरणसिंह के भारतीय क्रांति दल, भारतीय लोकदल व समाजवादी जनता पार्टी में रहे। 4 अक्तूबर 1992 में समाजवादी पार्टी बनाई, अपनी सरकार बनाने या बचाने के लिए बसपा, भाजपा और कांग्रेस से दोस्ती से भी परहेज नहीं किया।

नेताजी ने शहीदों के शव उनके घर पहुंचाने का कानून बनाया– मुलायम सिंह 1996 में रक्षामंत्री बने थे। उस समय कोई भी जवान शहीद होता था तो उसका शव उसके घर नहीं पहुंचाया जाता था। सेना के जवान खुद अंतिम संस्कार करते थे और शहीद के घर उसकी एक टोपी भेज दी जाती थी। मुलायम ने यह नियम बदला। कानून बनाया कि जब भी कोई जवान शहीद होगा तो उसका पार्थिव शरीर पूरे सम्मान के साथ उसके घर ले जाया जाएगा। डीएम-एसएसपी पार्थिव देह के साथ उसके घर जाएंगे।

जहाँ जन्मा लाल उसे बनाया मिसाल

जिस सैफई में लिया जन्म, उसे बनाया मिसाल स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय और हवाई पट्टी तक है सैफई में गांव के स्पोर्ट्स कांप्लेक्स में क्रिकेट व एथलेटिक्स स्टेडियम भी लखनऊ। सपा संरक्षक मुलायम सिंह जिस सैफई गांव में जन्मे, उसे विश्वमंच पर चमकाया भी है। आज सैफई की पहचान ऐसे गांव की है, जहां प्राइमरी स्कूल, विश्वविद्यालय और हवाई पट्टी से लेकर शॉपिंग कॉम्प्लेक्स तक है। इस गांव के जरिए उन्होंने एक नया मॉडल देने का प्रयास इटावा जिले का नाम आते ही आंखों के सामने बीहड़ का नजारा तैरता है लेकिन सैफई शब्द सुनने पर एक ऐसे गांव की छवि सामने आती है, जहां महानगरों की तरह हर सुविधाएं हैं।

गांव से निकलकर मुलायम सिंह यादव सियासी फलक पर छा गए। सैफई के पास से मैनपुरी-इटावा चार लेन स्टेट हाईवे गुजरता है। साथ ही यह गांव आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे से भी जुड़ा है। मुलायम सिंह ने गांव में सिर्फ अस्पताल ही नहीं यूपी यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेस और नर्सिंग व फार्मेसी कॉलेज बनाया। इस विवि में होने वाले सेमिनार में देश ही नहीं दुनिया भर से चिकित्सा विशेषज्ञ आते हैं। ये विशेषज्ञ यहां आने के बाद सैफई देखने के बाद ही लौटते हैं। इतना ही नहीं गांव के स्पोर्ट्स कांप्लेक्स में क्रिकेट स्टेडियम और एथलेटिक्स स्टेडियम भी बना है। हवाई पट्टी पर यहां वर्ष 2015 में वायुसेना ने मिराज 2000 को उतारा था और वर्ष 2018 में वायुसेना ने यहां अभ्यास भी किया था। इसकी वजह से सैफई की चर्चा दुनियाभर में हुई। गांव में कांवेंट स्कूल और डिग्री कॉलेज भी हैं। यहां के डिग्री कॉलेज में बायोटेक्नोलॉजी, बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन जैसे विषयों की भी पढ़ाई हो रही है।

सैफई में 24 घंटे बिजली की सुविधा है। जलापूर्ति से लेकर जल संचयन का भी इंतजाम है। यहां बने बहुमंजिला इमारत दिल्ली और मुंबई की याद दिलाते हैं। इसे लेकर कई बार आलोचना हुई लेकिन मुलायम सिंह ने इसकी परवाह नहीं की। इसी गांव से वह नेताजी बनकर निकले और पूरी पार्टी के लिए इसी नाम से पहचाने जाने लगे। जो गांव मुलायम सिंह के नाम पर इतराता था, अब -वहां शोक का माहौल है। मंगलवार शाम तीन बजे इसी गांव में मुलायम सिंह का अंतिम संस्कार होगा।भव्य सैफई महोत्सव से मिलीं सुर्खियां प्रदेश की सत्ता में रहते हुए सपा ने भव्य सैफई महोत्सव का आयोजन किया। यह चर्चा का विषय रहा। कभी इसके बजट को लेकर तो कभी फिल्म अभिनेत्रियों को लेकर आलोचना भी हुई। सैफई महोत्सव के दौरान यहां वीआईपी की लाइन लग जाती थी।

अजित को चित कर मुलायम बन गए चौधरी

वीपी सिंह ने छोटे चौधरी को सीएम बनाने की घोषणा की, मुलायम ने ऐन वक्त पर पलट दी बाजी। उन्होंने प्रदेश में जनता दल की सरकार बनने पर खुद को मुख्यमंत्री पद का स्वाभाविक दावेदार मान लिया था। इस पूरे घटनाक्रम के साक्षी रहे समाजवादी नेता मुलायम सिंह के पहली बार मुख्यमंत्री बनने की कहानी निर्मल सिंह बताते हैं कि वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने और उन्होंने छोटे चौधरी अजित सिंह को यूपी का मुख्यमंत्री तथा मुलायम को उप मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर दी। पर कई विधायकों ने मुलायम को मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठा दी।

खुद मुलायम ने उप मुख्यमंत्री का पद ठुकरा दिया। केंद्र से मधु दंडवते और चिमन भाई पटेल को उन्हें समझाने के लिए भेजा गया। बात नहीं बनी तो दोपहर बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद भी आए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। विधायकों के मतदान से नेता के चयन का फैसला हुआ। चौधरी अजित सिंह को भरोसा था कि उन्हें वीपी सिंह के जनमोर्चा घटक के विधायकों का समर्थन मिलेगा और वे नेता चुन लिए जाएंगे। पर, मुलायम ने तगड़ा दांव खेलते हुए अजीत सिंह के खेमे के ही 11 विधायकों को न सिर्फ तोड़ लिया, बल्कि जनमोर्चा के विधायकों का भी समर्थन हासिल कर लिया। निर्मल सिंह बताते हैं। कि मतदान में पांच वोट से मुलायम ने बाजी मार ली और वे पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

इन सभी ने मिलकर जनता दल बनाया। यूपी में मुलायम क्रांति रथ निकाल कर गांव-गांव भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों के गुस्से को स्वर देते हुए राजनीतिक ताकत जुटा रहे थे। बोफोर्स तोप घोटाले को लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार से अलग हो चुके थे। उन्होंने पूरे देश में नेहरू परिवार तथा कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए बिगुल बजा दिया। उन्होंने जनमोर्चा बनाया जिसमें कांग्रेस से अलग हुए कुछ और नेता थे। उनकी मुहिम को जनसमर्थन मिला तो कांग्रेस विरोधी अन्य दल भी उनके साथ आ खड़े हुए थे। इनमें तत्कालीन लोकदल (ब) के नेता मुलायम सिंह यादव और लोकदल (अ) यानी चौधरी अजित सिंह भी थे। चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद लोकदल दो हिस्सों में बंट गया था।