बेबसी की रातों में छटपटाती ज़रूरतें….!

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डॉ0 अम्बरीष राय

एक तरफ 22 करोड़ में 15 करोड़ लोगों को पांच किलो अनाज देकर जिलाया जा रहा है. और दूसरी तरफ़ दुनिया का चौथा सबसे बड़ा एयरपोर्ट खोले जाने का दावा है, उद्घाटन है, सरकारी रैली है. ये एक भगवाधारी योगी मुख्यमंत्री का प्रदेश है. ये एक फ़कीर होने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र का प्रदेश है. फ़कीर कितना फ़कीर है, प्रधानमंत्री बनने के पहले लोगों ने देखा है. गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से पहले हम जैसों ने देखा है. भगवाधारी कितना योगी है, ये महंत अवैद्यनाथ से बेहतर कौन जान सकता था. बहरहाल अवैद्यनाथ नाथ परम्परा की कमज़ोरी साबित हुए तो आदित्यनाथ एक तमाशा. गुरु गोरखनाथ की समृद्ध परम्परा एक दिन जाति विशेष के महंतों से गुज़रती परिवारवाद पर रुक गई है. आगे देखना दिलचस्प होगा. लाज़िम है हम देख रहे हैं.

काश मैं चारण होता तो दरबारी होता. दरबार के सुख मेरे बगलगीर होते लेकिन ऐसा हो ना सका. सच के रास्ते में ये पड़ाव हो न सका. भारत की बात करूं तो बेबसी की रातों में छटपटाती ज़रूरतें दिन के उजाले में मरती उम्मीदों की हमजोली हैं. खाये अघाये वर्ग के विमर्श में इंडिया कहीं ज़रूर तरक्क़ी कर रहा होगा लेकिन भारत घसीट रहा है अपने आपको, अपने सपनों को, अपनी मज़बूरी को. मौजूदा दौर का निज़ाम वैचारिक रूप से कितना अभावग्रस्त है, इसका एहसास तब होता है, जब दीनदयाल उपाध्याय जी वैश्विक परिदृश्य में बिक नहीं पाते. श्यामा प्रसाद मुख़र्जी विमर्श के हिस्से में टूट जाते हैं. डॉ केशवराव बलिराम राव हेडगेवार संघ के स्वयंसेवकों तक सिमटकर रह जाते हैं. माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ‘गुरु जी’ तस्वीरों में टंगे, अपने होने के आयाम ढूंढते हैं. हॉफ पैंट से फुल पैंट की अपनी यात्रा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सत्ता के शीर्ष तक तो ज़रूर पहुंचा लेकिन उसके राजनीतिक संस्करण को कांग्रेसी ही पूजने पड़ते हैं.

संघ भाजपा के शलाका पुरुष इतने ही सर्वव्यापी होते तो ये देश अभी भी ‘लैंड ऑफ गांधी’ नहीं कहा जाता. भारत से विदेश जाने वाले हर प्रधानमंत्री की यही पहचान है कि वो गांधी के देश से आया है. नेहरू की राजनीतिक ज़मीन से आया है. भगवा कुनबे से बने दो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हों या फिर नरेंद्र मोदी वैश्विक मंच पर आप इनको डॉ हेडगेवार या गुरु जी की बात करते नहीं सुने होंगे. इनको कांग्रेसी महापुरुषों की ही आवभगत करनी पड़ती है. बावजूद इसके कि इन्हीं को कोसते, निंदा करते वो एक पूरा स्कूल पास कर यहां तक आए हैं.

शिद्दत से सर्वमान्य महापुरूषों की कमी झेलती ये जमात महापुरुषों को उधार ले रही है, ज़बरदस्ती के नैरेटिव गढ़ रही है. कभी वो बाबा साहेब अम्बेडकर को चुराना चाहती है तो कभी उसको सरदार वल्लभभाई पटेल प्यारे लगने लगते हैं. वो सरदार पटेल जो इस पूरी विचारधारा को समूल नष्ट कर देना चाहते थे, उनकी विश्व रिकार्डधारी मूर्ति ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ की शक़्ल में नव मूर्खों के फ़र्जी इतिहासबोध का मर्सिया पढ़ रही है. जिस पंडित जवाहरलाल नेहरू की उदारता के चलते मौजूदा भगवा कुनबा बचा, वो नेहरू इस जमात के सस्ते विमर्श का हिस्सा हैं, निंदनीय हैं. आप इन बातों को ऐसे समझ सकते हैं कि कांग्रेस मुक्त भारत की बात करने वाली मोदी एंड टीम की पूरी ताक़त इसी कांग्रेस से तोड़फोड़ कर लाए कांग्रेसियों से आकार ले रही है.

आज़ाद भारत के नायकों की जब भी चर्चा होगी तो आज़ादी के आंदोलन की भी बात होगी. और आज़ादी के आंदोलन की बात होगी तो मौजूदा सत्ताधीशों के पूर्वजों की भी बात होगी. और इस बात में, आज़ादी की लड़ाई में सावरकर को छोड़कर कोई चेहरा दिखता नहीं. और एक माफ़ीनामे ने सावरकर को, उनकी इमेज को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया है.

ख़ैर लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती एक निश्चित अंतराल पर होने वाले चुनाव हैं. इन्हीं चुनावों में जनता एक दिन के लिए जनार्दन होती है. और फिर जनार्दन का चुनाव कर जनता हो जाती है. हिन्दू सम्राट की गढ़ी गई इमेज के साथ प्रधानमंत्री के पद पर जा पहुंचे नरेंद्र मोदी कभी अपने को बनिया कहकर अपने को चतुर व्यापारी साबित करने लगते हैं तो कभी अपने आपको पिछड़ी जाति का कहकर अपनी राजनीतिक संभावनाएं मज़बूत करने लगते हैं. महंत जी तो भगवाधारी हैं. बड़ी चालाकी से राष्ट्र की अस्मिता को केसरिया से भगवा कर चुकी जमात एक उग्र भगवाधारी के साथ हिन्दू ध्रुवीकरण में लगी है. जिसका फ़ायदा उसको सत्ता तक ले जाएगा. और सत्ता में पहुंचाने वाले फिर बिलबिलाएंगे. अभी तो उनको अफगानिस्तान होने से बचना है. अभी टीके को टोपी से जान बचानी है. ऑक्सीजन की कमी से मरने वाले प्रदेश में,अंतिम संस्कार के अभाव में गंगा में बहती लाशों के प्रदेश में अभी हिन्दू को बचाना है. लाज़िम है हम देखेंगे.