जल आधारित पेशों पर रहा है निषाद जातियों का पुश्तैनी अधिकार,भाजपा ने कर दिया बेदखल-लौटनराम निषाद

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निषाद नश्ल की 8 जातियाँ एससी में,4 जातियाँ व 5 उपजातियाँ ओबीसी में।जल आधारित पेशों पर रहा है निषाद जातियों का पुश्तैनी अधिकार,पर भाजपा ने कर दिया बेदखल।

लखनऊ। राष्ट्रीय निषाद संघ (एनएएफ) के राष्ट्रीय सचिव चौ.लौटनराम निषाद ने बताया कि जल आधारित पेशों पर निषाद जातियों का पुश्तैनी अधिकार रहा है।बालू मोरम खनन,निकासी,मत्स्याखेट व शिकारमाही, मत्स्यपालन, नौकाफेरी, सिंघाड़ा,कमलगट्टा, तेलमखाना का उत्पादन,खैर बनाना व नदियों की कछार में खरबूज,तरबूज आदि जायद की फसलें उगाना इनका परम्परागत पुश्तैनी पेशा रहा है।जिसे भाजपा की सरकारों ने सार्वजनिक कर नीलामी के अंतर्गत लाकर इन्हें बेदखल कर दिया।उन्होंने बताया कि निषादों की देशभक्ति से चिढ़कर 1871 में क्रिमिनल एक्ट बनाकर मल्लाह,केवट,कहार,लोध,किसान आदि निषादवंशीय जातियों को जरायमपेशी/क्रिमिनल कास्ट घोषित कर दिया।निषादों की रोजी-रोटी छिनने के लिए प्रिवी कौंसिल द्वारा 1878 में 4 काले कानून-नॉर्दर्न इंडिया फेरीज एक्ट,नॉर्दर्न इंडिया माइनिंग एक्ट, नॉर्दर्न इंडिया फिशरीज एक्ट व नॉर्दर्न इंडिया फॉरेस्ट एक्ट-1878 ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा बनाया गया।


निषाद ने बताया कि 10 अगस्त,1950 को राष्ट्रपति के द्वारा जारी अधिसूचना में निषाद नश्ल की 8 जातियों-मझवार, तुरैहा,गोंड़,बेलदार,खरवार,खैरहा,खोरोट,पनिका आदि को अनुसूचित जाति में रखा गया।भारत सरकार के महापंजीयक व जनगणना आयुक्त द्वारा सेन्सस-1961 के लिए उत्तर प्रदेश को जारी दिशा-निर्देश में मझवार की पर्यायवाची व वंशानुगत जाति नाम के रूप में माँझी, मल्लाह,केवट,मुजाबीर,राजगौड़, गोंड़ मंझवार के नाम का उल्लेख है। 20 अगस्त,1978 को जनता पार्टी की सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग की आरक्षण सूची में मल्लाह,केवट को कह दिया गया।जो राज्य सरकार के अधिकार के बाहर था।


निषाद ने बताया कि निषाद समुदाय की मल्लाह,केवट,बिन्द, धीवर जातियाँ वर्तमान में अन्य पिछड़े वर्ग में हैं।गोड़िया, धुरिया, रैकवार, बाथम इनकी उपजातियाँ हैं,जो किसी आरक्षण सूची में नहीं हैं।निषाद समुदाय की ओबीसी व एससी में शामिल जातियों की संख्या 12.91 प्रतिशत है।उत्तर प्रदेश की 403 में 209 विधानसभा क्षेत्रों में निषाद वोटबैंक 30 हजार से 1.15 लाख है।पूर्वांचल की 91 विधानसभा क्षेत्रों में निषाद वोटबैंक निर्णायक है।


रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया व सेन्सस कमिश्नर को मुख्यमंत्री द्वारा पत्र भेजवाकर मझवार की उपजातियों के सम्बंध में माँगी गयी जानकारी को झूठा भुलावा व राजनीतिक नाटकबाजी बताया है।उन्होंने कहा कि निजस्वार्थ में संजय निषाद हवा में बात कर निषाद समाज को बेवकूफ बना रहे थे।उन्हें अनुसूचित जाति में शामिल करने व परिभाषित करने की संवैधानिक प्रक्रिया की एबीसी भी मालूम नहीं।पॉलिटिकल गॉडफादर ऑफ फिशरमैन की स्वघोषणा कर निषाद समाज को ब्लैकमेल करते रहे।उन्होंने कहा कि जब आरक्षण की सारी औपचारिकता पूरी हो गयी थी तो 17 दिसम्बर को मुख्यमंत्री व गृहमंत्री ने घोषणा क्यों नहीं किये?निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद रैली मंच से आरक्षण व अधिकार का प्रस्ताव क्यों नहीं रखे….?


अनुसूचित जाति में रखने व परिभाषित करने के सम्बंध में राज्य सरकार केन्द्र सरकार को संस्तुति व प्रस्ताव नृजातीय अध्ययन रिपोर्ट औचित्य दर्शाते हुए भेजती है।सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय उसे आरजीआई(गृह मंत्रालय) को अग्रसारित कर भेजता है।आरजीआई द्वारा सहमत होने पर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पास भेज दिया जाता है।आयोग के सहमत होने पर गृह मंत्रालय आता है और सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय कैबिनेट बिल बनाता है,जिसे मंत्रिमण्डलीय समूह की सहमति से लोकसभा व राज्यसभा में चर्चा कराकर पास होने पर राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर हेतु जाता।राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरीत होने पर राजपत्र व राजाज्ञा जारी होती है।राजपत्र जारी होने पर गृह मंत्रालय द्वारा राज्य सरकार को आदेश पत्र भेजा जाता है।समाज कल्याण विभाग द्वारा समस्त मण्डलायुक्तों/जिलाधिकारियों व विभागों को शासनादेश की प्रतियाँ अनुपालन हेतु भेजी जाती है।संजय निषाद वही काम किये हैं जैसे किसी को बिच्छू का दवा मालूम नहीं,पर साँप के बिल में हाथ डाल देता है।