हमारी विरासत साहित्यकार शैलेश मटियानी

171
हमारी विरासत साहित्यकार शैलेश मटियानी
हमारी विरासत साहित्यकार शैलेश मटियानी

हमारी विरासत साहित्यकार शैलेश मटियानी,लोक संस्कृति की धरोहर राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत मुनाल लुप्त हो रही लोक विधा के संरक्षण और संवर्धन मैं प्रयासरत है।

अजय सिंह

लखनऊ। मुनाल बुध बसंती सभागार में प्रसिद्ध साहित्यकार शैलेश मटियानी जी पर चर्चा हुई कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे उत्कर्ष के संपादक हरीश उपाध्याय ने बताया शैलेश मटियानी नई कहानी आंदोलन के दौर के कहानीकार एवं प्रसिद्ध गद्यकार थे।  मुनालश्री विक्रम बिष्ट ने चर्चा करते हुए बताया की शैलेश मटियानी का जन्म 14 अक्टूबर 1931 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के बाड़ेछीना नामक गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम रमेशचंद्र सिंह मटियानी था। बारह वर्ष की अवस्था में उनके माता-पिता का देहांत हो गया था, तब वे पाँचवीं कक्षा में पढ़ते थे, इसीलिए उनका पालन-पोषण चाचा लोगों के संरक्षण में हुआ। निरंतर विद्याध्ययन में व्यवधान पड़ता रहा और पढ़ाई रुक गई। इस बीच उन्हें बूचड़खाने तथा जुए की नाल निकालने का काम करना पड़ा। पाँच साल बाद 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने फिर से पढ़ना शुरु किया।

समाजसेवी देवीश्री पवार व गीता सिंह ने अपने विचार रखते हुए कहा मटियानी जी हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद रोजगार की तलाश में पैत्रिक गाँव छोड़कर 1951 में दिल्ली आ गए। यहाँ वे ‘अमर कहानी’ के संपादक, आचार्य ओमप्रकाश गुप्ता के यहाँ रहने लगे। ‘अमर कहानी‘ और ‘रंगमहल’ से उनकी कहानी पहले ही प्रकाशित हो चुकी थी। इसके बाद वे इलाहाबाद गए।

उन्होंने मुज़फ़्फ़र नगर में भी काम किया। दिल्ली आकर कुछ समय रहने के बाद वे बंबई चले। बंबई से फिर अल्मोड़ा और दिल्ली होते हुए वे इलाहाबाद आ गए और कई वर्षों तक वहीं रहे।  लोक कलाकार कंचन शर्मा व मधु माथुर ने उनके जीवन में प्रकाश डालते हुए बताया 1992 में छोटे पुत्र की मृत्यु के बाद उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। जीवन के अंतिम वर्षों में वे हल्द्वानी आ गए। विक्षिप्तता की स्थिति में उनकी मृत्यु 24 अप्रैल 2001 को दिल्ली के शहादरा अस्पताल में हुई।

यश भारती ऋचा जोशी ने भी विचार रखते हुए बताया 1950 से ही उन्होंने कविताएँ और कहानियाँ लिखनी शुरू कर दी थीं। शुरु में वे रमेश मटियानी ‘शैलेश’ नाम से लिखते थे। उनकी आरंभिक कहानियाँ ‘रंगमहल’ और ‘अमर कहानी’ पत्रिका में प्रकाशित हुई। उन्होंने ‘अमर कहानी‘ के लिए ‘शक्ति ही जीवन है’ (1951) और ‘दोराहा’ (1951) नामक लघु उपन्यास भी लिखे। उनका पहला कहानी संग्रह ‘मेरी तैंतीस कहानियाँ’ 1961 में प्रकाशित हुआ। उनकी कहानियों में ‘डब्बू मलंग’, ‘रहमतुल्ला’, ‘पोस्टमैन’, ‘प्यास और पत्थर’, ‘दो दुखों का एक सुख’ (1966), ‘चील’, ‘अर्द्धांगिनी’, ‘जुलूस’, ‘महाभोज’, ‘भविष्य’ और ‘मिट्टी’ आदि विशेष उल्लेखनीय है।

कहानी के साथ ही उन्होंने कई प्रसिद्ध उपन्यास भी लिखे। उनके कई निबंध संग्रह एवं संस्मरण भी प्रकाशित हुए। उन्होंने ‘विकल्प’ और ‘जनपक्ष’ नामक दो पत्रिकाएँ निकाली।  इस अवसर पर पूर्णिमा बाजपेई शैलजा श्रीवास्तव रागिनी अग्रवाल आशा मौर्या चंदू जोशी प्रेम सिंह बिष्ट प्रसिद्धि जोशी आशू नौटियाल प्रमिला जोशी आदि ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए उनकी कहानी संग्रह के विषय में बताया
‘मेरी तैंतीस कहानियाँ’ (1961)
‘दो दुखों का एक सुख’ (1966)
‘दूसरों के लिए’ (1967)
‘सुहागिनी तथा अन्य कहानियाँ’ (1968)
‘सफ़र पर जाने के पहले’ (1969)
‘हारा हुआ’ (1970)
‘अतीत तथा अन्य कहानियाँ’ (1972)
‘मेरी प्रिय कहानियाँ’ (1972)
‘पाप मुक्ति तथा अन्य कहानियाँ’ (1973)
‘हत्यारे’ (1973)
‘बर्फ़ की चट्टानें'(1974)
‘जंगल में मंगल’ (1975)
‘महाभोज’ (1975)
‘चील’ (1976)
‘प्यास और पत्थर’ (1982)
‘नाच, जमूरे नाच’ (1989)
‘माता तथा अन्य कहानियाँ’ (1993)
‘भविष्य तथा अन्य कहानियाँ’
‘अहिंसा तथा अन्य कहानियाँ’
‘भेंड़े और गड़ेरिए’
शैलेश मटियानी की इक्यावन कहानियाँ (1996; विभोर प्रकाशन, इलाहाबाद से, पुनः विभा प्रकाशन, चाहचंद रोड, इलाहाबाद से-2013)
उपन्यास
‘बोरीवली से बोरीबन्दर’ (1959)
‘कबूतरखाना’ (1960)
‘हौलदार’ (1961)
‘चिट्‌ठीरसैन’ (1961)
‘तिरिया भली न काठ की’ (1961)
‘किस्सा नर्मदाबेन गंगू बाई’ (1961)
‘चौथी मुट्ठी’ (1961)
‘बारूद और बचुली’ (1962)
‘मुख सरोवर के हंस’ (1962)
‘एक मूठ सरसों’ (1962)
‘बेला हुई अबेर’ (1962)
‘कोई अजनबी नहीं’ (1966)
‘दो बूँद जल’ (1966)
‘भागे हुए लोग’ (1966)
‘पुनर्जन्म के बाद’ (1970)
‘जलतरंग’ (1973)
‘बर्फ़ गिर चुकने के बाद’ (1975)
‘उगते सूरज की किरण’ (1976)
‘छोटे-छोटे पक्षी’ (1977)
‘रामकली’ (1978)
‘सर्पगन्धा’ (1979)
‘आकाश कितना अनंत है’ (1979)
‘उत्तरकांड, डेरेवाले (1980)
‘सवित्तरी’ (1980)
‘गोपुली गफूरन’ (1981)
‘बावन नदियों का संगम’ (1981)
‘अर्द्ध कुम्भ की यात्रा’ (1983)
‘मुठभेड़’ (1983)
‘नागवल्लरी’ (1985)
‘माया सरोवर’ (1987)
‘चंद औरतों का शहर’ (1992)
निबंध और संस्मरण
‘मुख्य धारा का सवाल’,
‘कागज की नाव’ (1991),
‘राष्ट्रभाषा का सवाल’,
‘यदा कदा’,
‘लेखक की हैसियत से’,
‘किसके राम कैसे राम’ (1999),
‘जनता और साहित्य’ (1975),
‘यथा प्रसंग’,
‘कभी-कभार’ (1993),
‘राष्ट्रीयता की चुनौतियाँ’ (1997)
‘किसे पता है राष्ट्रीय शर्म का मतलब’ (1995)
सम्मान
प्रथम उपन्यास ‘बोरीवली से बोरीबंदर तक’ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत;
‘महाभोज’ कहानी पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘प्रेमचंद पुरस्कार’;
सन् 1977 में उत्तर प्रदेश शासन की ओर से पुरस्कृत;
1983 में ‘फणीश्वरनाथ रेणु’ पुरस्कार’ (बिहार);
उत्तर प्रदेश सरकार का ‘संस्थागत सम्मान’;
देवरिया केडिया संस्थान द्वारा ‘साधना सम्मान’;
1994 में कुमाऊँ विश्वविद्यालय द्वारा ‘डी.लिट.’ की मानद उपाधि;
1999 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा ‘लोहिया सम्मान’;
2000 में केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा ‘राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार’। हमारी विरासत साहित्यकार शैलेश मटियानी