विद्यार्थी जीवन में हास्‍टल में ना रह पाने का दर्द

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विद्यार्थी जीवन में हास्‍टल में ना रह पाने का दर्द
विद्यार्थी जीवन में हास्‍टल में ना रह पाने का दर्द

बेंजामिन तिवारी बहुत दिन बाद टहलने निकले थे। अक्‍सर दो पैग ज्‍यादा हो जाने के चलते पिछले एक साल से वह अपने शरीर पर ध्‍यान नहीं दे पा रहे थे। कल पीते समय मारपीट हो गई थी, लिहाजा उन्‍हें एक पैग से ही काम चलाना पड़ा था। नतीजतन सुबह आंख समय से खुल गई थी। तोंद कुछ ज्‍यादा ही निकल आया था। लिहाजा अपने शरीर पर ध्‍यान देना ज्‍यादा मुनासिब मानते हुए टहलने निकल पड़े थे। टहलते समय उनके शिष्‍य गड़ासा सिंह मिल गये, जो अपने बच्‍चे को स्‍कूल छोड़कर आ रहे थे। गड़ासा ने अपने गुरु को पार्क के पास खड़े देखकर जोरदार सलामी ठोंकी। गदगद गुरु ने कहा, “जीते रहो अनुज। पीते रहो मनुज।” विद्यार्थी जीवन में हास्‍टल में ना रह पाने का दर्द

गड़ासा ने सलामी देने के बाद पूछा, ‘’गुरु आप आज इधर कैसे भटक गये? पार्क आना आपको शोभा देता है क्‍या?’’

‘’अनुज कल पीने-खाने के दौरान मारपीट हो गई। तोंद निकल जाने से टाइम से उठ नहीं पाया और दो-तीन हाथ पड़ गया। अब ऐसा ना हो इसके लिये फिट होना जरूरी है’’, बेंजामिन गुरु ने अपने चेले को दुख भरी कहानी सुनाई।

घटना से आहत गड़ासा ने कहा, ‘’गुरु यह सही नहीं हुआ आपके साथ। हम ईंट से ईंट बजा देंगे। आप नाम बताओं सालों का।‘’

‘’इसकी कोई जरूरत नहीं है अनुज। हमने मारपीट में कभी भरोसा नहीं किया। हमने कई बार मार खा लिया, लात खा लिया, लेकिन कभी हिंसा करने की नहीं सोची। हिंसा किसी समस्‍या का हल नहीं है’’, बेंजामिन गुरु ने बेहद दार्शनिक अंदाज में यह बात कही।

अपने गुरु के चेहरे पर आये दार्शनिक भाव में गड़ासा को साक्षात गांधी नजर आये, पर वो कन्‍फ्यूज था कि ये नोट पर वाले गांधी जी हैं या फिर सरकारी कार्यालयों में टंगे रहने वाले। खैर, उसने इन कन्‍फ्यूजन में ना पड़ते हुए उन्‍हें जीपीओ वाला गांधीजी मान लिया। बहुत ही आदर भाव से कहा, ‘’गुरु आप साक्षात अवतार हैं। देश आजाद हो गया है नहीं तो आप पक्‍का देश आजाद करा देते। गांधी जी भी कहते थे कि कोई एक गाल पर मारे तो दूसरा आगे कर दो और आप तो गाल आगे नहीं करते हो तब भी पीठ पर, पेट में, मुंह पर मारे जाते हो। आप तो गांधीजी से भी ज्‍यादा महान हो गुरु। आप के जैसा विचारक इस देश के लिये बेहद जरूरी है।‘’

बेंजामिन गुरु के चेहरे पर विजयी भाव उभरा। रात में मार खाने का दर्द एक पल में काफूर हो गया। उन्‍होंने कहा, ‘’अनुज अब जा रहा हूं इस पार्क का पांच चक्‍कर लगाने।‘’

‘’गुरु मेरे रहते आप अकेले पार्क का चक्‍कर लगाओगे तो यह मेरे लिये अपमानजनक होगा। आप बैठो मेरी बाइक पर’’, बहुत ही श्रद्धानवत होते हुए गड़ासा ने कहा।

भावविभोर होकर बेंजामिन गुरु गड़ासा के बाइक पर बैठ गये। गड़ासा ने बाइक से पार्क का दस चक्‍कर लगाया। ग्‍यारहवां लगाने ही जा रहा था कि गुरु ने कहा, ‘’अनुज आज दस चक्‍कर टहलना ही पर्याप्‍त है। अब बाइक रोक दो। पहले ही दिन दस से ज्‍यादा चक्‍कर लगायेंगे तो थक जायेंगे। तुम ऐसे करो कि मुझे भौंकेंद्र शुक्‍ला के घर छोड़ दो, आज नाश्‍ता वहीं करेंगे।‘’

गड़ासा ने अपने गुरु बेंजामिन को भौंकेंद्र के घर के नीचे छोड़कर प्रणाम करता निकल गया। बेंजामिन पहले तल पर रहने वाले भौंकेंद्र के घर पहुंचे और दरवाजा खटखटाया। पहले से ही दुखी भौकेंद्र दरवाजा खोलते और दुखी हो गया। सुबह-सुबह बेंजामिन को देखकर वह भक्‍क रह गया। कुछ देर पहले ही भौकेंद्र को उसकी पत्‍नी ने पीटा था, और वो ऊंची आवाज में चिल्‍ला भी नहीं पाया था। अब गुरु को देखकर भौकेंद्र का जो कुछ भी सुलग सकता था मसलन गुस्‍सा और आदि इत्‍यादि, सुलगने लगा था। उसने कहा, ‘’गुरु सवेरे सवेरे कहां से टपक पड़े..?’’

‘’यह किस तरह का सवाल है अनुज..? क्‍या तुम मेरे आने से खुश नहीं हो..?’’
‘’गुरु किराये के घर में जीना मुहाल हुआ है और खुश होने की बात पूछ रहे हो’’, बहुत ही बेरुखे अंदाज में भौंकेंद्र ने कहा।

‘’क्‍या हुआ अनुज? अपना दुख मुझसे कहो’’, बहुत ही सधे अंदाज में बेंजामिन गुरु ने कहा।

बेंजामिन गुरु के भावपूर्व सवाल से भौंकेंद्र के सब्र का बांध टूट गया। उसकी आंखों में आंसू आ गये, और उसने भौंकने वाले अंदाज में कहना शुरू किया, ‘’गुरु किराये के मकान में जिंदगी पलिहर के बानर जैसी हो गई है। सुबह सुबह बीवी ने भरपेट मारा है, लेकिन मैं चिल्‍ला भी नहीं सका, क्‍योंकि मकान मालिक कहता है कि आवाज नहीं आनी चाहिए। मुंह दबाकर रोया-चिल्‍लाया हूं। कूकर जिस दिन थोड़ी तेज सीटी मार देता है, उस दिन भी मालिक को शिकायत होती है कि कूकर की आवाज कम करो या साइलेंसर लगाओ। पानी इतना खर्च करो। शाम को नौ बजे गेट बंद हो जायेगा। कभी कुछ बोल दो तो मालिक कहता तो फिर आप मकान छोड़ दो, जहां मजा आये वहां रहो। कभी किसी विश्‍वविद्यालय के हास्‍टल में भी नहीं रहा कि पाबंदी सहने की आदत पड़ी रहे। जिस यूनिवर्सिटी में पढ़ा वह खुद हास्‍टल में चलता था तो विद्यार्थियों को हास्‍टल कहां से मिलता। दुख की बात है कि कभी मेरा कोई सीनियर या जूनियर भी नहीं रहा, जिससे अपना दुख बांट सकूं। गुरु जिंदगी झंड हो गई है।‘’

‘’देखो अनुज भौंकेंद्र दुख तो हर किसी के जीवन में है, लेकिन इन दुखों से पार पाने की कला आनी चाहिए। मैं भी किराये के घर में रहता हूं। किराया मेरा भी लगता है, लेकिन मैं कभी देता नहीं। बिजली का बिल कभी चुकाता नहीं। जब एक घर का किराया और बिजली का बिल लाखों में हो जाता है तो मैं दूसरा किराये का घर अलाट करा लेता हूं। इस तरह अपना मुश्किल और दुखों भरा जीवन सामान्‍यजन की तरह गुजार रहा हूं। यह आसान नहीं है, लेकिन मुझे कोई तनाव नहीं है’’, बेंजामिन ने बहुत ही सादगी से अपनी बात कही।

‘’गुरु आप तो सरकारी किराये के घर में रहते हो, मैं तो प्राइवेट किराये के घर में में रहता हूं। आपको तो हास्‍टल में भी रहने का अनुभव है’’, भौंकेंद्र ने कहा।

‘’अनुज अगर कला हो तो हास्‍टल क्‍या, प्राइवेट किराये के घर में भी सरकारी घर वाले अंदाज में किराया दिये बिना भी रहा जा सकता है। यह कोई चमत्‍कार नहीं है बल्कि थेथरई पुराण की कला है, जिसमें आदमी बेइज्‍जती कमानी होती है। एक बार बेइज्‍जती कमा ली तो फिर इज्‍जत तुम्‍हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती और तुम एक शानदार जीवन जी सकते हो वह भी बिना लाज शरम के’’, बेंजामिन ने दर्शन के अंदाज में यह बात कही।

भौंकेंद्र गुरु की बात सुनकर भाव विह्वल हो गया। उसे अपने गुरु में साक्षात केजरी नेता की छवि नजर आई। सेम टू सेम, वही गिरगिट वाला भाव, घडि़याल वाला मोटी चमड़ी, लोमड़ी वाला शातिरपन। भोंकेंद्र ने मन ही मन अपने गुरु को प्रणाम किया और मन में ही कहा, ‘’हास्‍टल में नहीं रहे तो क्‍या हुआ गुरु तो घंटाल मिला। हे भगवान तुमने किस पुण्‍य का परिणाम दिया है।‘’

फिर झट से वह अपने गुरु के चरणों में साष्‍टांग दंडवत हो गया। और कहा, ‘’गुरु आज आपके घर नाश्‍ता करेंगे।‘’ बेंजामिन मन में गाली ग्‍लौज करते हुए सोच रहे थे कि पता नहीं आज कौन सी गलती हो गई और उठते समय किसका मुंह देख लिया कि महागुरु घंटाल से भेंट हो गई। जरूर आज मेरा शनिचर राहू के घर में घुस गया है नहीं तो ऐसा कभी नहीं हुआ था मेरे साथ। विद्यार्थी जीवन में हास्‍टल में ना रह पाने का दर्द —— अनिल कुमार वरिष्ठ पत्रकार प्रख्यात व्यंग्यकार हैं