आर्थिक संबल के साथ-साथ भावनात्मक सहारे की आखिरी उम्मीद पेंशन-अनिल यादव

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उत्तर प्रदेश के वर्तमान चुनाव में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय अखिलेश यादव जी की पुरानी पेंशन योजना बहाल करने की घोषणा के बाद पूरे देश के सियासी हलके में इसकी चर्चा जोर शोर से है, जहां भारतीय जनता पार्टी एवं उसके समर्थक इसे केंद्र सरकार के अधीन बताकर अखिलेश यादव के वादे को सिरे से नकारने का प्रयत्न कर रहे हैं वहीं समाजवादी पार्टी के समर्थक इसे राज्य सरकार का विषय बताकर अखिलेश यादव के वादे को सही साबित करने का प्रयत्न कर रहे हैं। आइए हम जानते हैं कि किसका दावा सही है और किसका दावा झूठ की बुनियाद पर खड़ा है एवं क्या है पुरानी पेंशन योजना एवं नई पेंशन योजना एवं इनमें से कौन बेहतर है –

पुरानी पेंशन योजना –

साल 2004 के पहले राज्य सरकार के कर्मचारियों को सेवानिवृति के पश्चात मासिक पेंशन मिलती थी जो उनके तात्कालिक वेतन का पचास फीसदी होती थी एवं उन्हें जीवनपर्यंत मृत्यु तक मिलती थी। पुरानी पेंशन योजना का एक लाभ यह भी था कि इसमें पेंशन का आधार नौकरी करने के साल नहीं होते थें यानी कि यदि किसी ने 40 साल नौकरी की है और किसी ने 10 साल नौकरी की हो दोनों को पेंशन उनके अंतिम वेतन का पचास फीसदी मिलती थी। इस प्रकार से यह निश्चित रूप से सिर्फ और सिर्फ फायदे की स्कीम थी।

क्यों बंद हुई पुरानी पेंशन योजना –

सन 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी की सरकार ने इस पेंशन योजना से राजकोषीय घाटा बताते हुए अगस्त 2003 में अंतरिम पेंशन निधि नियामक विकास प्राधिकरण(PFRDA) का गठन किया। PFRDA के तहत भारत सरकार ने अक्टूबर 2003 में ही नेशनल सिक्योरिटीज डिपोजिटरी लिमिटिड (NSDL) को सेंट्रल रिकॉर्ड कीपिंग एजेंसी एवं बैंक ऑफ इंडिया को ट्रस्टी बैंक बनाकर SBI, UTI तथा LIC को पेंशन निधि प्रबंधक बनाकर केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2004 से पुरानी पेंशन योजना को समाप्त करके

नई पेंशन योजना/नेशनल पेंशन योजना-

माननीय वाजपेई जी की सरकार 1 जनवरी 2004 से नेशनल पेंशन योजना लागू की। इस पेंशन योजना के तहत नौकरी लगने के पहले महीने से ही 40% एन्यूटी पर वेतन का एक भाग कटने लगता है एवं पेंशन खाते में जमा होता है इसके अतिरिक्त सरकार अपनी तरफ से इसमें 14% का योगदान देती है। सरकार ने नई पेंशन योजना को लागू करते हुए कर्मचारियों को यह भरोसा दिलाया था कि उनके वेतन से काटी गई राशि का शेअर मार्केट में और अन्य चलित बाजारों में निवेश किया जाएगा जिससे उनका हर तरफ से फायदा होगा एवं रिटायरमेंट के समय उनके पास इतनी धनराशि हो जायेगी कि वे अपना शेष जीवन आराम से व्यतीत कर सकें एवं साथ ही इसका ब्याज इतना होगा कि हर महीने उन्हें ब्याज से ही पेंशन मिलती रहेगी।

विवाद क्यों …?

जब नई पेंशन योजना लागू की गई तब कर्मचारियों को यह योजना समझ नहीं आई। सरकारी कर्मचारियों को सरकार के दावों से यही लगा कि इस योजना के तरह रिटायरमेंट के समय उन्हें मोटी रकम के साथ हर माह एक नियमित पेंशन भी मिलेगी। लेकिन कुछ सालों के अंतराल पर जब 2005 के बाद नियुक्त कर्मचारी रिटायर होने लगे तब यह भ्रम टूटा एवं कर्मचारियों को वास्तविक स्थिति का भान हुआ एवं वे अपने को ठगा हुआ महसूस करने लगें। साथ ही नई पेंशन योजना की सबसे बड़ी खामी तब सामने आती है जब किसी कर्मचारी की असमय कार्यस्थल पर मृत्यु हो जाती है। सरकारी तंत्र कर्मचारी के परिजनों को दो विकल्पों में से एक के चुनाव के लिए कहती है –

  1. पुरानी पेंशन का लाभ अथवा
  2. कर्मचारी द्वारा उस अवधि तक NPS में जमा की गई रकम

यह कर्मचारियों के साथ सबसे बड़े धोखे के रूप में सामने आया क्योंकि अगर किसी कर्मचारी की मृत्यु अपने रिटायरमेंट से एक साल या दो साल पहले होती है और उसका कार्यकाल लगभग 30 वर्षों का रहा है। इस हिसाब से उसके NPS खाते में बहुत बड़ी रकम जमा होती है। अब ऐसे में यही उसके परिजन को ऊपर के दो विकल्पों में से एक का चुनाव करना पड़े तो हानि ही होगी क्योंकि पुरानी पेंशन का विकल्प चुनने पर उसकी समस्त बचत सरकार की हो जाती है एवं रकम का विकल्प चुनने पर उसके परिजन को पुरानी पेंशन का लाभ नहीं मिलता । जबकि पुरानी पेंशन योजना के दौरान जब कर्मचारी की मृत्यु होती थी तो उसके GPF में जमा कुल पैसा एवं पेंशन का लाभ दोनों मिलता है।इसलिए कर्मचारी अपने को ठगा हुआ महसूस करने लगे एवं उन्होंने इसका विरोध करना प्रारंभ कर दिया जो कि सर्वथा उचित है।

पुरानी पेंशन योजना बेहतर क्यों… ?

पुरानी पेंशन योजना कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद के जीवन के लिए निश्चिंतता प्रदान करती थी क्योंकि इस योजना के तहत रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी को उसकी तात्कालिक आया का 50 फीसदी पेंशन के रूप में मिलता था। इस तरह से कर्मचारी को रिटायरमेंट के बाद कभी किसी अन्य पर आश्रित नहीं होना पड़ता था।नई पेंशन योजना से पुरानी पेंशन योजना इसलिए भी बेहतर थी क्योंकि मान लीजिए नई पेंशन योजना के तहत किसी साठ हजार वेतन वाले कर्मचारी की PF रकम उसके रिटायरमेंट के समय 45 लाख होती है है जो कि रिटायरमेंट के समय उसे एकमुश्त दे दी गई। अब इसके बाद उसके पास आय का कोई अन्य स्त्रोत नहीं होता है। एक बार के लिए हम सरकारी दावों को मान भी लें कि कर्मचारी अपनी PF रकम म्यूचुअल फंड्स या शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करे मगर इसकी क्या गारंटी है कि उसे लाभ ही होगा ? क्योंकि सबको पता है कि शेयर मार्केट अंधे कुंए जैसा होता अगर किस्मत साथ रही तो चांदी ही चांदी और अगर किस्मत साथ नहीं रही आपकी सारी रकम एक क्षण में स्वाहा। अब आप ही विचार कीजिए वह कितनी अच्छी लोकतांत्रिक सरकार होगी जो अपने सेवानिवृत कर्मचारियों को किस्मत भरोसे छोड़ दे।

अब वहीं बात करते हैं पुरानी पेंशन योजना की। मान लीजिए किसी कर्मचारी की रिटायरमेंट के समय आय साठ हजार रूपए प्रति माह है। रिटायरमेंट के बाद उसे प्रतिमाह तीस हजार रुपए पेंशन के रूप में मिलेंगे यानी पूरे साल के 3 लाख 60 हजार रूपए। अब भारत सरकार के अनुसार वर्तमान में भारत के नागरिकों की जीवन प्रत्याशा 70 साल है एवं 2050 तक यह 75 साल होने की संभावना है। यदि कोई कर्मचारी 60 साल की उम्र साठ हजार प्रतिमाह के वेतन पर रिटायर होता है तो अगले दस साल में उसकी कुल पेंशन की रकम 36 लाख होती है एवं 15 सालों में 54 लाख जो कि नई पेंशन योजना में उसको मिली रकम से कहीं ज्यादा है।

इसके अतिरिक्त इसका एक भावनात्मक पहलु भी है। 2010 के बाद देखा गया है कि भारत में वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ती जा रही है इसके पीछे का एक प्रमुख कारण नई पेंशन योजना भी है। मनुष्य स्वभाव से लालची रहा है यह सभी जानते हैं एवं मनुष्य ऐसे किसी का भी भार वहन नहीं करना चाहता है जो कुछ कमाता न हो। नई पेंशन योजना के बाद जब रिटायरमेंट के समय सारी रकम एक बार में ही मिलने लगी तब रिटायर्ड कर्मचारी सरकार एवं परिवार दोनों के लिए आम की चूसी हुई गुठली की तरह हो गए। सरकार ने NPS रकम देकर खुद को मुक्त कर लिया जबकि कर्मचारी के बच्चे NPS रकम पाकर उससे मुक्ति चाहने लगे। ऐसे में बुजुर्गों के साथ परिवार में दुर्व्यवहार एवं उन्हें घर से धक्के मारकर निकाल देने एवं वृद्धाश्रम भेज देने की घटनाएं निरंतर बढ़ने लगी हैं। वर्तमान में सरकारी कर्मचारी की हालत धोबी के कुत्ते जैसी हो गई है। नौकरी के दौरान सरकारें उसे धक्के मरती रहती हैं एवं रिटायरमेंट के बाद परिवार एवं बच्चे। जबकि वहीं अगर पुरानी पेंशन योजना होती तो कोई भी परिवार अपने रिटायर बुजुर्ग के साथ दुर्व्यवहार करने की जहमत नहीं उठाता और अगर ऐसा कुछ होता भी तो उसके पास अपना शेष जीवन आराम से व्यतीत करने के लिए पेंशन होती जो उसे मृत्युपर्यंत मिलती रहती। जिससे उसका शेष जीवन सुखमय तरीके से व्यतीत हो सकता है एवं उसके बच्चे भी उसे वृद्धाश्रम भेजने का ख्याल नहीं करते क्योंकि एक कहानवत है कि दुधारू गाय कौन छोड़ता है।

क्या केंद्र सरकार की सहमति के बगैर लागू की जा सकती है पुरानी पेंशन योजना ?

संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची के विषयों में 42वें स्थान पर राज्य की संचित निधि से कर्मचारियों को पेंशन देने का उल्लेख किया गया है। जिसका सीधा अर्थ होता है कि यह राज्य का अपना विषय है इसमें केंद्र सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकती है इसलिए 22 दिसंबर 2003 को जारी केंद्रीय आदेश में राज्यों के लिए यह वैकल्पिक प्रावधान किया गया था कि वे इसे लागू कर सकते हैं एवं जब चाहे तब हटा सकते हैं। यही कारण है कि पश्चिम बंगाल में पुरानी पेंशन योजना आज भी लागू है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कोई भी राज्य केंद्र की सहमति असहमति के बावजूद भी पुरानी पेंशन योजना को जब चाहे लागू कर सकता है क्योंकि पेंशन का खर्च उसे राज्य की संचित निधि से देना होता है।पुरानी पेंशन पहली बार चुनावों के मुख्य मुद्दों में शामिल हुआ है । अगर अबकी बार पुरानी पेंशन का मुद्दा हार गया तो फिर भविष्य में कोई भी पार्टी इसे कभी भी अपना मुद्दा नहीं बनाएगी । और पुरानी पेंशन का मुद्दा हमेशा हमेशा के लिए मर जायेगा । पुरानी पेंशन के लिए यह आखिरी लड़ाई है । पुरानी पेंशन सिर्फ आर्थिक मुद्दा नहीं है बल्कि बुढ़ापे की सेफ्टी है ।

लेकिन अगर पुरानी पेंशन का मुद्दा जीत जाता है और यूपी में लागू हो गया तो निश्चित है कि 2024 के चुनाव से पहले केंद्र इसे मजबूरी में पूरे देश में लागू करेगा ।अब सब इस प्रदेश की जनता और सरकारी कर्मचारीयों के हाथ में है या तो भविष्य सुरक्षित करने करिए या हमेशा हमेशा के लिए अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार लीजिए ।जितने छात्र अभी विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं वह भी सोच लें , यह लड़ाई आपकी भी है । इसीलिए मौका मत गवाईये , वरना पछताने का मौका नहीं मिलेगा ।पुरानी पेंशन के लिए यह अंतिम मौका है , तय कर लीजिए क्या करना है आपको। अनिल यादव केकेसी