75 जिलों में 75 डिजिटल बैंकिंग इकाइयों के आरंभ के अवसर पर प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ। 2022-23 के केंद्रीय बजट भाषण के हिस्से के रूप में, वित्त मंत्री ने हमारे देश की आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में 75 जिलों में 75 डीबीयू स्थापित करने की घोषणा की थी। डीबीयू की स्थापना का उद्देश्य डिजिटल बैंकिंग का लाभ देश के कोने-कोने तक पहुंचाना है, जो सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करेगा।

वित्त मंत्री निर्मला केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे अन्य सहयोगीगण, RBI गवर्नर, विभिन्न मंत्रालयों के सचिव, देश के अलग- अलग कोने में मुख्यमंत्री, मंत्रीपरिषद के लोग जो इस कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहे हैं। अर्थनीति से जुड़े सभी जानकार, बैंकिंग सेक्टर के एक्सपर्ट्स, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों,75 डिजिटल बैकिंग यूनिट्स के शुभारंभ के इस अवसर पर सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनायें। आज देश डिजिटल इंडिया के सामर्थ्य का फिर एक बार साक्षी बन रहा है। आज 75 डिजिटल बैकिंग यूनिट्स देश के 75 जिलों में धरातल पर उतर रही हैं। मैं इस मिशन से जुड़े सभी लोगों, हमारे बैंकिंग सेक्टर को, हमारे आरबीआई को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

भारत के सामान्य मानवी के जीवन को आसान बनाने का जो अभियान देश में चल रहा है, डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स उस दिशा में एक और बड़ा कदम हैं। ये एक सिर्फ, एक ऐसी विशेष बैंकिंग व्यवस्था है जो Minimum Digital Infrastructure से Maximum सेवाएं देने का काम करेगी। ये सेवाएँ कागजी लिखापढ़ी और झझटों से मुक्त होंगी, और पहले से कहीं ज्यादा आसान होंगी। यानी, इनमें सुविधा होगी, और एक मजबूत डिजिटल बैंकिंग सुरक्षा भी होगी। गाँव में, छोटे शहर में कोई व्यक्ति जब डिजिटल बैंकिंग यूनिट की सेवाएँ लेगा तो उसके लिए पैसे भेजने से लेकर लोन लेने तक, सब कुछ आसान हो जाएगा, ऑनलाइन हो जाएगा। आप कल्पना करिए, एक जमाने में जब एक ग्रामीण को, हमारे एक गांव के नागरिक को, एक गरीब को, छोटी-छोटी बैंकिंग सेवाओं के लिए संघर्ष करना पड़ता था, उसके लिए ये एक बहुत बड़ा कदम हुआ करता था। लेकिन आज बहुत आसानी से इस बदलाव को वो जीने के लिए आनंदित हो जाएगा, उत्साहित हो जाएगा।

हमारी सरकार का लक्ष्य भारत के सामान्य मानवी को empower करना है, उसे powerful बनाना है। इसलिए, हमने समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनाईं, और पूरी सरकार उसकी सुविधा और प्रगति के रास्ते पर चली। हमने दो चीजों पर एक साथ काम किया। पहला- बैंकिंग व्यवस्था को सुधारना, उसे मजबूत करना, उसमें पारदर्शित लाना, और दूसरा- वित्तीय समावेश किया। Financial inclusion किया, पहले जब बौद्धिक सेमिनार्स होती थीं। बड़े-बड़े विद्वान लोग, बैंकिंग व्यवस्था की, अर्थव्यवस्था की, गरीबों की चर्चा करते थे। तब स्वाभाविक रूप से वित्तीय समावेश की बात तो होती थी, लेकिन जो व्यवस्थाएं थीं वो विचारों तक सीमित रह जाती थी। वयवस्थाएं इस क्रांतिकारी कार्य के लिए, financial inclusion के लिए, समावेश के लिए तैयार नहीं होती थी। पहले सोचा जाता था कि गरीब खुद चलकर बैंक चला जाएगा, बैंकिंग सिस्टम से वो जुड़ जाएगा। लेकिन हमने रिवाज बदला। हमने तय किया कि बैंक खुद चलकर गरीब के घर तक जाएंगे। इसके लिए हमें सबसे पहले गरीब और बैंकों के बीच की दूरी कम करनी थी। हमने फ़िज़िकल  दूरी भी कम की और सबसे बड़ी जो रुकावट थी, उस मनोवैज्ञानिक दूरी भी हमने कम किया। हमने बैंकिंग सेवाओं को दूर-सुदूर में घर-घर तक पहुंचाने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। आज भारत के 99 प्रतिशत से ज्यादा गाँवों में 5 किमी से भीतर कोई न कोई बैंक ब्रांच, बैंकिंग आउटलेट या बैंकिंग मित्र, बैंकिंग correspondent मौजूद है। इसके अलावा, देश में जो पोस्ट ऑफिसेस का व्यापक नेटवर्क था, आज इंडिया पोस्ट बैंक के जरिए वो भी बैंकिंग की मुख्यधारा का हिस्सा बन चुके हैं। आज देश में हर एक लाख वयस्क आबादी पर जितनी बैंक शाखाएं मौजूद हैं, वो जर्मनी, चीन और दक्षिण अफ्रीका से ऐसे देशों से भी ज्यादा हैं।

हम सामान्य मानवी के जीवन स्तर को बदलने का संकल्प लेकर के दिन रात मेहनत कर रहे हैं। हमारा संकल्प है व्यवस्थाओं में सुधार का, हमारा संकल्प है पारदर्शिता लाने का। हमारा संकल्प है आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक पहुंचने का। जब हमने जनधन अकाउंट की मुहिम शुरू की तो कुछ आवाजें उठीं कि गरीब बैंक खाते का क्या करेगा? यहां तक कि इस फील्ड के कई एक्सपर्ट भी नहीं समझ पा रहे थे कि इस अभियान का महत्व क्या है।  लेकिन बैंक खाते की ताकत क्या होती है, ये आज पूरा देश देख रहा है। मेरे देश का सामान्य से सामान्य नागरिक अनुभव कर रहा है। बैंक खातों की वजह से हमने गरीबों को बहुत कम प्रीमियम पर बीमा की सुविधा दी। बैंक खातों की ताकत से जुड़ने के बाद गरीबों को बिना गारंटी लोन मिलने का रास्ता खुल गया। बैंक अकाउंट होने की वजह से गरीब लाभार्थियों तक सब्सिडी का पैसा सीधे उनके खाते में पहुंचा। बैंक खातों के जरिए ही गरीबों को घर बनाना हो, शौचालय बनाना हो, गैस की सबसीड़ी प्राप्त करना हो, उनको सीधा उनके खाते में दिया जा सका। किसानों को भी तमाम सरकारी योजनाओं से मिलने वाली मदद बैंक खातों की वजह से उन तक आसानी से पहुंचाई जा सकी। और जब कोरोना महामारी का दौर आया, तब सीधे गरीब के बैंक अकाउंट में, माताओं बहनों के बैंक अकाउंट में सीधा पैसा पहुंचाया गया। बैंक खातों की वजह से हमारे रेहड़ी-पटरी वाले भाई-बहनों के लिए स्वनिधि योजना भी शुरू हो पाई। जबकि उसी दौरान विकसित देशों तक को इस काम में मुश्किलें पेश आ रही थीं। आपने सुना होगा, अभी – अभी IMF ने भारत के डिजिटल बैकिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की भूरी भूरी प्रशंसा की है। इसका श्रेय भारत के गरीबों, भारत के किसानों और भारत के मजदूरों को जाता है, जिन्होंने नई तकनीकों को हिम्मत के साथ, समझ के साथ अपनाया, उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाया।

वित्तीय भागीदारी जब डिजिटल भागीदारी से जुड़ जाती है, तो संभावनाओं का एक नया विश्व खुलने लगता है। UPI जैसा बड़ा उदाहरण हमारे सामने है।  और भारत इसके लिए गर्व करता है। UPI अपने तरह की दुनिया की पहली टेक्नालजी है। लेकिन भारत में आप इसे शहर से लेकर गाँव तक, शोरूम्स हो या सब्जी का ठेला, हर जगह आप उसे देख सकते हैं। UPI के साथ ही, अब देश के जन-सामान्य के हाथों में ‘रुपे कार्ड’ की ताकत भी है। एक समय था जब क्रेडिट या डेबिट कार्ड एक elite व्यवस्था मानी जाती है। बड़े समाज के रईसों की व्यवस्था मानी जाती है। कार्ड भी विदेशी होते थे, उन्हें इस्तेमाल करने वाले भी बहुत गिने-चुने लोग होते थे, और उनका इस्तेमाल भी वैसी ही चुनिन्दा जगहों पर ही होता था। लेकिन, आज भारत में 70 करोड़ से ज्यादा रूपे कार्ड सामान्य मानवी के पास हैं। आज भारत का स्वदेशी रुपे कार्ड, दुनिया भर में स्वीकार किया जा रहा है। टेक्नालजी और इकॉनमी का ये जोड़ एक ओर गरीब की गरिमा और मध्यम वर्ग को बहुत बड़ी ताकत दे रहा है। तो साथ ही देश के डिजिटल divide को भी खत्म कर रहा है।

JAM यानि जनधन, आधार और मोबाइल की त्रिशक्ति ने मिलकर एक बड़ी बीमारी का इलाज भी किया है। ये बीमारी है- भ्रष्टाचार की बीमारी। पैसे ऊपर से चलते थे, लेकिन गरीब तक पहुँचते पहुँचते गायब हो जाते थे। लेकिन, अब डाइरैक्ट बेनिफ़िट ट्रान्सफर यानी डीबीटी के जरिए पैसा जिसके नाम से निकलता है, उसके खाते में पहुंचता है, उसी समय पहुंचता है। अलग-अलग योजनाओं में अब तक DBT के जरिए 25 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि ट्रान्सफर की जा चुकी है, और कल भी, मैं कल देश के करोड़ों किसानों को  वैसे ही दो हजार रुपये वाली किस्त भेजने वाला हूं।

भाइयों और बहनों,भारत की इस DBT और डिजिटल ताकत को आज पूरी दुनिया सराह रही है। हमें इसे आज एक ग्लोबल मॉडल के रूप में देखा जा रहा है। वर्ल्ड बैंक तो अब यहाँ तक कहा रहा है कि भारत digitization के जरिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के मामले में लीडर बन चुका है। टेक्नालजी वर्ल्ड के सफलतम लोग भी, टेक्नॉलाजी की दुनिया के जो महारथी हैं वे लोग भी भारत की इस व्यवस्था की भरपूर सराहना कर रहे हैं, उसकी सफलता से वे स्वयं भी अचंभित हैं।

भाइयों बहनों आप कल्पना करिए, जब डिजिटल भागीदारी और आर्थिक भागीदारी की इतनी ताकत है, तो दोनों की शत प्रतिशत क्षमता के इस्तेमाल से हम अपने देश को किस ऊंचाई तक ले जा सकते हैं? इसीलिए, आज Fintech भारत की नीतियों के, भारत के प्रयासों के केंद्र में है, और भविष्य को दिशा दे रहा है। डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स Fintech के इस सामर्थ्य को नया विस्तार देंगी। जनधन खातों ने अगर देश में financial inclusion की नींव रखी थी, तो Fintech financial revolution का आधार तैयार करेंगे।

अभी हाल ही में भारत सरकार ने ब्लॉकचेन टेक्नालजी पर आधारित डिजिटल करेंसी शुरू करने की घोषणा भी की है। आने वाले समय में डिजिटल करेंसी हो, या आज के समय में डिजिटल transactions, अर्थव्यवस्था के अलावा भी इनसे कई अहम पहलू जुड़े हैं। उदाहरण के तौर पर, करेंसी छापने में जो खर्च आता है, देश का वो पैसा बचता है। करेंसी के लिए पेपर और इंक हम विदेशों से मंगाते हैं। डिजिटल इकॉनमी के जरिए हम इससे भी बच रहे हैं।  ये एक अलग तरह से आत्मनिर्भर भारत में भारत की बैंकिंग सेक्टर का, हमारे आबीआई का बहुत बड़ा योगदान मैं मानता हूं। साथ ही, कागज की खपत कम होने से पर्यावरण को भी एक बड़ा लाभ होगा।

बैंकिंग आज वित्तीय लेनदेन से कहीं आगे बढ़कर ‘गुड गवर्नेंस’ और ‘बेटर सर्विस डिलीवरी’ का भी एक माध्यम बन चुकी है। आज इस व्यवस्था ने प्राइवेट सेक्टर और लघु उद्योगों के लिए भी ग्रोथ की असीम संभावनाओं को जन्म दिया है। आज भारत में ऐसा शायद ही कोई क्षेत्र हो, जिसमें टेक्नालजी के जरिए प्रॉडक्ट और सर्विस डिलीवरी एक नया स्टार्टअप ecosystem न बन रहा हो। आप देखिए, आज आपको बंगाल से अगर शहद चाहिए हो, या असम से आपको बैम्बू प्रॉडक्ट्स की जरूरत हों, अगर आपको केरल से हर्ब्स चाहिए हों, या लोकल रेस्टोरेन्ट से कोई पसंदीदा चीज खाने के लिए मंगवानी हो, या फिर, आपको कानून से जुड़ी सलाह की जरूरत हो, हेल्थ के लिए कोई सलाह की जरूरत है, या गाँव में बैठे किसी युवा को शहर के किसी टीचर से क्लास लेनी हो! डिजिटल इंडिया ने वो सब मुमकिन कर दिया है, जिसकी हम कुछ साल पहले कल्पना भी नहीं कर सकते थे।

डिजिटल इकॉनमी आज हमारी इकॉनमी की, हमारे स्टार्टअप वर्ल्ड की भी , मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत की बहुत बड़ी ताकत है। आज हमारे छोटे उद्योग, हमारी MSMEs GEM जैसी व्यवस्था के जरिए सरकारी टेंडरों में भी भागीदारी कर रहे हैं।  उन्हें व्यापार के नए अवसर मिल रहे हैं। GEM पर अब तक ढाई लाख करोड़ रुपए के ऑर्डर दिये जा चुके हैं। आप आंकलन कर सकते हैं, इससे देश की लोकल इकॉनमी को , वोकल फॉर लोकल के मिशन को कितना बड़ा लाभ हुआ होगा। डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स के जरिए इस दिशा में अब कई और नए अवसर पैदा होंगे। हमें इस दिशा में इनोवेशन्स करने होंगे, नई सोच के साथ नए अवसरों का स्वागत करना होगा।

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था उतनी ही प्रगतिशील होती है, जितना वहाँ का बैंकिंग सिस्टम मजबूत होता है। आज भारत की इकॉनमी एक निरंतरता के साथ आगे बढ़ रही है। ये इसलिए मुमकिन हो रहा है क्योंकि इन 8 वर्षों में देश 2014 के पहले वाले फोन बैंकिंग सिस्टम से डिजिटल बैंकिंग पर शिफ्ट हो गया है। 2014 से पहले की फोन बैंकिंग, आप लोगों को भलिभांति याद होगा और समझ गए होंगे! बैंकों को ऊपर से फोन आता था, और तय होता था कि बैंक कैसे काम करें, किसे पैसे दें! इस फोन बैंकिंग राजनीति ने बैंकों को असुरक्षित कर दिया, गढ्ढे में उतार दिया, देश की अर्थव्यवस्था को असुरक्षित कर दिया, हजारों करोड़ के घोटालों के बीज, निरंतर घोटाले ही घोटाले की खबरें आया करती थी। लेकिन अब डिजिटल बैंकिंग से सब पारदर्शी तरीके से चल रहा है। हमने NPA की पहचान के लिए पारदर्शिता लाने की दिशा में काम किया। लाखों करोड़ रुपए बैंकिंग व्यवस्था में वापस आए। हमने बैंकों को recapitalise किया, wilful defaulters के खिलाफ एक्शन लिया गया, Prevention of Corruption Act में भी सुधार किया गया। NPA से जुड़े मुद्दों को सुलझाने में IBC की मदद से तेजी लाई गई।

हमने लोन के लिए भी technology और analytics के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया, जिससे एक पारदर्शी और वैज्ञानिक व्यवस्था खड़ी हो सके। बैंकों के मर्जर जैसे महत्वपूर्ण निर्णय पॉलिसी पैरालिसिस के शिकार थे, देश ने उन्हें भी उतनी ही मजबूती से लिया। आज  निर्णय किए, कदम उठाए। आज निर्णयों के नतीजे हमारे सामने हैं। दुनिया सरहाना कर रही है। डिजिटल बैकिंग यूनिट्स जैसी नई शुरुआत और Fintech के इनोवेटिव इस्तेमाल के जरिए अब बैंकिंग व्यवस्था के लिए एक नई सेल्फ ड्रिवेन mechanism तैयार हो रहा है। इसमें उपभोक्ताओं के लिए जितनी autonomy है, बैंकों के लिए भी उतनी ही सुविधा और पारदर्शिता है। मैं चाहूँगा, इस तरह की व्यवस्थाओं को कैसे और व्यापक बनाया जाए, कैसे इसे लार्ज स्केल पर आगे बढ़ाया जाए, इस दिशा में सभी स्टेकहोल्डर्स काम करें। हमारे सभी बैंक ज्यादा से ज्यादा लोगों को डिजिटल व्यवस्थाओं से जोड़ने का टार्गेट रखें। एक आग्रह मैं आपसे करना चाहता हूँ। खासकर के मेरे बैंकिंग सैक्टर के लोगों से कहना चाहता हूं। और बैंकों से जुड़े हुए गांव-गांव फैले हुए छोटे जो कारोबारी हैं, छोटे व्यापारी हैं आप दोनों से मेरा आग्रह है और जब आजादी का अमृत काल है, मैं आपसे देश के लिए ये आग्रह करके मैं आशा करता हूं आप इसको पूरा करेंगे।  क्या हमारे बैंक और हमारे छोटे व्यापारी मिलकर के क्या हम एक काम कर सकते हैं क्या? हमारे बैंक जो बैंक ब्रांच चाहे शहर हो या गांव, वो अपना जो उनका क्षेत्र है उस क्षेत्र के कम से कम 100 व्यापारी, ज्यादा नहीं कह रहा हूं, सिर्फ 100 व्यापारी वो पूरी तरह डिजिटल लेनदेन वाली व्यवस्था, 100 पर्सेंट डिजिटल लेनदेन वाली व्यवस्था, अगर हमारे 100 व्यापारी आपके साथ जुड़के करलें, आप कल्पना कर सकते हैं कितना बड़ा revolution का हम foundation तैयार करते हैं।

ये देश के लिए एक बड़ी शुरुआत हो सकती है। मैं आग्रह कर सकता हूं, इसके लिए कोई कानून नहीं बना सकता, नियम नहीं बना सकता, और जब आप उसका फायदा देखेंगे ना तो फिर मुझे दोबारा 100 के 200 करने के लिए किसी को नहीं समझाना पड़ेगा। हरेक  ब्रांच 100 व्यापारियों को अपने साथ जोड़ने का लक्ष्य रखे। आज जनधन एकाउंट की जो सफलता है। उसका मुल कारण बैंक ब्रांच में बैठे हुए हमारे छोटे – मोटे जो साथी हैं।, हमारे मुलाजिम हैं उन्होंने उस समय जो मेहनत की, गरीब की झोपड़ी तक जाते थे। Saturday-Sunday भी काम करते थे। उसके कारण जनधन सफल हुआ। उस समय जिन जिन बैंक के हमारे साथियों ने जनधन को सफल किया, आज देश उसकी ताकत देख रहा है। अगर आज जो बैंक की व्यवस्था को देखेते हैं, जो ब्रांच को संभालते हैं, वो अपने क्षेत्र के अपने बैंक के कमांड एरिया के 100 व्यापारियों को प्रेरित करें, एजुकेट करें, उसको जोड़ें। आप एक बहुत बड़े revolution के नेतृत्व आपके हाथ में होगा। मुझे विश्वास है, ये शुरुआत हमारे बैंकिंग सिस्टम और इकॉनमी को एक ऐसे मुकाम पर ले जाएगा, जो future ready हो, और ग्लोबल इकॉनमी को लीड करने की काबिलियत रखेगा। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, मैं भारत के वित्त मंत्री, भारत का वित्त मंत्रालय, हमारे आरबीआई गर्वनर, आरबीआई की टीम, हमारे बैंकिंग सैक्टर से जुड़े हुए सभी छोटे-मोटे साथी आज आप सब मेरी तरफ से बहुत बहुत अभिनंदन के अधिकारी हैं। क्योंकि आपने देश को एक बहुत बड़ी सौगात दी है। और देश के वासियों को भी इस अनमोल सौगात के लिए दिवाली के पूर्व इस महत्वपूर्ण सौगात के लिए और आजादी के 75 साल और 75 डिजिटल बैंकिंग यूनिट अपने आप में सुखद संयोग है।