खुशी की तलाश

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53वें इफ्फी, गोवा में कजाकिस्तान की फिल्‍म हैप्पीनेस (बकित) प्रदर्शित की गई। हैप्पीनेस हमें महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा की तकलीफदेह सच्चाई की ओर ले जाती है।

वह खुशी का मुखौटा पहनती है, लेकिन वह अपने भीतर गहरा राज छुपा रही है!

घरेलू हिंसा से बचने की किसी महिला को क्‍या कीमत चुकानी पड़ती है?

स्त्री द्वेष की बेड़ियों को तोड़ने की किसी महिला को क्‍या कीमत चुकानी पड़ती है?

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अस्कर उज़ाबायेव के निर्देशन में बनी फिल्‍म हैप्पीनेस में एक महिला की खुशी और सम्मान की तलाश की यात्रा को दर्शाया गया है। निर्देशक अस्कर उज़ाबायेव की पिछली अधिकांश फ़िल्में कॉमेडी ड्रामा हैं, लेकिन पहली बार उन्होंने घरेलू हिंसा जैसे संवेदनशील मुद्दे पर प्रयोग किया है, जो दर्शकों की अंतरात्मा को झकझोर सकता है। गोवा में 53वें इफ्फी में पीआईबी द्वारा आज आयोजित “टेबल टॉक्स” में निर्देशक ने कहा, “हम हिंसक दुनिया में रहते हैं।”

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फिल्म के मुख्य विषय घरेलू हिंसा पर प्रकाश डालते हुए निर्देशक अस्कर उज़ाबायेव ने कहा कि परिवार, समाज की महत्वपूर्ण संस्था है और यह पीढ़ियों से चले आ रहे सामाजिक मुद्दों को रोकने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा, ‘वास्तव में यह एक दुष्चक्र है। लगातार होने वाले दुर्व्‍यवहारों को महिलाओं द्वारा अपने परिवारों में उकसाया जाता है और अब वक्‍त आ गया है, जब हमारे समाज में इस तरह की सामाजिक बुराई को रोका जाना चाहिए’। कजाकिस्तान में महिलाओं की स्थिति के बारे में पूछे जाने पर निर्देशक ने कहा कि महिलाओं के पास परिवार में निर्णय लेने की उच्च शक्ति होती है। समाज महिलाओं पर निर्भर करता है, लेकिन साथ ही पितृसत्तात्मक समाज में महिला-पुरुष समानता की बात कहीं पीछे छूट जाती है।

सह-निर्माता अन्ना कैचको, जो इफ्फी टेबल टॉक्स में भी मौजूद थीं, उन्होंने कहा कि वे उन महिलाओं की संख्या देखकर हैरान थीं, जिन्होंने फिल्म देखने के बाद अपनी कहानियां साझा करने के लिए उनसे संपर्क किया था। उन्होंने कहा, ‘पटकथा और कहानी को लोगों पर केंद्रित होना चाहिए और दर्शकों को बांधे रखना चाहिए। मेरे लिए ऐसी फिल्में बनाना बहुत महत्वपूर्ण है जिनका सामाजिक असर ज्यादा हो।’ उन्होंने ये भी बताया कि फिल्म ‘हैप्पीनेस’ उनके देश की असल घटनाओं से प्रेरित है।

सारांश :

ये फिल्म कजाकिस्तान के एक छोटे से सीमावर्ती शहर में घरेलू हिंसा के दुष्चक्र के बारे में है। एक जोड़ा है जिसकी शादी को 23 साल हो चुके हैं। इन वर्षों के दौरान पत्नी को उसके शराबी पति ने लगातार प्रताड़ित किया और बलात्कार किया। अब उनकी बेटी की शादी होने वाली है और वो भी अपनी मां की तरह शादी के जाल में फंस जाती है। क्या इन परिस्थितियों से बाहर निकलने का कोई रास्ता है? कौन कदम उठाएगा? उसके चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान है और इन्फ्लूएंसर के तौर पर अपने काम के लिए वो नारंगी रंग पहनती है। उसकी फिलॉसफी “हैप्पीनेस” ब्रांड है, लेकिन वो एक उदास वातावरण में रहती है जहां ताकत लंबे समय से प्रमुख कारक रही है। ये फिल्म दर्शाती है कि मिसॉजनी यानी महिला के प्रति पुरुष द्वेष से मुक्त होना कितना मुश्किल है।