पुलिस कस्टडी से फरार बन्दी जेल प्रशासन जिम्मेदार नहीं….!

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पुलिस कस्टडी से फरार बन्दी के लिए जेल प्रशासन जिम्मेदार नहीं ! लखनऊ जेल के खूंखार बन्दी के भागने पर उठे सवाल ।वरिष्ठ अधीक्षक के कार्यकाल में अब तक फरार हो चुके तीन बन्दी।फरारी के लिए जिम्मेदार अधीक्षक पर नहीं हुई कोई कार्यवाही।

राकेश यादव

लखनऊ। राजधानी की जिला जेल का एक बन्दी फरार हो गया। इस सवाल पर जेल अधिकारी सवाल करते है कि जेल कस्टडी से या पुलिस  कस्टडी से। पुलिस कस्टडी से फरार हुआ। इस पर जेल अधिकारी राहत की सांस लेते हुए कहते है तो जेल प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं है। पुलिस कस्टडी से फरारी के लिए  जेल प्रशासन नहीं पुलिस प्रशासन जिम्मेदार होता है। कार्यवाही जेल प्रशासन पर नही अभिरक्षा में लेने वाले पुलिसकर्मियों पर होती है। यही वजह है कि जेल प्रशासन के अधिकारी फरारी जैसी गंभीर घटनायें होने के बाद भी कार्यवाही से बेखौफ हो गए है। 

हरियाणा के गुड़गांव के रहने वाले बावरिया गिरोह के खूंखार हत्या आरोपी सत्यवीर को विभूतिखंड पुलिस ने गिरफ्तार कर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेजा था। न्यायिक अभिरक्षा के बन्दियों को रखने की जिम्मेदारी जेल प्रशासन की होती है। जेल में बन्दियों के खानपान की व्यवस्था के साथ स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी जेल अधिकारियों की होती है। बन्दी के बीमार होने पर उसके इलाज जेल प्रशासन की जिम्मेदारी है। यह अलग बात है कि जेल प्रशासन के अधिकारी कार्यवाही के डर से जिम्मेदारी का ठीकरा पुलिस पर फोड़ देते है।

मोटी रकम देकर बाहर अस्पताल जाते धनाढ्य बन्दी….!

जेल से बाहर अस्पताल बगैर सेटिंग-गेटिंग के कोई जा ही नही पाता है। अधीक्षक व जेल डॉक्टर मोटी रकम लेकर ही बन्दियों को उपचार के नाम पर जेल के बाहर अस्पताल भेज देते है। पिछले दिनों दिल्ली के एक धनाढ्य बिल्डर को मोटी रकम लेकर दो माह से अधिक समय तक केजीएमयू में भर्ती रखा गया। इसको जमानत मिलने के बाद जेल न लाकर केजीएमयू से ही रिहा कर दिया गया। यह तो एक बानगी भर है। इसी प्रकार पूंजीपति, धनाढ्य एवम दबंग बन्दियों में कई को तो जेल में आमद होने के तुरंत बाद ही बाहर के अस्पताल में भर्ती करा दिया जाता है। इसमें जेल अधीक्षक, डॉक्टर व बाहर अस्पताल के सीएमएस के बीच सेटिंग-गेटिंग होती है। जेल अधीक्षक व डॉक्टर के संपति की जांच करा ली जाए तो यह सच खुद ही सामने आ जायेगा।

बताया गया है विचाराधीन बन्दी सत्यवीर ने पिछले दिनों जेल प्रशासन की अवैध वसूली व उत्पीड़न से आजिज आकर खुदकुशी करने का प्रयास किया। बन्दी ने ब्लेड से अपने गले को घायल कर लिया। सूत्रों का कहना है कि जेल अधीक्षक की अनुमति पर डॉक्टर ने बन्दी को उपचार के लिए जिला अस्पताल (बलरामपुर अस्पताल) भेज दिया। बन्दी की गंभीर हालत को देखते हुए डॉक्टरों ने उसको केजीएमयू रेफर कर दिया।

सूत्र बताते है कि आपातकाल में गंभीर रूप से बीमार हुए बन्दी को आनन-फानन में उपचार के लिए जेल कस्टडी में बाहर के अस्पताल भेजा जाता है। अन्य बीमार बन्दियों को डॉक्टर के परामर्श पर जेल अधीक्षक बन्दी को उपचार के लिए बाहर अस्पताल भेजने के लिए पुलिस गार्ड मांगते है। गार्ड मिलने पर बन्दी को उपचार के लिए जेल के बाहर अस्पताल भेजा जाता है। बाहर के अस्पताल भेजे गए बन्दी के स्वस्थ व अस्वस्थता के निगरानी की जिम्मेदारी अधीक्षक व जेलर की होती है। हकीकत यह है कि अधीक्षक व जेलर उपचार के लिए भर्ती कराए गए बन्दी को चेक करने अस्पताल गए ही नही। इसी का लाभ उठाकर स्वस्थ हुआ बन्दी पुलिसकर्मियों को चकमा देकर फरार हो गया। जेल के जिम्मेदार अधिकारियों ने पुलिस अभिरक्षा में हुई घटना की बात कहकर कार्यवाही से अपने आप को बचा लिया।