अवधी काव्य के शिखर रमई काका

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अवधी काव्य के शिखर रमई काका
अवधी काव्य के शिखर रमई काका

अवधी काव्य के शिखर साहित्यकार,चन्द्र भूषण त्रिवेदी उर्फ़ ‘रमई काका’। हिन्दी साहित्य जगत में साहित्यिक प्रतिभा के धनी,अवधी के लोक-नायक,यशस्वी चन्द्र भूषण त्रिवेदी जिनका विख्यात नाम “रमई काका”है। आधुनिक अवधी काव्य परिधि अत्यंत विस्तृत है और काका  अवध क्षेत्र के जनकवि है।

चित्र लेखा वर्मा
   चित्रलेखा वर्मा 

 आप का जन्म 2 फ़रवरी सन्1915 में  जनपद उन्नाव के रावतपुर नामक  गाँव में हुआ था। आप के पिता वृन्दावन त्रिवेदी फ़ौज में नौकरी करते थे और प्रथम विश्व युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे। उस समय काका जो  केवल एक ही वर्ष के थे। काका की आत्मकथा से पता चलता है कि उनकी माँ गंगा देवी जी को पति की मृत्योपरांत सरकार से केवल तीन सौ रुपये ही मिलते थे, जिससे वे अपने परिवार को चलाया करती थी। इस तरह से उनका बचपन कष्टों और संकटों में बीता। परन्तु उनका लालन पालन इस तरह से हुआ कि ग्राम संस्कृति काका जी की पर्याय बन गयी ,क्यों की  प्राथमिक शिक्षा  ग्रामीण वातावरण में हुई। हाई स्कूल की परीक्षा अटल बिहारी स्कूल से उत्तीर्ण किया। उसके बाद  आपने नियोजन विभाग में निरीक्षक का पद सम्भाला। निरीक्षक पद प्रशिक्षण लेने के बाद वे कुछ समय के लिए वे मसौदा फ़ैज़ाबाद  में रहे। अपने प्रशिक्षण कार्य काल में अपनी प्रतिभा से प्रशिक्षकों को प्रभावित किया था। यहाँ उन्होंने कई कविताएँ लिखी और कई एकांकियों  का मंचन भी किया। ‘गड़बड़ स्कूल ‘ एकांकी ने यहाँ के लोगों का बहुत मनोरंजन किया था। यहाँ के बाद उनकी नियुक्ति उन्नाव के बोधापुर केंद्र में हो गई । यहाँ आप ने बहुत ही मेहनत के साथ काम किया फलतः आपके केंद्र  को सम्पूर्ण लखनऊ कमिश्नरी में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। उन्हें गवर्नर की’सर हेनरी हेग शील्ड ‘ प्रदान की गई। इस केन्द्र पर काम करते समय काका ने एक बैलगाड़ी भी बनायी जिसमें बॉल बियरिंग  का प्रयोग हुआ था। जिसमें ढलान से उतरते समय उसमें ब्रेक का भी प्रयोग किया गया था।

        यद्यपि आपने सुगम और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा नहीं प्राप्त किया था परन्तु अपनी योग्यता के बल पर ही आपने शास्त्रीय और सुगम संगीत का ज्ञान प्राप्त किया। सत्ताइस वर्ष की उम्र में  सन्1941 में काकाजी की नियुक्ति लखनऊआकाशवाणी में हो गई। आकाश वाणी में काका 62 वर्ष की उम्र  तक ही रहे। और 1977 वहाँ से वे सेवानिवृत्त हुए। परन्तु इसके दो वर्षों के बाद आप का सेवाकाल दो दो वर्षों के लिए बढ़ाया भी गया। सेवानिवृत्त होने के बाद भी वे कभी  निष्क्रिय नहीं हुए तथा समाचार पत्रों,पत्रिकाओं, दूरदर्शन तथा कवि सम्मेलनों से जुड़े रहे, आकाश वाणी पर आपने अनेक भूमिकाओं का निर्वहन किया,‘सत्तू दादा’,’चतुरी चाचा’,‘बहिरे बाबा’आदि उनकी भूमिकाएँ थीं। रमई काका के अलावा आपको बहिरे बाबा के नाम से भी बहुत अधिक ख्याति मिली।

            ‘बहिरे बाबा ‘ नामक धारावाहिक ने तो प्रसारण का कीर्तिमान  स्थापित कर दिया था। यह प्रसारण पच्चीस से अधिक सालों  तक आकाश वाणी से प्रसारित हुआ था। यद्यपि काका स्थायी रूप से लखनऊ में रहे पर उनका सम्पर्क जीवन भर गाँव से बना रहा। शहर में रहते हुए भी उन्होंने ने अपने ग्रामीण मन को बचाये रखा। रमई काका का काव्य अवध के  गाँव  से  बहुत गहराई से  गाँव से जुड़ा होने के कारण आकाश वाणी (पंचायत घर) दूर दर्शन, और एच ,एमवी के रिकॉर्डों  को माध्यम से उनकी कविताएँ अवध अंचल में रच बस गयीं । रमई काका की पहली उपलब्ध कविता, उन्होंने पढरी के स्कूल में पढ़ते समय लिखी थी। इस कविता पर अपने गुरु पंडित गौरीशंकर जी से आशीर्वाद मिला था,“काका एक प्रसिद्ध कवि के रूप में विख्यात होंगे।”

      रमई काका  हास्य कवि के रूप में बहुत विख्यात रहे आप की प्रकाशित  तीन काव्य पुस्तकों में

   1——- ‘फुहार’

     2————-गुलछर्रा’

     3——————‘ हास्य के छींटे’ , हास्य व्यंग्य कविताओं  के  संकलन है। ‘बौछार’आप की प्रथम और ‘भिनसार’ उनकी दूसरी कृति है। इन दोनों कृतियों में अधिकतर व्यंग्य रचनाएँ हैं । इन के बारे में संक्षिप्त जानकारी  देखिए———-

  बौछार 1944 में छपी ।

  ‘बौछार’ग्रामीण जीवन, प्रकृति चित्रण , छायावादी काव्य, राष्ट्र  प्रेम, सामाजिक भावना, तथा जनवाद से प्रेरित तीस कविताओं का संकलन है।‘भिनसार’में 42  कविताएँ हैं । जो वर्षा की बूँदों से तन,मन से भिगोती हुई हास्य व्यंग्य कीमिठाससे भरी है। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस पर लिखा गया है । यह आल्ह छन्द में रचित है । परम्परागत शैली में रचित यह बीर रस का अनूठी रचना है ।

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अवधी काव्य के शिखर रमई काका

 ‘ह्ररपति तरवारि’ तथा ‘माटी के बोल’ शीर्षक पुस्तकों में अधिकांश गीत रचनाएं है। ये लोक धुन  पर आधारित हैं। हास्य के छींटे ‘गुल छर्रा’ तीर के समान प्रहार करती हुई , उत्कृष्ट व्यंग्य चित्रों को उकेरतीं हुई। पाठकों का मनोरंजन करती है । यह खड़ी बोली की कविताओं का संकलन है। ये सभी काका के जीवन के उतरार्द्ध में लिखी गई थी।शेष सभी संकलनों की भाषा अवधी है।आप की पुस्तकों का प्रकाशन हज़ारों – हज़ारों की संख्या  में  हुआ ।  इनको पढ़ने वालों की संख्या  भी  कम नहीं हुआ करती थी।काका की तीन नाट्य कृतियों का भी प्रकाशन  हुआ था।

 ‘रतौंधी’ पुस्तक में आठ और  बहिरे बोधन बाबा शीर्षक  पुस्तक में सात एकांकी नाटक संकलित हैं।काका के खड़ी बोली के चार एकांकी है। ये चारों एकांकी ‘जुगुनू’  नामक पुस्तक में संकलित हैं।‘कलुवा बैल ‘नामक  एक उपन्यास (अवधी) प्रकाशित नहीं हो सका था परन्तु ‘स्वतंत्र भारत’ पत्रिका में यह धारावाहिक के रूप में प्रकाशित हुआ था। काका की गम्भीर रचनाओं  (लेखों ) का प्रकाशन आजतक नहीं हो पाया है । यद्यपि इस संकलन की अधिकांश  कविताएँ ‘भिनसार’और ‘बौछार’में छप चुकी थी।किन्तु अधिकांश रचनाएँ आज भी अप्रकाशित ही है।इन रचनाओं में ‘भोर की किरण’,’सुखी कब होहिहे गाँव हमार’, ‘गाँव से है हमका बहुतप्यार’, ‘छातीकापीपर’, आदि अनेक लोकप्रिय कविताएँ है।काका के नाटकों का एक बहुत बड़ा भाग आज भी अप्रकाशित है।‘हंस किसका है ‘एक बालोपयोगी एकांकियों संकलनहै। यह अगर प्रकाशित डो  तो छात्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है।

बृद्धावस्था में ब्रंकाइटिस रोग से पीड़ित थे। अन्त में 1982 की फ़रवरी में इतने बीमार हो गए कि बिस्तर से उठ ही नहीं सके । अन्त में 18 अप्रैल 1982  की  प्रात: काल  आपने इस दुनिया से विदा ले लिया।उनका गाँव से प्यार तो बहुत ही था। वे बहुत ही सुसंस्कृत नागरिक थे।  साधारण रहन सहन वाले चन्द्र भूषण त्रिवेदी गांधी,तुलसी तथा आर्य समाज के विचारों से प्रभावित थे। उनका गाँव आर्य समाज का गढ़ था । पंडित प्रयाग दत्त जो वेदों के प्रकांड विद्वान थे। उसी गाँव में रहते थे। वे असाधारण प्रतिभा के रचनाकार तो थे ही साथ में लेखक, नाटककार,अभिनेता और संगीतज्ञ के रूप में भी कम सम्मान  नहीं मिला। रमई काका के बिपुल  साहित्य के अनुपलब्धयता के कारण उनके साहित्य को पढ़ने का उत्सुक  एक बहुत बड़ा पाठक समुदाय अधिकांशतः  अपने को हताश, निराश और निरुपाय अनुभव करता है।रमई काका के समग्र साहित्य का मूल्यांकन होना शेष है। रमईकाका का साहित्य सर्वाधिक पाठकों को सुलभ हो सके इस का भी प्रयास भरपूर किया जाना चाहिए।अवधी कविता के शिखर साहित्यकार काका जी केवल किसानों के कवि नहीं, स्वयं भी कविता के किसान थे। उन्होंने काग़ज़ रूपी धरती पर अक्षर रूपी बीज बोकर मुस्कान और हास्य की जो फसल तैयार की  थी वह आज तक पाठकों को गुदगुदाती और हंसाती है। हास्य के अमर कवि  रमई काका के चरणों में अपना शत- शत नमन निवेदित करते हुए, ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूँ कि काका की अमर कृतियों का प्रकाशन हो , और उनके साहित्य की प्रेरणा से समस्त पाठकों और रचनाकारों में  हंसाने की क्षमता प्राप्त हो।