सहमति से संबंध की विफलता के तहत बलात्कार

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सहमति से संबंध की विफलता आईपीसी की 376 (2) (n) के तहत बलात्कार के अपराध के लिए एफआईआर दर्ज करने का आधार नहीं हो सकता-आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

⚫ आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस रवि चीमालापति की सिंगल जज की पीठ ने कहा कि सहमति से संबंध की विफलता भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2) (n) के तहत बलात्कार के अपराध के लिए एफआईआर दर्ज करने का आधार नहीं हो सकता है।

? आईपीसी की धारा 376(2)(एन), 417, 420, 323, 384, 506 के साथ 109 के तहत दंडनीय अपराधों के आरोपी याचिकाकर्ता ने नियमित जमानत मांगी थी।

शिकायतकर्ता ने कहा कि वह और याचिकाकर्ता एक रिश्ते में थे।

? बाद में, शिकायतकर्ता से शादी करने का वादा करते हुए, उसे अपने माता-पिता की सहमति से अपने निवास पर ले गया और उसके साथ यौन संबंध बनाए।

? उसने दावा किया कि जब उसका पीरियड्स या मासिक धर्म बाधित हुआ, तो याचिकाकर्ता की मां ने उसे पपीता खिलाया और याचिकाकर्ता ने उसे कुछ गोलियां दीं, जिसके बाद उसका मासिक धर्म फिर से शुरू हो गया। उसने कहा कि तब से याचिकाकर्ता और उसके माता-पिता उससे बचते रहे। उसने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता के दोस्तों ने उसे फोन पर धमकी दी।

? याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि आरोप अस्पष्ट हैं और प्रथम दृष्टया कोई अपराध नहीं बनता है। यह तर्क दिया गया कि जब याचिकाकर्ता के माता-पिता उनकी शादी के लिए राजी नहीं हुए तो शिकायतकर्ता ने यह झूठा मामला दर्ज कराया। अपने तर्क के समर्थन में, याचिकाकर्ता के वकील ने अंसार मोहम्मद बनाम राजस्थान राज्य, 2022 (एससी) 599 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।

विशेष सहायक लोक अभियोजक ने कहा कि आरोप गंभीर प्रकृति के हैं और अगर जमानत दी जाती है तो याचिकाकर्ता जांच में सहयोग नहीं कर सकता है।

? अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता एक सहमति के रिश्ते में थे और यह प्रथम दृष्टया स्पष्ट है कि जब शिकायतकर्ता को लगा कि याचिकाकर्ता के साथ उसके संबंध नहीं चल रहे हैं, तो उसने वर्तमान शिकायत दर्ज कराई।

? कोर्ट इस बात से सहमत हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार याचिकाकर्ता के वकील द्वारा भरोसा किया गया, जब शिकायतकर्ता ने स्वेच्छा से संबंध बनाए थे, यदि संबंध नहीं चलता है, तो यह आईपीसी की धारा 376(2)(एन) के तहत अपराध के लिए प्राथमिकी दर्ज करने का आधार नहीं हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि यह फैसला उसके सामने मामले के तथ्यों पर पूरी तरह से लागू होता है।

इसी के तहत कोर्ट ने याचिकाकर्ता को नियमित जमानत दे दी।