लेटरल इंट्री से कार्यपालिका व कॉलेजियम से न्यायपालिका में रोका जा रहा है वंचित वर्ग का प्रतिनिधित्व।संविधान का अनुच्छेद-15 व 16 मूल अधिकार है।

चौ.लौटनराम निषाद

भारतीय संविधान का अनुच्छेद-15 व 16 मूल अधिकार है।केन्द्र सरकार नीति बनाने वाले संयुक्त सचिव, अतिरिक्त सचिव व निदेशक के पदों पर सीधे लेटरल इंट्री(पार्श्व भर्ती) द्वारा भर्ती करना शुरू कर दी है।बताते चले कि संघ लोक सेवा आयोग की कठिन त्रिस्तरीय प्रतियोगी परीक्षा(प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा व साक्षात्कार) द्वारा चयनित आईएएस 16-17 वर्ष की सेवा के बाद केन्द्र सरकार में सचिव,अतिरिक्त सचिव,संयुक्त सचिव, विशेष सचिव व निदेशक बनता है।परंतु मोदी सरकार सीधे बिना किसी प्रतियोगी परीक्षा के नीति बनाने वाले महत्वपूर्ण पदों पर निजी क्षेत्रों से लेटरल इंट्री द्वारा भर रही है।जिसमें आरक्षण नियमावली का पूरी तरह उल्लंघन किया जा रहा है।मोदी सरकार आरएसएस रणनीतिकारों के इशारे पर सुनियोजित तरीके से आरक्षण व्यवस्था को खत्म करने में जुटी हुई है।लेटरल इंट्री द्वारा कार्यपालिका व कॉलेजियम द्वारा न्यायपालिका में ओबीसी,एससी, एसटी,माइनॉरिटी का प्रवेश रोका जा रहा है।लेटरल इंट्री द्वारा पदों पर भर्ती 15(4) व 16(4) का सीधा उल्लंघन है।संविधान के इन अनुच्छेदों में व्यवस्था है कि सरकार वंचित वर्गों के प्रतिनिधित्व के लिए विशेष प्रावधान करेगी।बिना प्रतियोगी परीक्षा के लेटरल इंट्री द्वारा चहेतों की भर्ती मूल अधिकारों की हत्या है।और ऐसा निर्णय लेने वाली सरकार 15 व 16 के मूल अधिकारों की अपराधी है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद-315 से 330 में संघ लोक सेवा आयोग(यूपीएससी) की कार्यपध्दति का उल्लेख है।यूपीएससी को बाईपास कर बिना आरक्षण व प्रतियोगी परीक्षा के नीतिगत पदों पर नियुक्ति असंवैधानिक है।इस नियुक्ति में ओबीसी,एससी, एसटी के लिए कोई आरक्षण की व्यवस्था नहीं है।लेटरल इंट्री द्वारा जिन संयुक्त सचिवों की भर्ती की जा रही है ये नीति बनाने का काम करते हैं।अनुच्छेद-16(4) में व्यवस्था है कि किसी वर्ग,जाति का प्रतिनिधित्व समुचित नहीं है तो सरकार उन्हें आरक्षण/विशेष अवसर की व्यवस्था कर प्रतिनिधित्व देने का कदम उठाएगी।भाजपा व आरएसएस सीधे आरक्षण को तो खत्म नहीं करेगा,लेकिन लेटरल इंट्री से इन महत्वपूर्ण पदों पर सीधे बिना आरक्षण व प्रतियोगी परीक्षा के नियुक्त कर संविधान व आरक्षण को निष्प्रभावी कर देगा।मोदी सरकार वह कर रही है,जो अभी तक नहीं हुआ था।अनुच्छेद-320 में व्यवस्था है कि संघ व राज्य लोक सेवा आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वे क्रमशः संघ व राज्य की सेवाओं में नियुक्तियों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं का संचालन करेगा।संविधान के अनुच्छेद-14 के अंतर्गत अनुच्छेद-315-330 में एक संघीय लोक सेवा आयोग और राज्यों के लिए राज्य लोक सेवा आयोग के गठन के प्रावधान के साथ इनकी भर्तियों में जाति,वर्ग,धर्म व क्षेत्र के नाम पर कोई भेदभाव नहीं जाएगा।लेकिन वर्तमान में यूपीएससी स्कैम द्वारा ओबीसी,एससी, एसटी वर्ग को आईएएस बनने से रोका जा रहा है।


अनारक्षित का मतलब सिर्फ सवर्ण जातियों के लिए आरक्षण नहीं और सिर्फ सवर्ण जाति के उम्मीदवारों को नौकरी देना नहीं है।बल्कि मेरिटधारियों का कोटे के अलावा समायोजन करना है,भले ही वह आरक्षित(ओबीसी,एससी, एसटी) वर्ग का हो।यूपीएससी के साक्षात्कार में भी आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के साथ जातीय भेदभाव किया जाता है और ओबीसी, एससी, एसटी के अभ्यर्थियों को 275 के साक्षात्कार में 110 से 165 तक ही अधिकांशतः अंक दिया जाता है और सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को 160 से 250 तक दिए जाते हैं।यूपीएससी उम्मीदवारों का साक्षात्कार वर्गवार न कर मेरिट/रैंक के आधार पर करना चाहिए।वर्गवार साक्षात्कार बिल्कुल अनुचित है।सामान्य वर्ग व आरक्षित वर्ग का साक्षात्कार अलग अलग दिन में अलग अलग करना ही जातीय पक्षपात का कारण है।अभी तक शायद ही कोई ओबीसी,एससी, एसटी का अभ्यर्थी 275 के साक्षात्कार में 200 अंक पाया हो।पारदर्शिता के लिए साक्षात्कार की चयन समिति में ओबीसी,एससी, एसटी,माइनॉरिटी के सदस्यों का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिए।उम्मीदवार के नाम व उपनाम की बजाय अनुक्रमांक से चयन होना चाहिए ताकि चयनकर्ताओं को उम्मीदवार की जाति का पता न चले।

सचिव पदों पर आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व-

1.कैबिनेट सचिव के 20 में 19 पदों पर सामान्य वर्ग का कब्जा है, सिर्फ 1 कैबिनेट सचिव एससी वर्ग है।

  1. 89 सचिवों में 86 सामान्य वर्ग,1 एससी व 3 एसटी वर्ग के सचिव हैं,ओबीसी का प्रतिनिधित्व शून्य है।
  2. 91 अतिरिक्त सचिवों में 81 सामान्य,6 एससी व 4 एसटी हैं और ओबीसी का प्रतिनिधित्व शून्य है।
  3. 245 संयुक्त सचिवों में 190 सामान्य,17 एससी,9 एसटी व 29 ओबीसी के हैं।
  4. 79 उप सचिवों में 48 सामान्य,7 एससी,3 एसटी व 21 ओबीसी के हैं।
  5. 288 निदेशकों में 205 सामान्य,31 एससी,12 एसटी व 40 ओबीसी के निदेशक हैं।
    केन्द्रीय शिक्षण संस्थानों में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व-
  6. देश के 18 आईआईएम के 784 प्राध्यापकों में 590 सामान्य,27 ओबीसी,8 एससी व 2 एसटी के हैं और 157 पद रिक्त हैं।
  7. देश के 23 आईआईटी के 8856 प्राध्यापकों में 4876 सामान्य, 329 ओबीसी,149 एससी व 21 एसटी के हैं और 3481 पद रिक्त हैं।
    3.देश के 40 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के 1125 प्रोफ़ेसर में 1078 सामान्य,39 एससी व 8 एसटी हैं और ओबीसी का प्रतिनिधित्व शून्य है। 2620 एसोसिएट प्रोफेसर में 2456 सामान्य,130 एससी व 34 एसटी के हैं और ओबीसी का प्रतिनिधित्व शून्य है। 7741 असिस्टेंट प्रोफेसर में 5278 सामान्य,1113 ओबीसी,931 एससी व 429 एसटी के हैं।
    कैबिनेट सचिवालय व केन्द्रीय विभागों में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व-
    1.कैबिनेट सचिवालय के समूह-क के 81 अधिकारियों में 2 ओबीसी,6 एससी व 1 एसटी है।समूह-ख के 109 अधिकारियों में 20 ओबीसी,6-6 एससी व एसटी हैं।
    2.पब्लिक इंटरप्राइजेज विभाग के समूह-1 के 30 अधिकारियों में एससी के 5 व ओबीसी,एसटी का प्रतिनिधित्व शून्य है।
  8. नीति आयोग के ग्रुप-ए के 193 अधिकारियों में 15 ओबीसी,19 एससी व 13 एसटी हैं।
  9. उच्च शिक्षा विभाग के ग्रुप-ए के 221 अधिकारियों में 29 ओबीसी,39 एससी व 23 एसटी हैं।
    उच्चतम न्यायालय में प्रतिनिधित्व- उच्चतम न्यायालय में 2019 से न्यायाधीशों की संख्या 34 कर दी गयी है।इस समय 343 न्यायाधीश हैं और एक पद रिक्त है।उच्चतम न्यायालय में 11 ब्राह्मण,8 वैश्य,5 क्षत्रिय व 4 कायस्थ सहित 28 सवर्ण न्यायाधीश हैं।अनुसूचित जाति के 2 व 1-1 ओबीसी,मुस्लिम व ईसाई समुदाय के न्यायाधीश हैं।
    केन्द्रीय सेवाओं में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व-
    केन्द्रीय कार्मिक, लोक शिकायत व पेंशन राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह की 17 मार्च,2022 की सूचना के अनुसार ग्रुप-ए से डी में ओबीसी का प्रतिनिधित्व क्रमशः 16.88%,15.77%,22.54% व 20.14% है।यानी केन्द्रीय सेवाओं के ग्रुप-ए,बी, सी, डी में संयुक्त प्रतिनिधित्व 20.26% है।
    ग्रुप-ए से डी में एससी का प्रतिनिधित्व क्रमशः 12.86%,16.66%,18.22% व 32.72% यानी ग्रुप-ए,बी, सी व डी में संयुक्त प्रतिनिधित्व 17.70% है।
    ग्रुप-ए से डी में एसटी वर्ग का प्रतिनिधित्व क्रमशः 5.64%,6.55%,6.91% 7.66% यानी ग्रुप-ए,बी, सी, डी में संयुक्त प्रतिनिधित्व 6.72% है।
    केन्द्रीय सेवाओं में ओबीसी को 27 प्रतिशत,एससी को 15 प्रतिशत एवं एसटी को 7.5 प्रतिशत आरक्षण व्यवस्था है।ग्रुप-बी, सी, डी में एससी को निर्धारित कोटा से अधिक प्रतिनिधित्व मिल चुका है।परंतु ओबीसी व एससी का कोटा अभी भी पूरा नहीं हुआ है।ग्रुप-ए में ओबीसी,एससी, एसटी को अभी समुचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। ओबीसी को ए व बी में 16.33%,एससी को 14.76% व एसटी को 6.09% ही प्रतिनिधित्व मिल पाया है।
    ग्रुप-ए में 64.58%,बी में 61.0%, सी में 52.29%, डी में 39.46% सामान्य वर्ग का प्रतिनिधित्व है।सभी समूहों में सामान्य वर्ग का संयुक्त प्रतिनिधित्व 55.28 प्रतिशत है।
    “जिसकी जितनी संख्या भारी,उसकी उतनी हिस्सेदारी” संविधान सम्मत-
    संविधान के अनुच्छेद-15(4) व 16 (4) सभी वर्गों के समुचित प्रतिनिधित्व को परिभाषित करता है।सभी वर्गों के समुचित प्रतिनिधित्व के लिए कास्ट व क्लास सेन्सस कराकर सभी स्तरों पर हर वर्ग को समानुपातिक प्रतिनिधित्व देने का ठोस निर्णय किया जाना आवश्यक है।सामाजिक न्याय आधारित स्वस्थ लोकतंत्र के लिए “जिसकी जितनी संख्या भारी,उसकी उतनी हिस्सेदारी” के लिए सार्थक कदम उठाया जाना चाहिए।

    (लेखक व संकलन कर्ता सामाजिक न्याय चिन्तक व भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।)