कॉलेजियम सिस्टम का कलंक-लौटनराम निषाद

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कॉलेजियम सिस्टम का कलंक-लौटनराम निषाद
कॉलेजियम सिस्टम का कलंक-लौटनराम निषाद

यूपीएससी पैटर्न की प्रतियोगी परीक्षा द्वारा हो न्यायाधीशों का चयन। कॉलेजियम सिस्टम के कारण उच्च न्यायपालिका में ओबीसी,एससी,एसटी का प्रतिनिधित्व नगण्य। उच्च न्यायालय के कॉलेजियम का नेतृत्व उसके मुख्य न्यायाधीश और उस न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश करते हैं। उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से ही की जाती है और इस प्रक्रिया में सरकार की भूमिका कॉलेजियम द्वारा नाम तय किये जाने के बाद की प्रक्रिया में ही होती है। कॉलेजियम सिस्टम का कलंक-लौटनराम निषाद

भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों का कॉलेजियम से मनोनयन को असंवैधानिक व अनोखी परम्परा बताते हुए कहा कि कॉलेजियम सिस्टम से तुच्छजातिवाद, परिवारवाद व भाई-भतीजावाद को बढ़ावा मिलता है।उन्होंने कहा कि उच्च न्यायपालिका में ओबीसी,एससी, एसटी का प्रतिनिधित्व नगण्य है।उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय में ऊँची जातियों का ही शुरू से आजतक वर्चस्व कायम है।जिसके कारण वंचित वर्गों को उचित न्याय नहीं मिल पाता है।विधि एवं न्यायमंत्री किरण रिजिजू द्वारा दी गयी सूचनानुसार 10 मार्च 2023 तक, उच्चतम न्यायालय में कोई रिक्ति नहीं है। जहां तक उच्च न्यायालयों का संबंध है, 1114 न्यायाधीशों के स्वीकृत पद संख्या के विरुद्ध, 780 न्यायाधीश कार्यरत है और न्यायाधीशों के 334 पद रिक्त हैं। वर्तमान में, उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा 118 प्रस्तावों की सिफारिश की गई है, जो प्रक्रिया के विभिन्न चरणों पर हैं। उच्च न्यायालय कॉलेजियम से उच्च न्यायालयों में 216 रिक्तियों के विरुद्ध सिफारिशें अभी तक प्राप्त नहीं हुई हैं।

भारत में कॉलेजियम प्रणाली में क्या समस्या है…? कोई सार्वजनिक ज्ञान नहीं है कि कॉलेजियम कैसे और कब मिलता है, और कॉलेजियम की कार्यवाही के आधिकारिक कार्यवृत्त के बिना यह कैसे निर्णय लेता है। भाई-भतीजावाद और पक्षपात- भाई-भतीजावाद और पक्षपात के आरोप कॉलेजियम में न्यायाधीशों के साथ अपने करीबी रिश्तेदारों की सिफारिश करते हैं। असंवैधानिक और निरंकुश : ‘कॉलेजियम’ का संविधान में कहीं भी उल्लेख नहीं है और न्यायपालिका द्वारा स्वयं न्यायाधीशों का चयन करने की शक्ति को बनाए रखने के लिए इसे विकसित किया गया है।

लौटनराम निषाद
लौटनराम निषाद

लौटनराम निषाद ने बताया कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 124,अनुच्छेद 217 और अनुच्छेद 224 के अधीन की जाती है जो किसी भी जाति या वर्ग के व्यक्तियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं करते हैं। तथापि, सरकार उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्तियों से अनुरोध करती रही है कि उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव भेजते समय, नियुक्ति में सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्प संख्यकों और महिलाओं के उपयुक्त अभ्यर्थियों पर उचित विचार किया जाए ।लेकिन स्वर्ण जातिवादी मानसिकता के कारण वंचित वर्गों के साथ सामाजिक न्याय होता आ रहा है। संविधान लागू होने के बाद अभी तक अनुसूचित जाति के श्री के.रामास्वामी,श्री के.जी.बालकृष्णन,श्री बी. सी.रे ,श्री ए.वर्धराजन सहित सिर्फ 4 और ओबीसी के केवल 2 ही न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय में बन पाए हैं।आज तक अनुसूचित जनजाति को उच्चतम न्यायालय में प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। सुप्रीम कोर्ट में आखिर एक ही जाति का वर्चस्व क्यों हैं? रंगनाथ मिश्र की 3 पीढ़ी,ललित व चंद्रचूड़ की 2 पीढ़ी उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर आसीन हुए है।


निषाद ने बताया कि संविधान के आर्टिकल- 12 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट को राज्य माना जाना चाहिए। आरक्षण का प्रावधान सुप्रीम कोर्ट में राज्य की भांति होना चाहिए।संविधान के आर्टिकल 312 (1) के अनुसार न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए भारतीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन होना चाहिए। संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के 42 वें संशोधन के अनुसार न्यायाधीशों की भर्ती के लिए संघ लोक सेवा आयोग व लोक सेवा आयोग की तरह ऑल इंडिया ज्यूडिशियरी सर्विस कमीशन का गठन किया जाना चाहिए।इसके लिए बिल संसद में कभी पेश ही नहीं किया गया। संविधान के आर्टिकल-229 के अनुसार कर्मचारियों एवं अधिकारियों के मामले में उच्च न्यायालय अपने आप को राज्य मानता है और राज्य के अनुसार आर्टिकल-15(4), 16(4) और 16(4 )(क) का पालन क्यों नहीं किया जाता है? केशवानंद भारती मामले में भी आर्टिकल-12 के अनुसार उच्च एवं उच्चतम न्यायालय को राज्य माना गया है, तो राज्यों के लिए लागू आरक्षण का प्रोविजन उच्च एवं उच्चतम न्यायालय में लागू क्यों नहीं किया गया?

जब ओबीसी,एससी, एसटी आईएएस,आईपीएस,आईआरएस,आईएफएस आदि बन सकता है, राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री, राज्यपाल,मुख्यमंत्री बन सकता है तो सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बनने के लिए कौन सी अनोखी प्रतिभा होनी चाहिए? उन्होंने कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट,हाई कोर्ट में जज बनने के लिए मेरिट ही आवश्यक है तो ऑल इंडिया ज्यूडिशियरी सर्विस व स्टेट ज्यूडिशियरी सर्विस कमीशन का गठन करके खुली प्रतियोगिता के माध्यम से न्यायाधीशों का चयन क्यों नहीं किया जा रहा है? भारत में उच्च न्यायपालिका में कॉलेजियम द्वारा न्यायाधीशों का मनोनयन विश्व की एक अनोखी परम्परा है जिसके कारण उच्च न्यायपालिका में 3-4 सवर्ण जातियों का ही वर्चस्व कायम है।उन्होंने कहा कि प्राथमिक शिक्षक, समूह-ग के कर्मचारियों के चयन के लिए टेट,पेट की परीक्षा कराई जाती है और उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीश ही न्यायाधीश का मनोनयन करते हैं।उन्होंने कहा कि लोक सेवा आयोग,संघ लोक सेवा आयोग,कर्मचारी चयन आयोग आदि की कठिन त्रिस्तरीय प्रतियोगी परीक्षा में सफल लोकसेवक व जनता के जनमत से चुने जनप्रतिनिधियों को एक नामित न्यायाधीश कटघरे में खड़ाकर सजा सुनाता है,जो संवैधानिक व नैसर्गिक न्याय के बिल्कुल प्रतिकूल है।उन्होंने भारतीय न्यायिक सेवा आयोग का गठन कर लोक सेवा आयोग व संघ लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षा के पैटर्न पर त्रिस्तरीय न्यायिक भर्ती परीक्षा द्वारा उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों का चयन किये जाने की मांग की है। कॉलेजियम सिस्टम का कलंक-लौटनराम निषाद