आईपीसी की धारा 377 रद्द की जा सकती है-दिल्ली हाईकोर्ट

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वैवाहिक मामलों में पक्षकारों के बीच समझौता होने के बाद आईपीसी की धारा 377 के तहत एफआईआर रद्द की जा सकती है।

अजय सिंह

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि जिन वैवाहिक मामलों में आपसी समझौता हो जाता है, वहां भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अपराध से भी समझौता किया (आपस में मिलकर निपटाया) जा सकता है और एफआईआर को रद्द किया जा सकता है क्योंकि पक्षकारों को अपने जीवन में आगे बढ़ना है।

जस्टिस तलवंत सिंह की पीठ ने रिफाकत अली व अन्य बनाम राज्य व अन्य के मामले में एक समन्वय पीठ द्वारा 26 फरवरी, 2021 को दिए गए एक निर्णय से सहमति व्यक्त की, जिसमें अदालत ने आईपीसी की धारा 377 के तहत दर्ज एक एफआईआर को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि पक्षकारों ने एक-दूसरे के साथ केवल इसलिए समझौता कर लिया है क्योंकि यह मामला एक वैवाहिक विवाद से उत्पन्न हुआ था।

अदालत ने 6 सितंबर को दिए एक फैसले में कहा, ”समन्वय पीठ का विचार यह है कि वैवाहिक मामलों में, जहां समझौता हो जाता है, वहां आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध से भी समझौता किया जा सकता है और एफआईआर को रद्द किया जा सकता है क्योंकि मामले के पक्षकारों को अपने जीवन में आगे बढ़ना है। मैं उक्त दृष्टिकोण से सहमत हूं।”इस प्रकार अदालत ने पुलिस थाना अपराध महिला प्रकोष्ठ, नानक पुरा द्वारा पत्नी की तरफ से दायर शिकायत पर आईपीसी की धारा 406, 498ए, 354, 377 व 34 के तहत दर्ज एफआरआर को रद्द कर दिया।

पति ने इस आधार पर एफआईआर को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था कि पत्नी ने अपने सभी विवादों को पति और ससुराल वालों के साथ सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया है और पिछले साल सितंबर में दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया था।

समझौते के अनुसार, यह सहमति हुई थी कि पति पत्नी को सभी दावों, स्त्रीधन, बच्चे के भरण-पोषण और स्थायी गुजारा भत्ता के लिए कुल 74,00,000 रुपये की एकमुश्त राशि का भुगतान करेगा, जबकि पत्नी पूर्वाेक्त राशि में से उनके नाबालिग बच्चे के लाभ के लिए बच्चे के नाम पर (जब तक कि वह वयस्क नहीं हो जाता) 10 लाख रुपये निवेश करेगी।यह भी सहमति हुई कि नाबालिग बच्चे की कस्टडी और संरक्षकता पत्नी के पास रहेगी जो बच्चे की एकमात्र संरक्षक होगी। यह भी सहमति बनी कि पति बच्चे के जन्मदिन पर उसके साथ एक घंटे के लिए वीडियो कॉल कर सकता है या वैकल्पिक रूप से सप्ताह में एक घंटे के लिए बच्चे से मिल सकता है।

कोर्ट ने कहा, ”इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि पक्षकारों ने अपने सभी विवादों को सुलझा लिया है, इसलिए आईपीसी की धारा 354 के तहत अपराध को भी रद्द करने की अनुमति दी जाती है ताकि पक्षकारों के बीच के सभी मनमुटावों को समाप्त किया जा सके और वह अपने जीवन का एक नया अध्याय शुरू कर पाएं।”एफआईआर को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि पक्षकार समझौते की शर्तों और अदालत में दी गई अंडरटेकिंग का पालन करने के लिए बाध्य रहेंगे। तद्नुसार याचिका का निस्तारण किया गया।

केस टाइटल- अनीश गुप्ता व अन्य बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली व अन्य