कुछ ख्वाब आसमानी रह गए…

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कुछ ख्वाब आसमानी रह गए...
कुछ ख्वाब आसमानी रह गए...

विनोद यादव/संजय तिवारी

कुछ खास फर्क नहीं पड़ता अब ख्वाब अधूरे रहने पर…..
बहुत करीब से सपनों को टूटते देखा है…..
कुछ ख्वाब आसमानी रह गए…

कुछ बातें पुरानी सी कुछ ख्वाब आसमानी रह गए।
कुछ ख्वाहिशें अधूरी रहीं क्यूटों कहानीं बन रह गए।
बादल से उड़े मन की बातें शतक जुबानी ही रह गए।
एक प्याला चाय का पी कर मदहोश हो गए हम भी।
तलब उसकी न रहीं हमें अभी मुद्दे खानदानी रह गए।
भलें मन की बात के शतक हो गए पूरे आजकल तो।
साहब के क्यूटों कागज में रहें हम राजधानी में रह गए।
क्या शोर क्या महौल क्या प्रचार दिलों पे छाया रहा।
बिक कर छपें जो मालामाल हम बागी जुबानी रह गए।
हर बार खतरे नए आने की गुहार लगी हैं मगर साहब।
जनता के हाथ में थमाई झोली वोट खानदानी रह गए।
न बदन पे कपडे़ नसीब न दो वक्त की रोटी का जुगाड़।
हम मेहनतकश ओ नए बातों की कहानीं में रह गए ।
न धूप देखी न कभी छाव ,लगी भूख भलें पैरों में घाव।
दो वक्त की रोटी के जुगत में हम गरीब कहानीं हो गए।
झूठे वादों के इस दौर में हम तो फजीहस्तानी हो गए।
तुम्हारे दफ्तर आलीशान हम छप्पर से कालोनीधानी हो गए।

आज की राजनीति क्या है इस पोस्ट के माध्यम से बताने की कोशिश कर रहा हूँ:-



एक व्यापारी था 5 रुपए की एक रोटी बेचता था। उसे रोटी की कीमत बढ़ानी थी लेकिन बिना राजा की अनुमति कोई भी अपने दाम नहीं बढ़ा सकता था। लिहाजा राजा के पास व्यापारी पहुंचा, बोला राजाजी मुझे रोटी का दाम 10 करना है। राजा बोला तुम 10 नहीं 30 रुपए करो। व्यापारी बोला महाराज इससे तो हाहाकार मच जाएगा। राजा बोला इसकी चिंता तुम मत करो। तुम 10 रुपए दाम कर दोगे तो मेरे राजा होने का क्या फायदा। तुम अपना फायदा देखो और 30 रुपए दाम कर दो। अगले दिन व्यापारी ने रोटी का दाम बढ़ाकर 30 रुपए कर दिया। शहर में हाहाकार मच गया। तभी सभी जनता राजा के पास पहुंचे, बोले महाराज यह व्यापारी अत्याचार कर रहा है। 5 की रोटी 30 में बेच रहा है। राजा ने अपने सिपाहियों को बोला उस गुस्ताख बनिए को मेरे दरबार में पेश करो।व्यापारी जैसे ही दरबार में पहुंचा, राजा ने गुस्से में कहा गुस्ताख तेरी यह मजाल तूने बिना मुझसे पूछे कैसे दाम बढ़ा दिया। यह जनता मेरी है तू इन्हें भूखा मारना चाहता है। राजा ने बनिए को आदेश दिया तुम रोटी कल से आधे दाम में बेचोगे, नहीं तो तुम्हारा सर कलम कर दिया जाएगा। राजा का आदेश सुनते ही पूरी जनता ने जोर से बोला…. महाराज की जय हो, महाराज की जय हो, महाराज की जय हो।


नतीजा सुनिए…. अगले दिन से 5 की रोटी 15 में बिकने लगी। अब जनता भी खुश…व्यापारी भी खुश…और राजा भी खुश। यही है राजनीति। आज समझ में नहीं आता राजा व्यापारी है कि व्यापारी राजा है कि दोनों एक ही है।