सुकून देती वादियाँ

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सुकून देती वादियाँ
सुकून देती वादियाँ

विनोद जनवादी

विनोद यादव
विनोद यादव

प्रकृति हमें जो सुकून देती है, दुनियां में कोई भी दूसरी चीज़ से उसकी तुलना नहीं की जा सकती हैं। ये वादियाँ मेरी हंसीं वादियाँ।

इन वादियों को निहारते-निहारते यहीं मन करता हैं काश जीवन के वक्त का पहिया यहीं रुक जाता और शाम यहीं थम जाए।
ये वादियाँ मेरी हसीं वादियाँ।
ऊँचे-ऊँचे पहाड़ और पहाडों पर तरह तरह के पेड़
नदियों, झरनों का बहना यह
कहता हैं आगे बढ़ते चलो,
रुकना मत थमना मना हैं
जिंदगी यहीं नहीं है खत्म होगी
पहाडों की तरह ऊचा बनों
और डट कर खडे़ रहने की हिम्मत पालों ।।
टहलते टहलते दिलीप ने कहा
कुदरत की इस खूबसूरती का
लुत्फ उठा रहा हूं।
ये पहाड़ियां, वादियां, मुझे बुला रही है।
कह रहीं हैं जैसे हमने सभी को समेटा हैं उसी तरह तुम भी एक विशाल चट्टान की तरह मजबूत बनों ।
अंकित रहें मेरे दिल में छवि तुम्हारी तुम मेरे आगोश में आ जाओ।
मेरी बाहों में समा जाओ
मेरे कदम भी आहिस्ता आहिस्ता बढ़ते जा रहे हैं मगर मैं खाई से डरता हूँ
होश में नहीं हूं अभी विनोदी मन हैं मेरा ।
चाह कर भी खुद को रोक नहीं पा रहा हूं । तेरी तारीफ़ में लिखता जा रहा हूं ।
लगता है, इन वादियों से
अनमोल रिश्ता है, पुराना रिंकू ।
जो मुझे लम्हा लम्हा बुला रही है,
कह रही है,सदियों से तेरे इंतजार में खामोश था कोई आता और निहारता जी भर कर मुझें । झरनों की कलकलाहट अभी भी मेरे आगोश में समाती चली जा यही हैं । पहाडों के कुल का पता नहीं मगर दीप जगह जगह जगमग किए जा रहें हैं । हैरान हूं विनोद तेरी कल्पना में जब से आया लिखता ही जा रहा हूँ ।।
नीचे उतर आया हूं पहाडों से
सोचता कि अभी चोटी पर था
चोटी को देखता हूं तो लगता है
कि क्या सचमुच वहां था।। सुकून देती वादियाँ