आध्यात्मिक उन्नति ही वास्तविक सुख

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जब हम आध्यात्मिक जीवन जीते हैं और भक्ति को अपने जीवन का अंग बनाते हैं तो हमारे जीवन से इच्छाओं का धीरे-धीरे लोप होने लगता है, और हमारा सारा ध्यान एक मात्र प्रभु की इच्छा पर ही केन्द्रित होता है। हमारी इच्छा प्रभु को खुश करने और प्रभु के नाम का जप और कीर्तन करने की होने लगती है।दूसरे समृद्ध लोगों को देख कर हमारे अन्दर ईष्या का भाव नहीं आता। हमारे पास जो कुछ हैं हम उसी में सन्तुष्ट रहते हैं और उसी से अपने प्रभु की सेवा करते हैं। यदि यह भक्तिमय आध्यात्मिकता समाज में फैल जाये तो लड़ाई-झगड़ा , वैर-भाव , ईष्या ये सभी समाज से विदा हो जायेंगे और एक सन्तोषी सुखी समाज की स्थापना हो सकेगी। आज का भारत, भारतीय जीवनशैली एवं उससे संस्कारित ज्ञान की धरोहर और शक्ति के बजाय पाश्चात्य सभ्यता एवं तकनीक का अनुकरण कर सुखी बनना चाहता है परंतु, आधुनिक तकनीकी से विकसित देश भी आज सुखी नहीं हैं। भारतीय जीवनशैली आध्यात्मिक ज्ञान के साथ भौतिक ज्ञान से भी परिपूर्ण है। वेदों में खगोल विज्ञान, गणित, चिकित्सा विज्ञान, एवं अनेक अन्य विषयों पर जो सिद्धान्त वर्णित हैं, आज का आधुनिक जगत उनको अपनी खोज बता कर इतरा रहा है। वैदिक युग में भौतिक विज्ञान की उन्नति हुई थी किन्तु तत्कालीन लोग इसे महत्वपूर्ण नहीं मानते थे। उनकी रूचि पर्यावरण संरक्षण में अधिक थी। अपनी इसी शक्ति के बल पर भारत विश्व गुरु के रूप में सम्मानित हुआ। किंतु आज भौतिकतावाद एवं पाश्चात्य सभ्यता में डूबे लोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए आर्थिक विकास के नाम पर अज्ञानतावश प्रकृति का शोषण कर रहे हैं, किंतु तथाकथित भौतिक आवश्यकताओं की वस्तुएं समय के साथ नष्ट हो जाने वाली हैं।

भारतीय जीवनशैली से ही प्रकृति का संरक्षण संभव –

प्रकृति के प्रति निष्ठुरता एवं अनुशासनहीनता को त्याग कर, आर्थिक विकास तथा भौतिक प्रगति का उपयोग यदि भारतीय जीवनशैली का अनुसार प्रकृति को सुरक्षित और संरक्षित करने के साथ हो तो प्रगतिशील मानव जीवन के एक नवीन पक्ष का उदय होगा।भारतीय जीवनशैली कल भी सर्वोत्तम थी, आज भी सर्वोत्तम है और यदि भारतीय जीवनशैली का पूर्ण सम्मान किया जाए तो पर्यावरण संरक्षण तो होगा ही बल्कि यह आने वाले समय में भारत विश्वगुरू बनकर पुनः स्वयं भारतीय जीवन शैली की उत्कृष्टता सिद्ध करेगा।प्रकृति के प्रति निष्ठुरता एवं अनुशासनहीनता को त्याग कर,आर्थिक विकास तथा भौतिक प्रगति का उपयोग यदि भारतीय जीवनशैली का अनुसार प्रकृति को सुरक्षित और संरक्षित करने के साथ हो तो प्रगतिशील मानव जीवन के एक नवीन पक्ष का उदय होगा।प्रकृति यानी पंचतत्वों यानी आकाश, पृथ्वी, जल, वायु एवं अग्नि पर आधारित जीवन। यदि मानव जाति इन पंचतत्वों पर गंभीरता से विचार करे तो पांचों तत्वों के उपभोग का सौभाग्य मात्र मनुष्यों को ही प्राप्त है। देवताओं को भी यह सौभाग्य प्राप्त नहीं है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी हो या अन्य तमाम बीमारियां, यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि यदि हम प्रकृति के साथ चलते रहेंगे तो न सिर्फ बीमारियों से बचे रहेंगे बल्कि बिना इलाज के लंबे समय तक ऋषियों-मुनियों की तरह स्वस्थ रहते हुए जीवन जीते रहेंगे।प्रकृति के करीब रहने का मतलब यह है कि हमें अपनी मनमानी छोड़नी होगी और प्राकृतिक संदेशों को समझकर उस पर अमल करना ही होगा। बेवक्त यदि सूखा, बाढ़, तूफान या अन्य प्राकृतिक आपदाएं आती हैं तो इससे मानव जाति को बिना किसी किन्तु-परंतु के यह समझ लेना चाहिए कि उसने कोई न कोई गलती जरूर की है। सनातन संस्कृति में जितने भी व्रत, त्यौहार एवं उत्सव हैं, वे सब प्रकृति एवं समय-समय पर होने वाले प्राकृतिक बदलावों को ध्यान में रखकर ही बनाये गये हैं। अब यह हम सभी पर निर्भर करता है कि उसको कितना जानने का प्रयास करते हैं एवं उस पर कितना अमल करते हैं? अपने देश में दूसरी लहर ने यह बहुत ही अच्छी तरह बता दिया कि आक्सीजन का क्या महत्व है? कृत्रिम आक्सीजन एवं वैक्सीन की डोज कुछ दिनों के लिए राहत तो दे सकती है किन्तु लंबे समय तक स्वस्थ रहने के लिए इस पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है।