सपा के नवरत्नों ने बिगाड़ा अखिलेश का खेल

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लोकतंत्र और संविधान खतरे में-अखिलेश यादव
लोकतंत्र और संविधान खतरे में-अखिलेश यादव

समाजवादी पार्टी की बनती हुई सरकार कुछ गलतियों ने दूर हो गयी।भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग के आगे फेल हो गयी सपा की सोशल इंजीनियरिंग।


[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”इस समाचार को सुने”] लखनऊ। राजनीति में साफ बिधारधारा होनी चाहिए।ढुलमुल व दुविधापूर्ण विचारधारा राजनीति में उचित नहीं मानी जाती।समाजवादी पार्टी को सामाजिक न्याय आधारित पिछड़ों, वंचितों, दलित,मजदूर,किसानों व मुसलमानों की पार्टी माना जाता है और इन्ही को आधार मानकर पार्टी का गठन किया गया।भारतीय जनता पार्टी की विचाराधारा बिल्कुल साफ है कि वह हिंदुत्व की राजनीति करती है और सवर्ण आधारित पार्टी है।हिंदुत्व के मुद्दे पर वह खुलकर खेलती हज।पूरे चुनाव भर लगभग हर मंच से वह 20 वनाम 80 की बात जोर शोर से उठाती रही।उसका इशारा साफ था कि उसकी राजनीति20 प्रतिशत मुसलमानों के विरुद्ध है।ऐसी स्थिति में राजनीति के पिच पर सपा को खुलकर 15 वनाम 85 की बैटिंग करनी चाहिए थी।सपा की महज कुछ गलतियों के कारण हाथ मे आई हुई सत्ता की गेंद फिसल कर भाजपा के पाले में चली गयी।सपा इस बार सोशल इंजीनियरिंग को साधने के भरसक प्रयास किया,लेकिन भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग के आगे कुछ गलतफमियों के कारण फेल हो गयी।यह निश्चित था कि ब्राह्मण वोट भाजपा को छोड़ सपा को मिलने वाला नहीं है,के बावजूद भी सपा सुप्रीमो परशुराम का फरसा लहराती रही।परिणाम यह हुआ कि ब्राह्मण वोट तो मिला नहीं,अपने भी छिटक गए।आरएसएस की रणनीतियों पर पार्टी के ही अंदर के कुछ ब्रह्म वोट की बदौलत सत्ता की मृगमरीचिका दिखाते हुए गुमराह करते रहे।बिहार में जिस तरह महज 12 हजार वोट से राजद के हाथ से आई हुई सत्ता फिसल गई,वही सपा भी लगभग 5 लाख वोट से पीछे रह गयी।सपा का वोट प्रतिशत 12 प्रतिशत बढ़ा, लेकिन अभी उसे कुछ और कवायद कर 2 प्रतिशत वोट बढाना आवश्यक था।भाजपा के पदाधिकारी व कार्यकर्ता जमीन पर उतर कर काम करने में जुटे थे,वही सपा के नवरत्न,जिम्मेदार पदाधिकारी अतिविश्वास में ठंडा पड़े रहे।अखिलेश यादव की रथयात्रा में जुटी भीड़ देखकर पदाधिकारी व कार्यकर्ता अतिउत्साह में बूथ स्तर पर सही तरीके से काम नहीं किये।


प्रशासनिक मदद से सपा का वोट कटवाने में भाजपा रही सफल,पर सपा बेखबर-
भाजपा रणनीतिकारों ने हर विधानसभा क्षेत्र में सपा समर्थक 15-20 हजार वोट प्रशासन की मदद से कटवाने में सफल रही।वही सपा आती हुई सत्ता की खुमारी में भाजपा की रणनीति व साज़िश से बेखबर पड़े रहे।हर गांव व बूथ से यादव व मुस्लिम के 50 से 100 मतदाताओं का नाम मतदाता सूची से कटवा दिया गया।अमूमन हर विधानसभा में 300 से 400 बूथ होते हैं। हर बूथ से 50 वोट कटा तो 15 से 20 हजार वोट का सीधे नुकसान प्रशासन की मदद से भाजपा ने करा दिया।


जहाँ बसपा मजबूती से लड़ी, वहाँ सपा भारी पड़ी-
जिस जिले व क्षेत्र में बसपा कमजोर रही,मजबूती से नहीं लड़ी,वहां भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा और जहाँ बसपा मजबूती से लड़ीं,वहाँ सपा की बल्ले बल्ले रही।पूरे चुनाव के दौरान मायावती का सिर्फ 2 बयान आया-कांग्रेस जातिवादी पार्टी है और मायावती ने कह दिया था कि जहां हम जीतने की स्थिति में न हों,वहाँ सपा को हराने के लिए भाजपा को वोट दे देना।इस बार चुनाव में देखने को मिला कि बसपा का आधार वोटर जाटव भी कुछ न कुछ भापा को वोट दिया।


अतिपिछड़ों को मजबूती से नहीं जोड़ पाई सपा-

उत्तर प्रदेश की राजनीति में अतिपिछड़ी जातियों की अहम भूमिका रहती है।यही वर्ग यूपी की राजनीति में गेमचेंजर की भूमिका में रहता है।50 प्रतिशत अतिपिछड़ी जातियों को जिस दल ने अपने पाले में कर लिया,सत्ता उसके हाथ मे आ जाती है।सपा को अतिपिछड़ों का अच्छा वोट मिला पर उसमे 7-8 प्रतिशत और सेंधमारी की जरूरत थी।भाजपा संगठन से लेकर टिकट वितरण तक माइक्रो सोशल इंजीनियरिंग पर काम करती है।


लौटनराम निषाद का सपा से दूर जाना सपा के लिए नुकसानदेह रहा-
लौटनराम निषाद को समाजवादी पार्टी पिछड़ावर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष बनाने के बाद अतिपिछड़ों, दलितों की रुझान सपा की ओर तेजी से बढ़ी थी।निषाद, बिन्द, कश्यप समाज का बहुमत सपा के साथ हो गया था।निषाद पार्टी की उल्टी गिनती शुरू हो गयी थी।पर,दुबिधा में पड़ सपा सुप्रीमो में एक ही झटके में लौटनराम निषाद को बाहर का रास्ता दिखा दिए।लौटनराम निषाद जिस सामाजिक न्याय की विचारधारा पर बेबाकी से अपना पक्ष रखते थे,पिछड़ों,दलितों,वंचितों व अल्पसंख्यकों को वही भाषा पसन्द आ रही थी।जिस पिछड़ावर्ग प्रकोष्ठ को लोग अच्छी तरह जाने नहीं थे,लौटनराम निषाद की सक्रियता, माइक्रो सोशल इंजीनियरिंग बेस का संगठन व मजबूत बैचारिकी के कारण कुछ ही महीने में चर्चा का विषय बना दिये।पिछड़ावर्ग प्रकोष्ठ के आगे पार्टी की मुख्य इकाई भी फीकी पड़ने लगी,पर कुछ लोगों को लौटनराम निषाद की मजबूत होती सामाजिक पकड़ अच्छी नहीं लगी और इधर उधर कर पदच्युत कराकर पार्टी की जड़ों मस मट्ठा घोल दिए।


लौटनराम को हटाने से निषाद पार्टी को मिल गया जीवनदान-

सपा पिछड़ावर्ग प्रकोष्ठ के लौटनराम निषाद को अध्यक्ष बनाये जाने के बाद निषाद पार्टी तो नेपथ्य में चली गयी थी।निषाद पार्टी के काफी पदाधिकारी व कार्यकर्ता सपा से जुड़ गए थे।पर,लौटनराम निषाद को पद से हटाने के बाद निषाद पार्टी को जीवनदान मिल गया,संजय निषाद को बोलने का मौका मिल गया।घूम घूमकर निषादों को यह समझाने लगे कि दूसरे के महल से बड़ी झोपड़ी ही अच्छी होती है।देख लिया न,अखिलेश यादव ने किस तरह समाज को अपमानित कर लौटनराम निषाद को पद से हटा दिए।इसलिए दूसरे के चक्कर में न पड़ अपनी पार्टी को मजबूत करो,तब अपना राज आएगा।यह कहना गलत नहीं,लौटनराम निषाद सपा के साथ रहे होते तो सपा सत्ता से दूर नहीं रही होती।


सपा के नवरत्नों ने बिगाड़ दिया खेल :-
विधानसभा चुनाव-2022 में सपा ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए 2.9 करोड़ वोट इकट्ठा किया।महज 5 लाख वोट की कमी से सत्ता से दूर हो गयी।सपा के नवरत्नों ने बना बनाया खेल बिगाड़ दिया।टिकट वितरण में भी कुछ गड़बड़ियां हुई।सही तरीके से टिकट का वितरण नहीं हुआ।सोशल मीडिया पर तो अखिलेश यादव जी के सलाहकार उदयवीर सिंह की खूब खिंचाई हुई।उदयवीर सिंह अपने को अमर सिंह की भूमिका में समझ कर पार्टी को सत्ता से दूर कर दिया।टिकट का सही ढंग से वितरण हुआ होता और कार्यकर्ता व पदाधिकारी क्षेत्र व बूथ पर काम किये होते तो बलिया,वाराणसी,मिर्जापुर,भदोही,चंदौली,आर्यग्रज,सुल्तानपुर, जौनपुर,कन्नौज,अयोध्या,बहराइच, सीतापुर,लखीमपुर, सिद्धार्थनगर, सन्तकबीरनगर, देवरिया, मऊ,कुशीनगर,महाराजगंज,बाराबंकी,शाहजहांपुर, लखनऊ, मैनपुरी,फिरोजाबाद, उन्नाव,गोण्डा, बलरामपुर, हरदोई, बरेली,बदायूँ,एटा,फर्रूखाबाद, कासगंज आदि जिलों से सपा को 80-90 सीटें और मिल गयी होतीं।


18वीं विधानसभा चुनाव में जातियों की क्या रही स्थिति….?
उत्तर प्रदेश में 18वीं विधानसभा के लिए कुल 403 विधायक विभिन्न जाति और धर्मों से चुने गए हैं। पसंद और नापसंदगी की बात अलग है, लेकिन भारत में कोई भी चुनाव जाति और धर्म से परे नहीं होते। यूपी सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य है, इसलिए इस मायने में भी इसका दायरा सबसे विशाल होना स्वाभाविक है। हम यहां हर जाति और किस पार्टी में उनको कितना प्रतिनिधित्व मिला है, उसके पूरे आंकड़े जुटाकर लाए हैं। कई आंकड़े बहुत ही चौंकाने वाले हो सकते हैं। लेकिन, भारतीय जनता पार्टी गठबंधन से इस मामले में समाज के सबसे बड़े तबके को नुमाइंदगी मिली है।


403 सीटों पर विभिन्न जाति- धर्मों का प्रतिनिधित्व :-
यूपी चुनाव में जीतकर विधानसभा पहुंचे विभिन्न जातियों और धर्मों के विधायकों का अलग-अलग ब्योरा देखने से पहले मोटे तौर पर इसके आंकड़े पर गौर फरमा लीजिए। अगर संप्रदाय के हिसाब से देखें तो उत्तर प्रदेश विधानसभा की कुल 403 सीटों के लिए सिख समुदाय से एक विधायक चुना गया है। उसके बाद मुसलमानों की संख्या है, जिनकी तादाद 2017 के मुकाबले 10 बढ़ी है और कुल 34 मुस्लिम विघायक सपा से चुने गए हैं। बाकी 368 एमएलए हिंदू हैं। जहां तक मुस्लिम विधायकों की बात है तो सारे के सारे सपा गठबंधन से चुनाव जीते हैं और सिख समुदाय के एकमात्र विधायक बलदेव सिंह औलख बिलासपुर सीट से भाजपा के टिकट पर जीतकर विधानसभा के सदस्य चुने गए हैं।


पिछड़ी जातियों के सबसे ज्यादा विधायक :-
अब चुने गए 368 हिंदू विधायकों को उनकी अलग-अलग श्रेणियों के हिसाब से देखें तो इनमें सबसे अधिक तादाद यानि 151 पिछड़ी जातियों के विधायकों की हैं। इनमें बीजेपी गठबंधन से सबसे ज्यादा 90 विधायक बने हैं, सपा गठबंधन के 60 और 1 विधायक कांग्रेस के टिकट पर चुना गया है। इसके बाद 131 विधायक ऊंची जातियों के हैं। इनमें से 117 भाजपा गठबंधन, 11 सपा गठबंधन और 1-1 बीएसपी, कांग्रेस और जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के हैं। इसके बाद अनुसूचित जातियों और जनजातियों के विधायकों की संख्या है, जो कि 86 हैं। यहां भी सबसे बड़ी संख्या यानि 65 बीजेपी गठबंधन के पास है, 20 समाजवादी गठबंधन के पास और 1 जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक ) के पास।

दहाई अंकों से कम विधायकों वाली जातियां :-
अब हम उन जातियों के विधायकों की बात कर रहे हैं, जिनकी संख्या कुल मिलाकर दहाई अंकों को पार नहीं कर सकी है। 1 सिख एमएलए की बात तो हम ऊपर कर ही चुके हैं। इसी तरह बाल्मीकि समाज से भी 1 ही विधायक चुना गया है। इसी तरह कायस्थ-3 और धोबी-4 हैं। ये सभी बीजेपी गठबंधन से जीते हैं। 4 विधायक राजभर समाज से हैं, जिनमें 1 बीजेपी गठबंधन और 3 सपा गठबंधन से चुनाव जीता है। भूमिहारों की संख्या 5 है। चार बीजेपी गठबंधन से और एक सपा गठबंधन से। गुर्जर विधायकों की संख्या 7 (5 बीजेपी गठबंधन और 2 सपा गठबंधन) है। कलवार, तेली, सोनार जातियों के भी 7 विधायक हैं- 6 भाजपा+ और 1 सपा+ । निषाद, कश्यप और बिंद जाति के विधायकों की संख्या 8 है और इसमें भी बीजेपी गठबंधन भारी पड़ा है और उसके 6 और सपा गठबंधन के 2 विधायक चुने गए हैं। कोरी जाति के 8 विधायक चुने गए हैं और सारे के सारे बीजेपी गठबंधन से जीते हैं।


15 जाट विधायक चुने गए :-
अब हम दहाई अंकों को पार करने वाली जातियों का ब्योरा दे रहे हैं। कई अन्य पिछड़ी जातियां जिनका जिक्र ऊपर नहीं हुआ है, उनके विधायकों की संख्या 10 है।जो चौहान, प्रजापति, पाल जाति के हसीन।। इनमें 7 बीजेपी गठबंधन और 3 सपा गठबंधन से जीते हैं। इसी तरह से अन्य एससी/एसटी जातियों के विधायकों की संख्या 12 है। 11 बीजेपी गठबंधन से और सिर्फ 1 सपा गठबंधन से चुनाव जीता है। मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, सैनी विधायकों की संख्या इस बार 14 है। इनमें भी भाजपा और उसके सहयोगी बहुत ज्यादा भारी पड़े हैं और 14 में से 12 इन्हीं के टिकटों पर जीते हैं। सपा गठबंधन के टिकट पर जीतने वालों की संख्या सिर्फ 2 है। इस चुनाव में जाटों का बहुत जिक्र हो रहा था। तरह-तरह के नरेटिव तैयार किए गए थे। इसबार कुल 15 जाट विधायक चुनाव जीते हैं और बीजेपी गठबंधन से 8 जाट एमएलए बने हैं। जबकि, आरएलडी और सपा गठबंधन यहां भी पिछड़ गई है और उसके सिर्फ 7 जाट उम्मीदवार चुनाव जीते हैं।


27 यादव और 29 जाटव विधायक बने :- यूपी चुनाव में जीतने वाले लोध विधायकों की संख्या इसबार 18 है। इनमें भाजपा गठबंधन से 15 और सपा गठबंधन से 3 को जीत मिली है। बनिया/ खत्री समाज से कुल 22 लोग चुने गए हैं और इनमें से 21 बीजेपी गठबंधन से जीते हैं और सपा गठबंधन से सिर्फ 1 को सफलता मिली है। लेकिन, जब बारी यादव समाज की आती है तो कहानी पूरी तरह से पलटी हुई नजर आती है। कुल 27 यादव विधायक चुने गए हैं, जिसमें से 24 सपा गठबंधन से और सिर्फ 3 बीजेपी गठबंधन से जीते हैं। पासी समाज से जीतने वालों की तादाद भी 27 ही है। 18 बीजेपी गठबंधन से, 8 सपा गठबंधन से और 1 जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) से चुनाव जीता है। इस चुनाव में मायावती का कद जरूर कम हुआ है, लेकिन कुल 29 जाटव विधायक चुने गए हैं। इसमें भी बीजेपी गठबंधन का पलड़ा भारी है और इससे 19 एमएलए चुने गए हैं और सपा गठबंधन से सिर्फ 10 विधायक।सबसे ज्यादा 52 ब्राह्मण विधायक चुने गए,कुर्मी/सैंथवार जाति के कुल 41 विधायक बने हैं, जिसमें भाजपा गठबंधन से 27 और सपा गठबंधन से 13 और 1 कांग्रेस से चुने गए हैं। इस बार के चुनाव में कुल 49 राजपूत उम्मीदवारों को कामयाबी मिली है। इनमें से 43 भाजपा गठबंधन से, सिर्फ 4 सपा गठबंधन से, 1 जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) और 1 बीएसपी के टिकट पर जीते हैं। लेकिन सबसे अधिक इसबार ब्राह्मण विधायक चुने गए हैं, जिनकी संख्या 52 है। इनमें भी सबसे ज्यादा 46 भाजपा गठबंधन से, 5 सपा गठबंधन से और 1 कांग्रेस के टिकट पर जीते हैं। आंकड़ों से यह साफ हो जा रहा है कि मुसलमान, यादव और राजभर को छोड़कर सभी तबकों में बीजेपी गठबंधन का ही बोलबाला रहा है।उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में सपा को 2.9 करोड़ वोट मिले हैं।महज 5 लाख वोट और मिलते तो यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार बनती। [/Responsivevoice]