राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने महिला आयोग को किया शिकायत

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समाज कल्याण विभाग की एक महिला ने प्रमुख सचिव एवं निदेशक समाज कल्याण पर लगाया उत्पीड़न का आरोप,राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने महिला आयोग को किया शिकायत।

 अजय सिंह

लखनऊ। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जे एन तिवारी ने एक प्रेस विज्ञप्ति में अवगत कराना है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई उपयोगी कानून बनाए हैं। महिलाओं की शिकायत पर सरकार तत्काल संज्ञान लेकर कार्यवाही भी  कर रही है। लेकिन कुछ महिलाएं कानून का दुरुपयोग करते हुए अधिकारियों को बेवजह बदनाम करने का काम कर रही है।

 ऐसा ही एक प्रकरण समाज कल्याण विभाग में इलाहाबाद का आया है। जहां की संवासिनी छात्रावास की अधीक्षिका ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण हिमांशु कुमार एवं समाज कल्याण निदेशक राकेश शुक्ला पर गंभीर आरोप लगाते हुए अपने उत्पीड़न का आरोप लगाया है। महिला ने अपने ऊपर पेट्रोल डालकर उसका वीडियो वायरल किया तथा इसके लिए समाज कल्याण विभाग के दो वरिष्ठ अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया ।महिला आयोग ने इसका संज्ञान लेकर  मुख्य सचिव को जांच के निर्देश भी दे दिए। 

संयुक्त परिषद के अध्यक्ष का कहना है कि महिलाओं के लिए बनाए गए कानून का दुरुपयोग  कदापि उचित नहीं है। इससे वास्तव में  पीड़ित महिलाओं के केस भी कमजोर हो जाते हैं ।उन्होंने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर प्रयागराज के प्रकरण की जांच कराने की मांग किया है ।संज्ञान में आ रहा है कि संवासिनी छात्रावास की अधीक्षिका ने अपने किसी ऐसे काम के लिए दबाव बनाया जो नियमों के अंतर्गत संभव नहीं था। काम ना होने के कारण उसने प्रमुख सचिव एवं निदेशक को कटघरे में खड़ा करते हुए महिला आयोग से शिकायत कर दी।

 जे एन तिवारी ने कहा है कि राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष होने के नाते  शासन के अधिकांश अधिकारियों के साथ उनका मिलना जुलना  है । उनकी हिमांशु कुमार से भी कई बार मुलाकात हुई है ।हिमांशु कुमार एक ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, चरित्रवान एवं न्याय प्रिय अधिकारी है। उनसे किसी गलत कार्य की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। हिमांशु कुमार को बदनाम करने की साजिश किया जाना निंदनीय है।

 जे एन तिवारी ने प्रमुख सचिव हिमांशु कुमार एवं निदेशक राकेश शुक्ला को बेवजह बदनाम करने की साजिश को बेनकाब करने के लिए प्रकरण की जांच करा कर तत्काल कार्यवाही करने की मांग किया है। उन्होंने यह भी कहा है कि कर्मचारी आचरण नियमावली 1956 के तहत किसी भी कर्मचारी को सार्वजनिक रूप से किसी भी अधिकारी के खिलाफ कोई वीडियो वायरल करने का अधिकार नहीं है। आत्महत्या एक दंडनीय अपराध है ।इस पर पुलिस को तत्काल कार्यवाही करनी चाहिए थी।  पेट्रोल छिड़ककर आत्महत्या की कोशिश स्वस्थ मानसिकता का कोई इंसान नहीं कर सकता है।इस प्रकरण में पुलिस ने लापरवाही बरती। इसकी भी जांच की जानी चाहिए। फिलहाल प्रथम दृष्टया यह प्रकरण बिल्कुल बेबुनियाद  है ।

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद कभी भी किसी गलत अपराधिक प्रवृति के कर्मचारी के साथ खड़ी नहीं होती है। कर्मचारियों की जायज मांगों पर संघर्ष करना राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद की  नीति है। परंतु गलत आचरण में लिप्त कर्मचारियों के साथ राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद कभी भी नहीं रही है। इस प्रकरण में उच्च स्तरीय जांच की आवश्यकता है ।यदि इसी तरह के प्रकरण दुहराए जाते रहे  तो कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों को अपना कार्य करने में  बहुत अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ेगा ।