सुप्रीम कोर्ट से मोहम्मद जुबैर को रिहा करने का आदेश

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नई दिल्ली। फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 24 दिनों बाद जेल से निकल चुके हैं। शीर्ष अदालत ने बुधवार की सुनवाई में उन्हें राहतों पर राहतें दे दीं। सर्वोच्च न्यायालय के तीन जजों जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस ए एस बोपन्ना की पीठ ने जुबैर को उनके खिलाफ दर्ज सभी छह प्राथमिकियों (FIRs) में जमानत तो दी ही, इस मुद्दे पर भविष्य में भी एफआईआर हुई तो अग्रिम जमानत का आदेश दे दिया गया। हालांकि, उत्तर प्रदेश सरकार की अतिरिक्त अधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने तीनों जजों की पीठ के सामने जुबैर के पुराने ट्वीट्स के हवाले से संगीन आरोपों की बौछार कर दी। उन्होंने बेबाकी से कहा कि जुबैर की मंशा हमेशा सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने की होती है, इसलिए वो जहरीले ट्वीट्स करते हैं जिनके लिए उन्हें फंडिंग मिलती है। वहीं, जुबैर की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि फैक्ट चेकिंग का काम ही ऐसा है कि बहुत से लोग हमेशा नाराज होते रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट में जुबैर के विरोध और उनके समर्थन में दी गई दिलचस्प दलीलों के प्रमुख अंश पढ़ें…

जुबैर के विरोध में उत्तर प्रदेश सरकार की एएजी गरिमा प्रसाद की दलीलें

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा कि याचिकाकर्ता पत्रकार नहीं है और आरोप लगाया कि ‘वो दुर्भावनापूर्ण ट्वीट करके नाम कमा रहे हैं। ट्वीट जितने दुर्भावनापूर्ण होते हैं, उतना अधिक पेमेंट उन्हें मिलता है।’ उन्होंने कहा, ‘वो पत्रकार नहीं, एक फैक्ट चेकर हैं। उसके ट्वीट्स जहर उगलते हैं। उन्हें ट्वीट्स के लिए पैसे मिलते हैं और उन्होंने यह स्वीकार भी किया है। वो जब भी दुर्भावनापूर्ण ट्वीट्स करते हैं, उन्हें ज्यादा पैसे मिलते हैं। उन्होंने माना है कि उनका मासिक कोटा 12 लाख का है।’

उन्होंने कहा कि यहां एक व्यक्ति है जो अभद्र भाषा के वीडियो का फायदा उठाता है और सांप्रदायिक दुराव पैदा करने के लिए उन्हें वायरल करता है। उन्होंने कहा, ‘उन्होंने स्वीकार किया है कि उन्हें इन जहरीले ट्वीट्स के लिए 2 करोड़ रुपये का फंड मिला है। मोहम्मद जुबैर भाषणों, बहसों आदि का फायदा सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने में उठाते रहे हैं। उन्होंने एक ट्वीट किया कि गाजियाबाद के लोनी में एक तावीज बनाने वाले बुजुर्ग को पीटा गया।’

गरिमा प्रसाद ने कहा, ‘महोदय, देखिए उन्होंने इस बारे में कैसा ट्वीट किया। यह व्यक्ति आगे बढ़कर अनजान लोगों के खिलाफ एफआईआर करता है। तब तक वहां कोई सांप्रदायिक तनाव नहीं हुआ था। मोहम्मद जुबैर ने इसका फायदा उठाया। देखिए, उन्होंने क्या ट्वीट किए और फिर गाजियाबाद के लोनी इलाके में सांप्रदायिक तनाव हो जाता है। वही बुजुर्ग कहते हैं कि इसमें सांप्रदायिकता की कोई बात नहीं है। उनका ट्वीट लाखों पर रीट्वीट किया गया था।’

उन्होंने अपनी दलील आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘जज साहब, आप संभवतः 25 और 26 जून की घटनाओं को उस नजरिए से देख रहे होंगे जैसा कि (जुबैर के वकील इंदिरा ग्रोवर) ने पेश किया है। मोहम्मद जुबैर ने तो एक नाबालिग लड़की तक को नहीं बख्शा, वो इतना जहरीला इंसान हैं। उनके खिलाफ तो पॉक्सो ऐक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज है।’

उन्होंने आगे कहा, ‘मोहम्मद जुबैर ने बजरंद दल के नेता का भाषण वायरल किया, रीट्वीट पर रिट्वीट… जज साहब, याद कीजिए यह भाषण एक विशेष समुदाय की महिलाओं के बलात्कार को लेकर था। सांप्रदायिक तनाव के कारण सीतापुर के पूरे इलाके को छावनी में तब्दील करना पड़ा।’ इस बीच जजों के बीच आपसी बातचीत होती है।

फिर गरिमा प्रसाद कहती हैं, ’26 मई 2022 को हुई बहस (नूपुर शर्मा केस) को लेकर भी मोहम्मद जुबैर की दुर्भावना साफ झलकती है। सीतापुर का पूरा इलाका शांत नहीं हुआ था। दिक्कत यह है कि इस व्यक्ति को अपने ट्वीट्स की ताकत का अंदाजा हो गया है।’

उन्होंने आगे कहा, ’26 मई 2022 के टीवी डिबेट के बाद 5 और 6 जून को उन्होंने (जुबैर ने) इशारा किया कि दुनियाभर के लोग समर्थन कर रहे हैं तो आप (भारतीय मुस्लिम) प्रदर्शन क्यों नहीं कर रहे हैं? जुमे की नमाज के बाद ये ट्वीट्स पम्फ्लेट्स की तरह फैल गए। यूपी सरकार को शांति और सौहार्द बनाए रखने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। यूपी में हर समुदाय के लोग रहते हैं। वहां शांति सुनिश्चित करना था। ऐसा नहीं हो सकता था कि हीलाहवाली भरी कार्रवाई कर दी और फिर छुट्टी।’

उन्होंने कहा, ‘समाज में सांप्रदायिक व्यक्ति भी हैं। भाईचारा बनाए रखना था। ऐसा नहीं है कि मोहम्मद जुबैर ने प्यार बांटने या सूचना देने के लिए ट्वीट कर रहे हैं। यह सुनिश्चित करना होगा कि शांति भंग नहीं हो।’ प्रसाद ने कहा कि ट्विटर पर 2.5 लाख फॉलोअर्स से, जुबैर के फॉलोअर्स इस तरह के वीडियो ट्वीट करने के कारण पांच लाख हो गए हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में दर्ज कुछ प्राथमिकी दिल्ली में दर्ज की गई प्राथमिकी से पहले की हैं और कुछ बाद की हैं।

उन्होंने कहा, ‘उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा एक एसआईटी का गठन किया गया था क्योंकि यह एक गंभीर मामला था और यह सुनिश्चित करने के लिए था कि स्थानीय पुलिस एक कठोर रवैया नहीं अपनाये। इसका नेतृत्व आईजी रैंक के अधिकारी कर रहे हैं और डीआईजी इसके सदस्य हैं। राज्य सरकार का प्रयास राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखना है।’

उन्होंने कहा, ‘एसआईटी का गठन मोहम्मद जुबैर के प्रति दुर्भावना से नहीं किया गया था। यूपी सरकार का पूरा-पूरा मकसद था कि सांप्रदायिक सद्भाव कायम रहे। लगातार एक ही मोडस ऑपरेंडी को दुहराया जा रहा था और उनकी (जुबैर की) फॉलोइंग दोगुनी हो गई। एसआईटी मोहम्मद जुबैर को तभी बुलाएगी जब जरूरत पड़ेगी। उनके खिलाफ कोई दुर्भावनापूर्ण एजेंडा नहीं है।’

मोहम्मद जुबैर की वकील वृंदा ग्रोवर की दलील

जुबैर की वकील वृंदा ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि आपराधिक कानून के तंत्र का इस्तेमाल पत्रकारों को परेशान करने के लिए नहीं किया जा सकता और जुबैर के ट्वीट न तो किसी को उकसाते हैं और न ही किसी भी तरह से अपमानजनक हैं। उन्होंने कहा कि यह सोशल मीडिया का युग है जिसमें समाचार बिजली की गति से प्रसारित होते हैं और झूठी सूचनाओं को खारिज करने वाले किसी व्यक्ति का काम दूसरों को नाराज कर सकता है लेकिन ‘कानून को उसके खिलाफ हथियार नहीं बनाया जा सकता। यह तथ्यों की पड़ताल करने वाले को चुप कराने का एक स्पष्ट मामला है।’

ग्रोवर ने कहा सुप्रीम कोर्ट की पीठ से कहा कि जुबैर के खिलाफ दर्ज सभी प्राथमिकियों को रद्द कर दिया जाना चाहिए या वैकल्पिक रूप से दिल्ली के विशेष प्रकोष्ठ द्वारा दर्ज प्राथमिकी के साथ जोड़ दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘आपराधिक कानून तंत्र का इस्तेमाल पत्रकार को परेशान करने के लिए नहीं किया जा सकता। ये छह प्राथमिकियां उन ट्वीट्स पर आधारित हैं, जिनमें से कोई एक भी किसी को उकसाता नहीं है या किसी भी तरह से अपमानजनक नहीं है।’ग्रोवर ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कुल छह एफआईआर दर्ज की गई हैं और चंदौली पुलिस थाने में एक अन्य प्राथमिकी दर्ज है, जिसकी उन्हें जानकारी नहीं है और ये सभी प्राथमिकी दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा दर्ज की गई पहली प्राथमिकी की जांच का विषय है।

उन्होंने कहा कि दिल्ली की प्राथमिकी में जांच के दायरे का विस्तार किया गया है और उन्होंने ऑल्ट न्यूज की फंडिंग को देखने के लिए FERA (विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम) के प्रावधानों को लागू किया है और यहां तक कि एक छापेमारी और जब्ती अभियान भी चलाया है जिसमें जुबैर का लैपटॉप जब्त किया गया है।

उन्होंने कहा, ‘दिल्ली पुलिस की प्राथमिकी में जुबैर को जमानत मिलने के बाद हाथरस में एक प्राथमिकी दर्ज की गई। दिल्ली पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराएं लगाई हैं और अब उन्होंने ‘फेरा’ के प्रावधानों को लागू किया है और लैपटॉप और अन्य उपकरण जब्त करने के लिए रिमांड पर ऑल्ट न्यूज के अहमदाबाद ऑफिस ले जाना चाहते हैं।’ उन्होंने कहा कि एक पेमेंट प्लैटफॉर्म ने स्पष्ट किया है कि ऑल्ट न्यूज को सभी फंडिंग देश के अंदर से हुई है। उन्होंने कहा, ‘यह किस प्रकार का रिमांड है कि जुबैर को उनका जहां भी ऑफिस स्थित है, वहां ले जाया जाएगा। यह जांच की शक्ति का एक वैधानिक दुरुपयोग है।’

उनकी वकील ने कहा, ‘जुबैर की जान को सीधा खतरा है। उनके सिर पर एक इनाम घोषित किया गया है, हमने धमकियों को देखते हुए तिहाड़ जेल से उनकी वीडियो कॉन्फ्रेंस के लिए कहा लेकिन इससे इनकार कर दिया गया। अब वे उन्हें तिहाड़ जेल से अलग-अलग जगहों पर ले जाना चाहते हैं।’

ग्रोवर ने ट्वीट का जिक्र करते हुए कहा कि जिन ट्वीट की जांच दिल्ली पुलिस कर रही है, उनकी जांच हाथरस, लखीमपुर खीरी, गाजियाबाद, सीतापुर और मुजफ्फरनगर में दर्ज अलग-अलग प्राथमिकी में उत्तर प्रदेश पुलिस भी कर रही है। उन्होंने कहा, ‘जब भी अदालतों द्वारा एक प्राथमिकी में राहत दी जाती है, अचानक एक निष्क्रिय प्राथमिकी सक्रिय हो जाती है और मुझे रिमांड पर लिया जाता है। यदि आप ट्वीट को देखे, तो कोई उकसावा नहीं है और इन ट्वीट की भाषा भी अनुचित नहीं है। प्रथम दृष्टया शत्रुता को बढ़ावा देने का कोई मामला नहीं है।ग्रोवर ने कहा कि एक नेटवर्क है जो उस समय हरकत में आता है जब अदालत इस तथ्यों की पड़ताल करने वाले को राहत देती है, जो अपने ट्वीट में नफरत भरे भाषणों या एक टीवी चैनल द्वारा इस्तेमाल किए गए मस्जिद की फर्जी तस्वीरों की ओर इशारा करता है जो सांप्रदायिक विद्वेष को भड़का सकता है।

उन्होंने कहा कि जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें सीतापुर प्राथमिकी में राहत दी थी, उसी दिन उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया था, जो एक ट्वीट पर आधारित है जिसकी जांच दिल्ली पुलिस द्वारा पहले से ही की जा रही है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के तीन पुलिस थानों द्वारा इसी तरह के नोटिस जारी किए गए हैं, जहां जुबैर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है और बैंक विवरण और अन्य वित्तीय रिकॉर्ड का विवरण मांगे गए हैं।

उन्होंने कहा, ‘ऑल्ट न्यूज को की जाने वाली इस फंडिंग की जांच दिल्ली पुलिस भी कर रही है।’ उन्होंने कहा, ‘जुबैर को अपना बचाव कैसे करना चाहिए। जब उनके खिलाफ संज्ञेय अपराध का प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है तो उके पास अपना बचाव करने के लिए संसाधन नहीं हो सकते। इसलिए, वो अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।’

ग्रोवर ने शुरुआत में पीठ के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि वह दिल्ली में दर्ज एफआईआर को रद्द करने का अनुरोध नहीं कर रही। उन्होंने बाद में कहा कि वह अपने किसी भी कानूनी उपाय का अनुरोध नहीं कर रही हैं और कानून के तहत जो भी उपलब्ध है, उसका लाभ उठाएंगी। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में दर्ज इन प्राथमिकी का आधार ऐसा है कि जब कोई अदालत राहत देती है तो एक निष्क्रिय एफआईआर सक्रिय हो जाती है और जुबैर को नोटिस दिया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट के तीनों जजों की बेंच ने दोनों तरफ की दलीलों को सुनकर मोहम्मद जुबैर का रिहा करने का आदेश दिया। बेंच ने कहा कि मोहम्मद जुबैर को सभी छह पुलिस एफआईआर में जमानत दी जाती है, यूपी पुलिस की सभी एफआईआर को क्लब करके दिल्ली ट्रांसफर किया जाता है, आगे भी इसी मुद्दे पर जुबैर के खिलाफ एफआईआर हुई तो उसमें जमानत मिलेगी, यूपी एएसआईटी भंग की जाती है।’

बेंच ने कहा कि पूरा आदेश प्रकाशित करने में विलंब होगा, इसलिए सिर्फ जरूरी अंश की प्रकाशित करें ताकि जुबैर की रिहाई की प्रक्रिया तेजी से पूरी हो और वो शाम छह बजे तक जेल से निकल जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जुबैर को ट्वीट करने से नहीं रोका जा सकता है। जुबैर को दिल्ली पुलिस ने 27 जून को एक ट्वीट के जरिये धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उनके ट्वीट के लिए उत्तर प्रदेश में उनके खिलाफ कई प्राथमिकी दर्ज की गईं। [/Responsivevoice]