शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिये स्वर्णप्राशन

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बच्चों में शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिये 28 जुलाई को कराया जायेगा स्वर्णप्राशन।

प्रतापगढ़। क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी डा0 सरोज शंकर राम ने बताया है कि आयुर्वेद विभाग एवं बाल विकास विभाग के तत्वाधान में दिनांक 28 जुलाई को 50 से अधिक आंगनबाड़ी केन्द्रों पर बच्चों को स्वर्णप्राशन करवाया जायेगा। बच्चों की रोग प्रतिरोध क्षमता अर्थात इम्यूनिटी बढ़ाने, यथोचित शारीरिक व मानसिक विकास एवं स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिये आयुर्वेद में महर्षि कश्यप द्वारा स्वर्णप्राशन का उल्लेख हैं। स्वर्ण भस्म, ब्राहा्री, शंखपुष्पी आदि औषधियों से निर्मित स्वर्णप्राशन की दवा से लाभान्वित होने के लिये प्रथम चरण में 6 माह से 6 साल तक के बच्चों का चयन किया गया है। उन्होने बताया है कि घर में जब बच्चे का जन्म होता है तब माता पिता बच्चे के बेहतर स्वास्थ्य के लिये और बीमारियों से बचाने के लिये कुछ प्राचीन संस्कार अपनाते है ताकि बच्चा निरोगी और बीमारियों से लड़ने में पूरी तरह से सक्षम रहे।

स्वर्णप्राशन संस्कार से बच्चों की शारीरिक एवं मानसिक गति में अच्छा सुधार होता है। यह बहुत ही प्रभावशाली और इम्युनिटी बूस्टर होता है, जो बच्चों में रोगों से लड़ने की क्षमता पैदा करता है। स्वर्ण प्राशन संस्कार से विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता बच्चों पैदा होती है।स्वर्णप्राशन संस्कार आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ऐसी विधि है,जो प्राकृतिक तरीके से बच्चों में स्वास्थ्य एंव बुद्धिमता प्रदान करती है। स्वर्णप्राशन का मतलब है,स्वर्ण को शहद,घी के साथ या अन्य द्रव्यों के साथ बच्चों को दिया जाता है। स्वर्णप्राशन को हमेशा सुबह खाली पेट देना चाहिए। स्वर्णप्राशन के उपयोग से बच्चों मे रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। इसे लगातार 6 महीने तक किया जा सकता है।इससे बच्चो का शारीरिक और मानसिक विकास तेज गति से होता है,साथ शरीर बलशाली बनता है।