अजमेर के हिन्दुओं से प्रेरणा लें बनारस और मथुरा के मुसलमान

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अजमेर के हिन्दुओं से प्रेरणा लें बनारस और मथुरा के मुसलमान। तभी धर्मनिरपेक्षता के मायने हैं।वामपंथियों ने जो तत्परता ख्वाजा साहब की दरगाह पर दिखाई, वैसी तत्परता काशी विश्वनाथ और श्रीकृष्ण जन्म भूमि पर भी दिखानी चाहिए।दरगाह पर महाराणा प्रताप सेना के दावे को मीडिया ने भी नकार दिया।

एस0 पी0 मित्तल

26 मई को जब महाराणा प्रताप सेना नामक एक सामाजिक संगठन ने अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह में हिन्दू धर्म चिन्ह और मंदिर होने का हवाला देकर सर्वे करवाने की मांग की तो अजमेर में हिन्दू समुदाय के अधिकांश लोग दरगाह के समर्थन में आ गए। हिन्दुओं ने स्पष्ट कहा कि दरगाह के अंदर हिन्दू चिन्हों की आड़ में अजमेर का सौहार्द खराब नहीं किया जाए। अधिकांश हिन्दुओं का कहना रहा कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अपने साथियों के साथ 12वीं शताब्दी में ईरान से अजमेर आए और फिर यही उनका इंतकाल हो गया, जबकि भारत में आक्रांता मुगल शासकों ने 15वीं शताब्दी के बाद हिन्दू धार्मिक स्थलों को तोड़ कर मस्जिदें बनाईं। ऐसे में ख्वाजा साहब की दरगाह को लेकर विवाद खड़ा नहीं किया जाना चाहिए। मीडिया ने भी अपनी पड़ताल में दरगाह के अंदर हिन्दू चिन्ह के होने के महाराणा प्रताप सेना के दावों को नकार दिया। हालांकि दरगाह से जुड़े प्रतिनिधियों ने भी बचाव किया, लेकिन दरगाह के समर्थन में मुसलमानों से ज्यादा हिन्दू समुदाय के लोग खड़े नजर आए। यही वजह रही कि महाराणा प्रताप सेना के दावे के बाद अजमेर में कोई तनावपूर्ण स्थिति नहीं हुई। दरगाह के आसपास के क्षेत्र के हालात भी सामान्य बने हुए हैं। दरगाह को लेकर अजमेर में हिन्दू समुदाय ने जो रुख प्रकट किया है, उससे बनारस और मथुरा के मुसलमानों को प्रेरणा लेनी चाहिए।

इतिहास गवाह कि आक्रांता मुगल शासकों ने मथुरा में श्रीकृष्ण और बनारस में बाबा विश्वनाथ का मंदिर तोड़ कर मंदिर परिसरों में ही मस्जिदों का निर्माण करवाया। बनारस में ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे में भी हिन्दू प्रतीक चिन्ह होने के सबूत मिले हैं। ऐसे में मथुरा और बनारस के मुसलमानों को अजमेर के अधिकांश हिन्दुओं की तरह सकारात्मक और साम्प्रदायिक सौहार्द का रुख प्रकट करना चाहिए। बनारस और मथुरा के मुसलमान चाहें तो अजमेर के प्रमुख दैनिक समाचार पत्र देख लें। दरगाह को लेकर सौहार्द वाले बयान देने में हिंदुओं के बीच होड़ मची हुई है। सवाल उठता है कि जब अजमेर में दरगाह के समर्थन में हिन्दू प्रतिनिधि खड़े हो सकते हैं तो फिर बनारस और मथुरा के मुसलमान श्रीकृष्ण और बाबा विश्वनाथ मंदिर के समर्थन में खड़े क्यों नहीं हो सकते? जो साम्प्रदायिक सौहार्द अजमेर में दिखाया जा रहा है वैसा बनारस और मथुरा में भी दिखना चाहिए। तभी धर्मनिरपेक्षता के मायने हैं। हिन्दू समुदाय के अधिकांश लोग नहीं चाहते कि अजमेर का माहौल खराब हो। अच्छा हो कि बनारस और मथुरा के मुसलमान भी हिन्दू समुदाय की धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखें। इतिहास की सच्चाई को स्वीकारने की जरूरत है। हिन्दू समुदाय ने तो दरगाह के मामले में अपनी सौहार्द की भावना प्रकट कर दी है। अब बनारस और मथुरा के मुसलमानों को विचार करने की जरूरत है। दरगाह के प्रकरण में वामपंथियों ने महाराणा प्रताप सेना को कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वामपंथियों ने जो तत्परता अजमेर में दिखाई, वैसी ही तत्परता उन्हें बनारस और मथुरा के हिन्दू धर्म स्थलों के समर्थन में दिखानी चाहिए।