हिंदी का गिरता बौद्धिक स्तर चिंता जनक – विनोद यादव

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विनोद यादव
विनोद यादव


हिंदी दिवस को भले ही हम आज बडे़ जोर सोर से मना रहें हो वास्तविक जीवन में हमने क्या खुद को अवलोकित किया है कि हमने कितना हिंदी का उपयोग किस किस जगहों पर किया है औसतन लोग अपने हस्ताक्षर को भी अंग्रेजी में ही करना पसंद करते है लेकिन सवाल इस बात का नहीं कि हस्ताक्षर हिंदी में क्यू नहीं आज बच्चों के प्राथमिक शिक्षा में कान्वेंट माध्यम का हावी होने साथ अंग्रेजी भाषा को बढ़वा देना तथा आईएएस ,पीसीएस जैसी परीक्षाओं में हिन्दीभाषी छात्रों के गिरते स्तर को यदि देखा जाए तो कही न कही हिंदी के गिरते स्तर की तरफ संकेत करता हैं हिंदी भाषा को अपने भाव, विचार, अपनापन और सम्मान की अभिव्यक्ति करने की सुलभता जितनी हिंदी में है, उतनी किसी अन्य भाषा में नहीं। हिंदी को प्रचलित तौर पर माथे की बिंदी कहा जाता है। जिस तरह सही बिंदी लगाने मात्र से नारी का व्यक्तित्व प्रभावशाली हो जाता है, ठीक उसी तरह हिंदी भाषा के शुद्ध प्रयोग से साहित्य और हमारे लेखन की महत्ता भी बढ़ जाती है लेकिन आज देखने में यह आ रहा है कि इसके मूल स्वरूप और बौद्धिक स्तर में निरन्तर गिरावट आ रही है। यह चिन्ताजनक होने के साथ ही अपेक्षित सुधार की आवश्यकता भी बतलाता है। इस पर चर्चा हो इससे पहले हिंदी के महत्व को जानना भी जरूरी है। हिंदी हमारी मातृभाषा तो है ही । यह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा भी है , जिसे विश्व के अन्य देशों में भी अपनाया जाता है। यही कारण है कि – राजभाषा, सम्पर्क भाषा और जन भाषा बनने के बाद अब हमारी हिंदी विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है।

हिंदी के ज्यादातर शब्द – संस्कृत , अरबी और फ़ारसी भाषा से लिए गए हैं इसीलिए यह हमारी राष्ट्रीय चेतना की संवाहक भी है। हिंदी अपने आप में एक समर्थ भाषा है। प्राचीन ,समृद्ध तथा प्रकृति से तादाम्य बैठाने वाली हमारी हिंदी 14 सितंबर 1949 को एक संवेधानिक निर्णय के बाद राजभाषा के रूप में प्रचारित, प्रसारित की जाने लगी तथा राष्ट्रभाषा प्रचार समिति , वर्धा के आग्रह पर सन 1953 से सम्पूर्ण भारत में इसे 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। आगे चलकर इसे विश्व हिंदी दिवस के रूप में स्वीकार किया गया जो एक बड़े गौरव की बात तो है ही हिंदी के महत्व और उसकी उपयोगिता को भी प्रतिपादित करती है। इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हिंदी के प्रति जन मानस में रुझान और जागरूकता बढ़ी।विश्व में हिंदी बोलने वालों की संख्या, अंग्रेजी भाषियों की तुलना में कहीं अधिक है। यह अधिकांश मध्यम वर्ग की लोकप्रिय और प्रयुक्त भाषा होने के कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी इसे अपनाया और अपने उत्पादनोँ के प्रचार प्रसार के लिये भी इसे ही चुना। यही नही , आज – टी वी चैनलों एवं मनोरंजन की दुनिया में हिंदी सबसे अधिक लाभ की भाषा है। एक अनुमान के मुताबिक कुल विज्ञापनों की 75% भागीदारी भी हिंदी भाषा से ही है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले दशकों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का विकास बहुत तेजी से हुआ है। जिसके प्रभाव स्वरूप – वेब , विज्ञापन , संगीत , सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिंदी ने अपनी पकड़ मजबूत की है । यही नही , विश्व भर में लगभग 200 से अधिक विश्वविद्यालयों में शोध के स्तर तक अध्ययन – अध्यापन की व्यवस्था की गई है। माँ की अंगुली से पकङकर पिता के ज्ञान तक ले जाने वाली भाषा हिंदी जिस को अग्रसर दिनों दिन उन्नति के पथ पर प्रशस्त करने वाले तमाम साहित्यकारों ,कवियों को भी इसका श्रेय जाता है आज सैकड़ों पत्र – पत्रिकाएं भी हिंदी भाषा से नियमित रूप से निकल रहे हैं ।

जिसका एक प्रमुख कारण मुझे यह भी लगता है कि – हिंदी भाषा और इसमें निहित भारत की सांस्कृतिक धरोहर इतनी सुदृढ और समृद्ध है कि इस ओर अधिक प्रयत्न न किये जाने के बावजूद भी हिंदी के विकास की गति बहुत तेज है। कोई भी क्षेत्र हो – भारतीय संगीत, ध्यान ,योग , विज्ञान , आयुर्वेद ,हस्तकला, भोजन और भारतीय परिधानों की बढ़ती मांग तथा आकर्षण के कारण , इनके केंद्र पूरे विश्व में अपनी धाक जमाते नजर आते हैं ।जिसके कारण आज हिंदी ने अन्य भाषाओं को पीछे छोड़ा है और अपना वर्चस्व बनाया है। करोड़ों हिंदी भाषी आज कम्प्यूटर और मोबाईल पर हिंदी भाषा का प्रयोग करते हैं, जो एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन फिर एक सवाल जेहन में जरूर उठता है कि आज देश में गाड़ी पर हिंदी में नंबर लिखने पर चालान कटे, जहाँ 95% लोग अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते हों, जहाँ अंग्रेजी ना बोलने वाले लोगों को निरक्षर समझा जाता हो, जहाँ हिंदी के लिए 2 दबाना पड़े और आदालतों में न्याय के लिए अंग्रेजी में बहस करनी पड़े तथा अदालतों का आदेश अंग्रेजी में यदि लोगों को प्राप्त होगा तो इससे हम क्या मानेंगे कि हिंदी का स्तर सातवें आसमान पर हैं नहीं यह हमारी मानवीय भूल है हमें अपने हर काम में हिंदी का भरपूर उपयोग करना होगा तभी हम हिंदी के गिरते स्तर को उठा सकते है ।।