जेल विभाग के 18 बंदीरक्षकों की गई नौकरी!

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आगरा बंदीरक्षक घोटाले में 15 साल बाद सीएम ने की कार्यवाही।फर्जी प्रमाणपत्र से नौकरी पाने वाले बर्खास्त वार्डरों से होगी रिकवरी।नियुक्ति करने वाले वरिष्ठ अधीक्षक के खिलाफ प्रॉसिक्यूशन की कार्यवाही । जेल विभाग के 18 बंदीरक्षकों की गई नौकरी…!

राकेश यादव

लखनऊ। जो कार्य सपा व बसपा की सरकारें नही कर पाई उसे भाजपा के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कर दिखाया। सीएम ने 15 साल पहले हुए आगरा बंदीरक्षक भर्ती घोटाले के आरोपियों को दंडित किये जाने का आदेश दिया है। उन्होंने फर्जी दस्तावेजों के सहारे नौकरी पाने वाले बंदीरक्षकों की सेवाएं समाप्त करने के साथ इनसे रिकवरी करने का निर्देश दिया है। इसके अलावा नियुक्ति करने वाले कमेटी के चेयरमैन वरिष्ठ अधीक्षक के खिलाफ प्रॉसिक्यूशन की कार्यवाही किये जाने की संस्तुति की है। इस मामले की विजिलेंस जांच कराई गई थी। विजिलेंस जांच रिपोर्ट के बाद यह कार्यवाही की गई है। उधर शासन इस गंभीर मसले पर चुप्पी साधे हुए है।

विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष-2006 में हुए आगरा बंदीरक्षक घोटाले को सीएम योगी आदित्यनाथ ने गंभीरता से लेते हुए कड़ी कार्यवाही की है। घोटाले में फर्जी प्रमाणपत्रों के सहारे नियुक्ति पाने वाले करीब दो दर्जन बंदीरक्षकों की सेवाएं समाप्त करने के साथ उनसे रिकवरी करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही नियुक्ति देने वाले वरिष्ठ अधीक्षक के खिलाफ प्रोबेशन की कार्यवाही किये जाने का निर्देश दिया है। बताया गया है कि समाजवादी पार्टी की सरकार में यह घोटाला हुआ था। घोटाले की विजिलेंस जांच कराई गई। इसके बाद प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार आयी। इस दोनों सरकारों ने घोटाले की विजिलेंस जांच रिपोर्ट पर कार्यवाही करने के बजाए उसे दबाए रखा। घोटाले के करीब 15 साल बाद यह कार्यवाही की गई है। कार्यवाही से जेल अधिकारियों में खलबली तो मची हुई है लेकिन वह इस मामले पर कोई भी टिप्पणी करने से बच रहे है।

सपा सरकार में वसूली के मामले को कराया रफादफा- आगरा की तर्ज पर झांसी में बंदीरक्षक भर्ती घोटाला हुआ था। इस घोटाले की लंबी जांच प्रक्रिया के बाद कई अधिकारियों से वसूली किये जाने का निर्देश हुआ था। वसूली के आरोपी एक वरिष्ठ अधिकारी (रिटायर) ने सपा सरकार में शासन में बैठे अधिकारियों से सेंटिंग-गेटिंग करके वसूली के इस गंभीर मामले को ही निपटा दिया गया। बताया गया है कि तमाम आरोपो के बावजूद यह अधिकारी मुख्यालय में महत्वपूर्ण पद पर तैनात था। इससे करीब 35 लाख रुपये की वसूली होनी थी। बगैर वसूली दिए ही यह अधिकारी ससम्मान रिटायर भी हो गया।

गौरतलब है कि वर्ष-2006 में आगरा जेल में बंदीरक्षकों की भर्ती हुई थी। इस भर्ती प्रक्रिया के लिए जेल मुख्यालय ने कमेटी का गठन किया था। जिसमे जेल के वरिष्ठ अधिकारी अम्बरीष गौड़  को चेयरमैन, वीके गुप्ता (मृतक) जेलर को सदस्य ब डॉ एनके यादव को मेडिकल अफसर मनोनीत किया गया था। सूत्रों का कहना है कि इस भर्ती प्रक्रिया में नामित चेयरमैन ने सदस्यो से साठगांठ कर खूब कमाई की। कमेटी ने फ़र्ज़ी खेलकूद प्रमाण पत्र के आधार पर बंदीरक्षको की नियुक्ति कर दी। इस फ़र्ज़ी दस्तावेजो पर हुई भर्ती की शिकायत तत्कालीन जेल मंत्री राकेश वर्मा से की गयी। शिकायत की जानकारी होते ही कमेटी के चेयरमैन ने नियुक्ति के लिए लगाए गए फ़र्ज़ी खेलकूद प्रमाण पत्रों को हटाकर इंटव्यू में नंबर बढ़ाकर बंदीरक्षकों की नियुक्ति को सही ठहराने के प्रयास किया। इसकी शिकायत मिलने पर नाराज तत्कालीन जेलमंत्री ने कमेटी के एक सदस्य को निलंबित करते भर्ती की जांच विजिलेंस को दे दी। इसके साथ ही कमेटी के चेयरमैन अम्बरीष गौड़, सदस्यो समेत 32-33 लोगो के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई।

सूत्रों की मानें तो बंदीरक्षकों की नियुक्ति के लिए फ़र्ज़ी खेलकूद प्रमाण पत्र हटाकर  इंटरव्यू में नंबर बढ़ाने का काम कमेटी के चेयरमैन अम्बरीष गौड़ ने किया। यह अलग बात है कि फाइनल लिस्ट में उन्होंने कमेटी के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर कर दिए थे। इस आरोपी अधिकारी को वर्तमान समय मे कारागार मुख्यालय में सीनियर सुपरिटेंडेंट पद पर तैनात किया है। यही नही इन्हें गोपनीय सेक्शन का प्रभार भी सौंपा गया है। चर्चा है जो विजिलेंस जांच का दोषी है वही खुद ही अपनी फ़ाइल डील कर रहा था। सूत्र बताते है कि  बीते वर्ष सीनियर सुपरिटेंडेंट अम्बरीष गौड़ को प्रयागराज में निर्मित की जा रही नई जेल के निर्माण में धांधली पर सीएम ने उन्हें निलंबित किया था। यह अलग बात है इस विभाग ने उन्हें एक सप्ताह बाद ही बहाल भी कर दिया था। आरोपी अधिकारी दिसंबर माह में सेवानिवृत्त भी हो रहा है। उधर इस संबंध में जब अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी से संपर्क करने का काफी प्रयास किया गया किन्तु उनसे संपर्क नहीं हो सका।