गहलोत सरकार का अंतिम दौर

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[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”इस समाचार को सुने”] कांग्रेस का नया फार्मूला राजस्थान में ही ढेर हो जाएगा। बसपा छोड़कर कांग्रेस में आए विधायक ही इस फार्मूले को स्वीकार नहीं करेंगे।गहलोत सरकार के अंतिम दौर में निर्दलीय विधायक भी ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

एस0 पी0 मित्तल

राजस्थान के उदयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर में संगठन पदाधिकारी और सांसद विधायक के टिकट को लेकर जो फार्मूला बनाया गया, वह राजस्थान में ही ढेर हो जाएगा। सब जानते हैं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी सरकार को बचाए रखने के लिए बसपा के सभी 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल करवा लिया था। ये विधायक हैं लखन सिंह, राजेंद्र गुढा, दीपचंद खेडिया, संदीप कुमार, जोगेंद्र सिंह अवाना और वाजिब अली। ये सभी विधायक बसपा उम्मीदवार के तौर पर जीते थे। सवाल उठता है कि ये विधायक कांग्रेस के फार्मूले को क्यों स्वीकार करेंगे? जब ये विधायक अपनी मातृ पार्टी को छोड़ सकते हैं तो फिर कांग्रेस के फार्मूले पर अमल कर तीन वर्ष के कूलिंग पीरियड में क्यों जाएंगे? इनके लिए तो विधायक पद और सत्ता का सुख जरूरी है। कांग्रेस का फार्मूला कहता है कि एक बार पद हासिल करने के बाद तीन साल कूलिंग पीरियड यानी बिना पद के संगठन में काम करना होगा। बसपा वाले विधायकों को तो कांग्रेस से कोई संबंध भी नहीं है। उल्टे 2018 के चुनाव में ये विधायक कांग्रेस के उम्मीदवारों को हराकर विधायक बने। अब भले ही ये विधायक कांग्रेसी हो गए हों, लेकिन उनकी सोच कांग्रेस के साथ नहीं है। वैसे भी देखा जाए तो ये विधायक कांग्रेस के बजाए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के प्रति वफादार हैं। इस बार गहलोत किन परिस्थितियों में कांग्रेस की सरकार चला रहे हैं, यह वे ही जानते हैं। गहलोत को भी पता है कि बसपा वाले विधायक कभी भी कांग्रेस की नीतियों या कोई फार्मूले पर अमल नहीं करेंगे। यानी कांग्रेस का फार्मूला राजस्थान में ही ढेर हो जाएगा। वैसे भी अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति कैसी रहेगी यह आने वाला समय ही बताएगा।

निर्दलीय विधायकों की भी पीड़ा:-

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का राजनीतिक कौशल ही कहा जाएगा कि प्रदेश के सभी 13 निर्दलीय विधायक कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रहे हैं। जो निर्दलीय विधायक भाजपा की विचारधारा के हैं, वो भी अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास की दुहाई देकर सरकार से चिपके हुए हैं, लेकिन गहलोत सरकार के अंतिम दौर में निर्दलीय विधायक भी स्वयं ठगा सा महसूस कर रहे हैं। असल में जिन उम्मीदों के साथ निर्दलीय विधायकों ने समर्थन दिया, वे उम्मीदें पूरी नहीं हुई। एक भी निर्दलीय विधायक को मंत्री नहीं बनाया गया। संयम लोढ़ा, बाबूलाल नागर जैसे विधायकों को मुख्यमंत्री के सलाहकार पद का झुनझुना पकड़ा दिया है। इसमें इन सलाहकारों को कांग्रेस सरकार का विरोध करने की भी छूट है। संयम लोढ़ा जैसे अति महत्वकांक्षी विधायक को उम्मीद थी कि उन्हें पद मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अपने क्षेत्र में एसडीएम, डीएसपी तहसीलदार आदि पदों पर अपनी मर्जी के अधिकारियों की नियुक्ति के अलावा निर्दलीय विधायकों को कुछ भी नहीं मिला है। अनेक निर्दलीय विधायक जून माह में होने वाले राज्यसभा की चार सीटों के चुनाव का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। कांग्रेस अपने दम पर दो सीटें तो जीत सकती है, लेकिन तीसरी सीट के लिए निर्दलीय विधायकों के वोट की जरूरत होगी। हो सकता है कि उदयपुर के चिंतन शिविर के बाद सीएम गहलोत निर्दलीय विधायकों को लंच या डिनर पर बुलाएं। [/Responsivevoice]