पूंजीपतियों के देश में भुखमरी का सवाल….!

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भाजपा ने देश एवं प्रदेश में कोई काम नहीं किया है। सरकार की गलत नीतियों से देश भुखमरी के कगार पर पहुंच चुका है। सरकार ने सिर्फ पूंजीपतियों की तरफ ध्यान दे रही है। किसान व युवाओं के हित में भाजपा ने अब तक कोई कार्य नहीं किया है। इसकी वजह से किसान आंदोलन कर रहे हैं।भारत भुखमरी और अमीरी के कन्ट्रास्ट के दौर से गुजर रहा है। दोनों बिना ब्रेक के फर्राटे भर रहे हैं, एक तरफ तो ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति लगातार बदतर होती जा रही है वहीं दूसरी तरफ देश के चुनिंदा अरबपति बेहिसाब दौलत बना रहे हैं। इससे अधिक शर्मनाक क्या हो सकता है कि तरक्की के तमाम दावों के बावजूद भारत बड़ी सख्या में अपने नागिरकों के भोजन जैसी बुनियादी जरूरत पूरी करने में फिसड्डी साबित हुआ है। भूख आज भी भारत की सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। देश में भूख की व्यापकता हर साल नये आंकड़ों के साथ हमारे सामने आ जाती है जिससे पता चलता है कि भारत में भूख की समस्या कितनी गंभीर है। ऐसा नहीं है कि देश में इसके लिए जरूरी धन और संसाधनों की कोई कमी है, दरअसल समस्या मंशा, इरादे और सबसे ज्यादा आर्थिक व राजनीतिक दृष्टिकोण की है।

पिछले कुछ दशकों के दौरान भारत में अकूत धन सम्पदा का संचय हुआ है लेकिन यह मुट्ठीभर अरबपतियों के हाथों में सिमट कर रह गया है। असमान विकास की इस प्रक्रिया की वजह से देश की करोड़ों आबादी कुपोषण और भूख के दंश के साथ जीने को मजबूर है, इधर कोरोना महामारी की वजह से देश में असमानता की खाई और अधिक चौड़ी हो गयी है। कोरोना संकट ने भारत के वर्ग विभाजन को बेनकाब कर दिया है, इसने हमारे कल्याणकारी राज्य होने के दावे के बुनियाद पर निर्णायक चोट करते हुये क्रोनी पूँजीवाद के चेहरे को पूरी तरह से सामने ला दिया है। यह गरीबों के लिए आपदा और अमीरों के लिए आपदा में अवसर साबित हुई है। इसने पहले से ही हाशिये पर जी रहे देश की करोड़ों जनता को एक ऐसे गर्त में धकेल दिया है जहाँ से निकलने में दशकों लग सकते हैं।

भुखमरी का गर्त

वैश्विक भूख सूचकांक 2021 को देखने से पता चलता है कि इस मामले में भारत की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है, पिछले सात सालों से भारत इस सूची में लगातार फिसलता गया है। साल 2021 में भारत को कुल 116 देशों की सूची में 101वें स्थान पर रखा गया है जिसका मतलब है वैश्विक भूख सूचकांक में भारत से पीछे दुनिया के केवल 15 सबसे पिछड़े देश ही हैं। साथ ही भारत में भूख के स्तर को ‘खतरनाक’ बताते हुए ‘भूख की गंभीर’ श्रेणी में शामिल 31 देशों में भी रखा गया है। यही नहीं भारत की तुलना में छोटी अर्थव्यवस्था और कमजोर माने जाने वाले नेपाल (76), बांग्लादेश (76), म्यांमार (71) और पाकिस्तान (92) जैसे पडोसी देश भी इस मामले में हमसे बेहतर स्थिति में है जिसका अर्थ है इन देशों ने अपने नागरिकों को भोजन जैसी बुनियादी जरूरत उपलब्ध कराने के मामले में बेहतर काम किया है।

वैश्विक भूख सूचकांक साल 2006 से लगातार जारी की जा रही है इसमें विकसित देश शामिल नहीं किये जाते हैं। वैश्विक भूख के सूचकांक की गणना चार संकेतकों के आधार पर की जाती है जिसमें अल्पपोषण, शिशुओं में गंभीर कुपोषण, चाइल्ड स्टंटिंग और बाल मृत्यु दर शामिल है।साल 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से इस सूचकांक में भारत की रैंकिंग लगातार गिरती जा रही है। 2014 के रैंकिंग में भारत 55वें पायदान पर था। इसके बाद से गिरावट का यह सिलसिला लगातार जारी है।

2014 से 2021 के बीच वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की स्थिति

तालिका के आधार पर 2014 से 2021 के बीच ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति देखें तो वर्ष 2014 में भारत की रैंकिंग जहाँ 55वें स्थान पर थी वहीं 2021 में 101वें स्थान पर हो गयी है। हालांकि इस दौरान इस सूचकांक में शामिल देशों की संख्या भी घटती-बढ़ती रही है। 2014 की इंडेक्स में कुल 76 देशों को शामिल किया गया था जबकि 2021 की सूचकांक में कुल 116 देशों को शामिल किया गया है। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि इस दौरान पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे भारत के हमसाया मुल्कों ने अपनी रैंकिंग में काफी सुधार किया है।

2014 में भारत के 55वें स्थान के मुकाबले  बांग्लादेश और पाकिस्तान 57वें स्थान पर थे लेकिन आज 2021 में ये दोनों मुल्क भारत की तुलना में काफी बेहतर स्थिति में क्रमशः 76वें और 92वें स्थान पर हैं। इन दोनों देशों को भारत की तुलना में गरीब और छोटा माना जाता है साथ ही इन देशों के घरेलू राजनीती भी एक दूसरे को मुद्दा बनाकर संचालित होती है खासकर भारत और पाकिस्तान की। ऐसे में क्या घरेलू राजनीति में बात-बात पर पाकिस्तान को मुद्दा बनाने वाली सियासी पार्टियाँ भुखमरी के मुद्दे पर भारत के पाकिस्तान से पीछे छूट जाने को भी मुद्दा बनाने का साहस करेंगीं?

 भाजपा ने देश एवं प्रदेश में कोई काम नहीं किया है। सरकार की गलत नीतियों से देश भुखमरी के कगार पर पहुंच चुका है। सरकार ने सिर्फ पूंजीपतियों की तरफ ध्यान दे रही है। किसान व युवाओं के हित में भाजपा ने अब तक कोई कार्य नहीं किया है। इसकी वजह से किसान आंदोलन कर रहे हैं।

जैसा कि इस साल के शुरुआत में जापान के प्रतिष्ठित आर्थिक अखबार निक्केई एशिया में प्रकाशित एक लेख में रूपा सुब्रमण्यम ने बताया था भारत बहुत तेजी से गैंगस्टर पूंजीपतियों के देश में बदलता जा रहा है। आज दो गुजराती कारोबारियों अंबानी और अडानी का एकतरफा डंका बज रहा है, हर दिन उनकी संपत्ति में बेहिसाब बढ़ोतरी हो रही है। [/responsivevoice]

जावेद अनीस स्वतंत्र पत्रकार हैं और भोपाल में रहते हैं।