मासूम का सहमा चेहरा पथरा रहा

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डॉ0 अम्बरीष राय

उस मासूम का सहमा चेहरा पथरा रहा था. आँखों से डर लगातार बह रहा था. उसका आख़िरी रक्षक, उसका पिता रामराज्य की पुलिसिया लाठी की जद में था. बड़ा वाला दरोगा उसके पिता को बेहिसाब लाठियों से पीट रहा था. तो वर्दीधारी चेले चपाटे लाठियां चमकाते उसके पिता को दौड़ा रहे थे. मार खाते पिता की गोद में सहमी उस बिटिया पर पुलिस को तरस नहीं आया. नहीं तरस आया कानपुर देहात की उस बिटिया पर, जिसको इस सूबे के सूबेदार महंत जी नवरात्रों में पूजते हैं. और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो इस बिटिया के लिए “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” का राष्ट्रीय अभियान तक चला रखा है.

ये घटना दो दिन पुरानी है. ये घटना कानपुर देहात के अस्पताल में स्वास्थ्यकर्मियों के धरने से जुड़ी हुई है. इस लोमहर्षक घटना का वीडियो गुरुवार से ही सोशल मीडिया में वायरल हो गया था. रामराजी सरकार कान में तेल डालकर, आँखों पर भगवा चश्मा लगाकर सोने के अभिनय में थी. लेकिन तानाशाही जितनी मज़बूत दिखती है, उतनी ही कमज़ोर भी होती है. और इस बात के समर्थन में हालिया किसान आंदोलन की सफलता है. एक साल से ज़्यादा समय तक दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे किसानों को प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी से लेकर उनके भाड़े के लोगों तक, उनके मंत्रियों तक, संघ प्रशिक्षित लोगों से लेकर भाजपा के नेताओं तक, कोई चुप नहीं रहा. क्या कुछ अपमानजनक नहीं कहा गया. लेकिन गाँधीवादी किसानों ने ब्राण्ड मोदी की धज्जियां उड़ा दीं. कुछ भी अनाप शनाप करके, कुछ भी अनाप शनाप कहकर निकल जाने वाले मोदी यहां नहीं निकल पाए. कुशल सधे रणनीतिकारों से सुसज्जित ब्राण्ड मोदी भरभराकर गिर पड़ा. देश पर, किसानों पर थोपे गए तीनों कृषि कानून सरकार को वापस लेने पड़े.

उसी तरह जनदबाव में आई योगी सरकार ने लाठीबाज कोतवाल को निलंबित कर दिया. मैं इंतज़ार कर रहा था कि इस मामले में सरकार क्या रवैया अपनाती है? मैं सरकार के इस निर्णय की प्रशंसा करता हूं लेकिन सरकार का निर्णय सरकार की तरह ही है. कहने का मतलब बस इतना है कि कमबख़्त डिलीवर लेट होता है. ख़ैर बात बिटिया से शुरू हुई थी. बात प्रधानमंत्री तक पहुंच गई थी. बात “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान तक पहुंच गई थी. तो एक दिलचस्प बात बताता हूं. 2015 में मोदी सरकार ने “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” अभियान लांच किया. ये जनवरी की 22 तारीख़ थी.

इसको लेकर महाराष्ट्र भाजपा लोकसभा सांसद हीना विजयकुमार गावित की अध्यक्षता वाली महिला सशक्तिकरण कमेटी की नवीनतम रिपोर्ट सरकार की तरफ से जारी किये धन का सही उपयोग ना होने को लेकर निराश है. कमेटी ने गुरुवार को लोकसभा में इससे जुड़ी रिपोर्ट पेश की. शिक्षा के माध्यम से महिलाओं के सशक्तिकरण पर हीना गावित द्वारा पेश की गई ये पांचवी रिपोर्ट थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि योजना के लगभग 80 प्रतिशत धनराशि का उपयोग इसके विज्ञापन के लिए किया गया है, न कि महिलाओं के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दों पर. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2014-15 में इसकी शुरुआत के बाद से 2019-20 तक, इस योजना के लिए कुल 848 करोड़ रुपये मंजूर हुआ. 2020-21 में कोरोना काल को छोड़कर इस दौरान राज्यों को 622.48 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई.

कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार 2016- 2019 के दौरान जारी किए गए कुल 446.72 करोड़ रुपये में से, केवल मीडिया विज्ञापनों पर लगभग 78.91% खर्च किया गया.
अब आपने “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” वाले विज्ञापनों में में किसका चेहरा सबसे ज़्यादा देखा है, ये बताने की ज़रूरत तो नहीं है. और मुझ पर आक्रोशित होने वालों एक बात जमा ख़ातिर रखो कि डेटा सरकार का है. भाजपा नेत्री ही कमेटी की मुखिया हैं. और ये संसद के पटल पर ये रपट रखतीं वो ख़ुद निराश हैं. लेकिन झक सुफेद दाढ़ी में चेहरा चमकाता फ़कीर सपनों का सौदागर भी है और उम्मीदों का ख़ूबसूरत दुकानदार भी. जो बेचने की कला का मास्टर है. इस मास्टर से कुछ भी ख़रीदते हुए हम हिन्दुस्तानी लहालोट हुए जाते हैं.

विज्ञापनों में चमकने वाला ये चेहरा 13 दिसम्बर को वाराणसी आ रहे है. उत्सव मनाया जाएगा. प्रचार जीवी प्रधानमंत्री जी उत्सवधर्मी भी गज़ब के हैं. वाराणसी का हमारा सबसे बड़ा नौकर जो खुद को शाह समझता है. अमूमन सारे सरकारी नौकर ही समझते हैं. जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने नरेंद्र मोदी के आगमन के उपलक्ष्य में 13 दिसम्बर को पूरे जनपद के सभी विद्यालयों को बंद करने का आदेश दे दिया है. बिना सोचे समझे कि इसके साथ ही परीक्षा दे रहे कितने परीक्षार्थियों का पूरा शेड्यूल गड़बड़ हो गया है. डीएम शर्मा का यह आदेश अति उत्साह में आया है या फिर महंत जी की रामराजी सरकार के फ़रमान से लेकिन कुछ लोग बस गालियां दिए जा रहे हैं. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण उत्सव के नाम पर हो रहे इस मेगा इवेंट से बहुत कुछ साधा जा रहा है. देश से वीआईपी कल्चर के समापन का इवेंट खड़ा करने वाले कितने धूर्त हैं, इसका अंदाज़ा लगा पाना सामान्य लोगों के लिए आसान नहीं है.