पाकिस्तानी इतिहास का सबसे कमजोर प्रधानमंत्री….?

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इमरान सरकार भगवान भरोसे बैठी है। कोई बड़ा चमत्कार ही होगा जो इमरान सरकार को सरकार चलाने में मदद कर सकता है, अन्यथा इमरान सरकार का भविष्य त्रिशंकु की तरह लटकता दिखाई दे रहा है।पाकिस्तानी इतिहास का सबसे कमजोर प्रधानमंत्री होंगे इमरान खान।

संजीव ठाकुर -9 009 415 415
स्वतंत्र लेखक, रायपुर छत्तीसगढ़

किसी इतिहासकार ने कहा था कि मुगल सल्तनत के बादशाह हुमायूं ने लड़खड़ाते लड़खड़ाते हुकूमत की और लड़खड़ाते हुए मर भी गया। पाकिस्तान में यह कहावत चरितार्थ होती दिखती है। पाकिस्तान के इतिहास में 1947 के बाद 18 प्राइम मिनिस्टर आ चुके हैं। वहां की सुप्रीम कोर्ट या संवैधानिक समिति द्वारा केयर टेकर प्राइम मिनिस्टर के रूप में सात अन्य लोगों को बनाया गया था। 14 अगस्त 1947 को तत्कालीन गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना ने ब्रिटिश राज्य अलग होने के साथ-साथ भारत से अलग हुए नए पाकिस्तान मैं लियाकत अली खान को पाकिस्तान का प्रथम प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। उसके बाद कई प्राइम मिनिस्टर आये 1973 में जुल्फिकार अली भुट्टो नए प्रधानमंत्री के तौर पर सत्ता संभाली थी, पर दुर्भाग्य से सेना प्रमुख ने षड्यंत्र कर उनको फांसी की सजा सुना कर मृत्युदंड दे दिया था। तदुपरांत उनकी पुत्री बेनजीर भुट्टो चुनाव लड़कर 1990 तथा 93, 96 तक पाकिस्तान की हुकूमत संभाली थी, पर समय-समय पर उन्हें पद से अलग भी किया जाता रहा। उसके बाद बहुत महत्वपूर्ण चुनाव में जीत कर मियां नवाज शरीफ 90 से 93 तथा फरवरी 97 से 99 तक प्रधानमंत्री रहे। नवाज शरीफ पाकिस्तान के अच्छे हुक्मरान के रूप में गिने जाते हैं। उन्होंने फिर पाकिस्तानी सत्ता 1913 मैं संभाली थी, उन्हें भी सेना की सत्ता द्वारा अलग-अलग आरोप लगाकर अपदस्थ कर दिया गया तथा देश से बाहर जाने के लिए मजबूर कर दिया गया।

पाकिस्तान में प्रधानमंत्री के कमजोर होते ही सेना प्रमुख हमेशा सत्ता संभालती रही है एवं अलग-अलग समय पर अलग-अलग प्रधानमंत्रियों को सत्ता से अलग कर उन पर अभियोग लगाकर उन्हें पदच्युत किया जाता रहा है। उसी कड़ी में मशहूर क्रिकेटर और क्रिकेट का अत्यंत महत्वपूर्ण वर्ल्ड कप जिताने वाले कप्तान जनाब इमरान खान नियाजी को पाकिस्तान का संवैधानिक चुनाव जीतने के पश्चात देश का प्राइम मिनिस्टर नियुक्त किया गया,जहां उन्हें अब वहां की जनता तथा सांसदों द्वारा सिलेक्टेड प्राइम मिनिस्टर कहकर बुलाता है।

17 अगस्त 2018 के बाद जनता को उम्मीद थी कि नवाज शरीफ के कार्यकाल में जो महंगाई तथा कमियां थी उसे युवा दिखने वाले इमरान खान अपने प्रयासों से दूर करेंगे, पर इमरान खान ने क्रिकेट के अलावा कभी कुछ किया ही नहीं था। प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने कभी राजनीति की ही नहीं थी, फिर भला पाकिस्तान जैसे देश में हुकूमत करना किसी खिलाड़ी के बस की बात नहीं थी। ऐसे मौके पर जब चतुर घाग राजनीतिक के वहां सत्ता की कुर्सी को तीखे नजरों से ताक रहे हैं।

इमरान खान के द्वारा नियुक्त उनका मंत्रिमंडल इतना कमजोर, अज्ञानी है समय-समय पर उनके दिए गए वक्तव्य हादसे के पात्र की तरह प्रचारित प्रसारित किए जाते रहे हैं। पाकिस्तान के प्राइम मिनिस्टर बनने के बाद इमरान खान ने कुछ ऐसे फैसले लिए जिससे पाकिस्तान में महंगाई चरम सीमा पर है। पाकिस्तान आज की डेट में अरबों डॉलर की उधारी में डूबा हुआ है। पाकिस्तान में उत्पादन एकदम निचले स्तर पर पहुंच गया। कमर बाजवा के नेतृत्व में सेना स्वेच्छाचारी हो गई है।

पाकिस्तान का मीडिया यह बताता थकता नहीं की इमरान के नियंत्रण में अब सेना नहीं है एवं सेना प्रमुख से इमरान खान खुद डरते हैं। इधर विपक्षी 11 दलों ने लगातार रैली तथा प्रदर्शन करके इमरान खान का जीना हराम कर रखा है। पुलिस के पास अस्त्र-शस्त्र खरीदने के पैसे नहीं है। पुरानी चीजों से उन्हें काम चलाना पड़ा रहा है।पाकिस्तान सरकार के कर्मचारी बेलगाम हो चुके हैं। महंगाई बढ़ने के साथ-साथ सरकारी कर्मचारी भी अपनी तनख्वाह बढ़ाने के लिए सड़क पर आ गए हैं।

पाकिस्तान में मीडिया इमरान सरकार के खिलाफ आग उगलने का काम कर रहा है, इमरान के पास वर्तमान में ऐसा कोई मजबूत सलाहकार नहीं उपलब्ध नहीं है जो उन्हें गिरती आर्थिक स्थिति तथा राजनैतिक आंदोलनों को दबाने के लिए सही सलाह दे सके। कुल मिलाकर पाकिस्तान में इमरान खान के प्रधानमंत्री बनते ही ऐसा वातावरण निर्मित हो गया कि इमरान खान के हाथ से पाकिस्तान हुकूमत की बागडोर नियंत्रण से बाहर हो गई है। पाकिस्तान अब केवल चीन का पिछलग्गू बनकर रह गया है। विदेश नीति में पाकिस्तान चारों खाने चित् हो चुका है।

कोविड-19 के संक्रमण के समय पाकिस्तान की स्थिति और भी बदतर हो गई थी। ना तो बड़ी संख्या में अस्पताल ही थे और ना ही समुचित दवाइयों की व्यवस्था ही थी। कोविड-19 दी वैक्सीन के लिए इमरान खान और उनके संसद सदस्य भारत की ओर मदद के लिए मुंह उठाकर ताक रहे हैं। ऐसे में लड़खड़ाते इमरान सरकार के सामने विपक्षी नेताओं के सामने घुटने टेकने के अलावा कोई उपाय नहीं बच रहा है। अब इमरान सरकार भगवान भरोसे बैठी है। कोई बड़ा चमत्कार ही होगा जो इमरान सरकार को सरकार चलाने में मदद कर सकता है, अन्यथा इमरान सरकार का भविष्य त्रिशंकु की तरह लटकता दिखाई दे रहा है।