हर महानगर में कई नगर निगम हों

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श्याम कुमार

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने देश में तमाम बुनियादी एवं महत्वपूर्ण ढांचागत परिवर्तन किए। उदाहरणार्थ, निरर्थक योजना आयोग की जगह सार्थक नीति आयोग की स्थापना की। बजट को फरवरी के अंत में पेश किया जाता था, जिसे एक फरवरी को पेश किया जाना शुरू किया गया। लेकिन अभी भी अनेक महत्वपूर्ण बड़े परिवर्तनों की बहुत आवश्यकता है।आजादी के बाद हमारे यहां जो मूलभूत परिवर्तनों की आशा की गई थी, उसमें ‘नगर सरकार’ की अवधारणा भी शामिल थी। पश्चिम में ‘नगर सरकार’ का स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली है। भारत में पश्चिम की नकल करने की अंधी दौड़ शुरू हुई, जो अब तक चल रही है। किन्तु वहां ‘नगर सरकार’ के स्वरूप को हम अपने यहां लागू नहीं कर सके। इसका पहला मुख्य कारण यह था कि हमारे यहां विगत 70 वर्षों में राजनीति बेहद गंदी हो गई । वह जनता की सेवा के बजाय अपनी व अपने परिवार की सेवा तक सीमित हो गई।


दूसरा मुख्य कारण यह था कि देश में जवाहरलाल नेहरू ने भ्रष्टाचार की जो शुरुआत की थी, वह पिछले दशकों में इतना विकराल रूप ले चुका है कि जड़ तक प्रवेश कर चुका है। हमारे यहां भ्रष्टाचार अब रग-रग में समा गया है तथा स्थिति यह हो गई है कि स्वयं भगवान आकर देश की बागडोर संभालें तो भी भ्रष्टाचार को समाप्त कर पाना उनके लिए भी असंभव होगा।


प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने केंद्र में भ्रष्टाचार की समाप्ति का बीड़ा उठाया, किन्तु वह भी सिर्फ अपने मंत्रियों, सांसदों एवं उच्च नौकरशाही तक ही उसे समाप्त कर सके।हमारे यहां लोकतंत्र का जो स्वरूप है, उसमें आठ वर्षों में इससे अधिक कर पाना संभव ही नहीं हो सकता है।यही कारण है कि हमारे यहां ‘नगर सरकार’ की अपेक्षित अवधारणा नहीं लागू हो सकी।


भ्रष्टाचार निचले स्तर पर भी भयंकर रूप ले चुका है। आम जनता निचले स्तर के भ्रष्टाचार से ही प्रभावित होती है और उसे यातनाएं मिलती हैं।‘नगर सरकार’ की तरह हमारे यहां ‘ग्राम सरकार’ का विचार भी लागू किया गया, लेकिन भ्रष्टाचार के कारण ग्रामों में वह ढांचा भी बिलकुल चरमरा रहा है।मोदी सरकार ने आठ वर्षों में जितने जनकल्याणकारी कार्य किए हैं एवं जितनी अधिक योजनाएं लागू की हैं, वैसा विगत सत्तर वर्षों में कभी सोचा भी नहीं जा सकता था, लेकिन वो समस्त योजनाएं एवं कार्यक्रम ग्रामीण निकायों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण आम जनता तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। चाहे ग्रामप्रधान आदि निर्वाचित जनप्रतिनिधि हों अथवा ग्रामीण क्षेत्रों की नौकरशाही हो, अधिकांश धन उनकी जेबों में चले जाने की शिकायतें मिलती हैं तथा आम जनता लाभ से वंचित हो रही है।


नगरों में जो स्थानीय निकाय एवं महानगरों में नगर निगम हैं, वे भी आम जनता के लिए बिलकुल निरर्थक सिद्ध हो रहे हैं और इसका भी मूल कारण उनमें व्याप्त घोर भ्रष्टाचार है। जनता से मिलने वाली टैक्स की धनराशि तथा सरकार से प्राप्त होने वाला धन चलनी के पानी की तरह भ्रष्टाचारियों की जेब में चला जाता है। प्रदेशभर के अखबार ऐसे भ्रष्टाचारों की खबरों से भरे रहते हैं।
बसपा एवं सपा के शासनकाल में तो स्वयं सरकार भ्रष्टाचार से बुरी तरह ग्रस्त थी तथा नगर विकास मंत्री भ्रष्ट अफसरों एवं कर्मचारियों के संरक्षक सिद्ध हो रहे थे। इसलिए विगत वर्षों में स्थानीय निकायों की स्थिति बिगड़ती गई, जिसके परिणामस्वरूप नगर भी भीषण रूप से दुर्दशाग्रस्त हो गए।यही कारण है कि पिछले एक साल में प्रदेश के नगरों की स्थिति योगी-राज में भी नहीं सुधर पा रही है। इसके लिए एक ओर तो ईमानदार एवं जनकल्याण के लिए समर्पित नौकरशाही को स्थानीय निकायों की बागडोर सौंपनी होगी, दूसरी ओर उनके ढांचे में भी अमूल परिवर्तन करना होगा। आबादी में वृद्धि के साथ ही लोगों की समस्याओं एवं शिकायतों की संख्या भी बढ़ती जा रही है, जिनका निराकरण नहीं हो पाता है तो जनअसंतोष उसी पैमाने पर बढ़ता जाता है।


उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकायों एवं नगर निगमों का जो वर्तमान रूप है, वह अतीत में कई दशकों की अवधि में विभिन्न परिवर्तनों के दौड़ से गुजरते हुए निर्मित हुआ है। समय के आवश्यकतानुसार उसके ढांचे में परिवर्तन होते रहे हैं। इस समय तो प्रदेश में १७ नगर निगम हो गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी की ‘स्मार्ट सिटी’ की योजना भी चल रही है, जिसके अंतर्गत प्रदेशों के काफी नगरों का कायाकल्प होना है। लेकिन भ्रष्टाचार एवं घिसीपिटी कार्यशैली के कारण सफलता के अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहे हैं। विगत सत्तर वर्षों में हमारी मानसिकता कोल्हू के बैलवाली बन गई है, जिसकी आंखों पर पट्टी बंधी रहती है और वह कोल्हू के चारों ओर चक्कर लगाता हुआ घूमता रहता है। यह स्थिति हो गई है कि प्रधानमंत्री मोदी ने जब देश में स्वच्छता का अभियान शुरू किया तो विपक्षी दलों ने उसकी बहुत खिल्ली उड़ाई।


मोदी ऐसे युगांतरकारी राजनेता हैं, जो देश की दशा के साथ दिशा भी बदलना चाहते हैं। किन्तु घिसेपिटे माहौल के आदी होने के कारण मोदी की सराहना करने के बजाय उनकी आलोचना की जाती है और मजाक उड़ाया जाता है।
योगी सरकार को चाहिए कि स्थानीय निकायों एवं नगर निगमों के ढांचे में बड़ा परिवर्तन करे। नगर सरकार की अवधारणा सही अर्थों में लागू होनी चाहिए। अरविंद केजरीवाल जब दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने एक बहुत बड़ी घोषणा यह की थी कि अब नगरों में जनता के कल्याण के कार्यक्रम अफसर वातानुकूल कमरों में बैठकर नहीं बनाएंगे, बल्कि हर क्षेत्र में वहां की जनता अपने क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुरूप कार्यक्रम बनाएगी और उसके सहयोग से अधिकारी वे कार्यक्रम लागू करेंगे। इसी से मैंने उस दौरान अपने दर्जनों आलेखों में अरविंद केजरीवाल की भूरिभूरि सराहना की थी और उन्हें सच्चे लोकतंत्र का वाहक बताया था। लेकिन चूंकि केजरीवाल के दिल-दिमाग में नेहरू वंश की तरह धूर्तता भरी हुई थी, इसलिए वह पुराने ढर्रे पर ही चलने लगे।


मुख्यमंत्री योगी को चाहिए कि प्रदेश के नगर निगमों में नगर आयुक्त के पद आवश्यकतानुसार तीन या तीन से अधिक कर दें। नगर को कई हिस्सों में बांट दिया जाना चाहिए तथा हर हिस्से का मुखिया एक नगर आयुक्त हो। वह नगरआयुक्त अपने हिस्से का सर्वोच्च अधिकारी होना चाहिए।वर्तमान समय में एक नगरआयुक्त होने से वह किसी भी रूप में कारगर नहीं हो पाता है। इतने बड़े नगर से आनेवाली शिकायतों की संख्या इतनी अधिक होती है कि उन्हें पढ़ पाना उसके लिए असंभव होता है। वह उन पत्रों को देख भी नहीं पाता है और पढ़ता है तो मात्र एक-दो लाइन से अधिक पढ़ने का उसके पास समय नहीं होता है।

इसीलिए यदि नगर को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर उनका पूर्णाधिकारप्राप्त अलग-अलग नगरआयुक्त बना दिया जाय तो जनता और उसके बीच आसानी से तारतम्य स्थापित हो सकेगा। उत्तर प्रदेश के हर महानगर में एक नगर निगम होना चाहिए, जिसमें कई नगर आयुक्त तैनात हों। उन नगर आयुक्तों के ऊपर हर नगर निगम में एक मुख्य नगर आयुक्त होना चाहिए। वह मंडलायुक्त स्तर का हो तथा उसका काम नगर आयुक्तों के बीच सामंजस्य स्थापित करना, उनके कार्यों की कड़ी निगरानी करना तथा शासन से सम्पर्क कायम रखना होना चाहिए।