अपने से ज्यादा दूसरों के बारे में सोचे युवा-रंजन कुमार

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सीनियर आईएएस रंजन कुमार लखनऊ मंडल के मंडलायुक्त हैं। श्री कुमार का चयन 2000 बैच में हुआ था। विभिन्न जिलों में विभिन्न पदों पर रहने के बाद रंजन कुमार मौजूदा समय में राजधानी लखनऊ में तैनात है। गोरखपुर महोत्सव की शुरुआत भी रंजन कुमार ने गोरखपुर जिलाधिकारी रहते हुए की थी।रंजन कुमार मूलतः नालन्दा बिहार के निवासी हैं।आईएएस के रूप में सहायक मजिस्ट्रेट/सहायक कलेक्टर के रूप में राम नगरी अयोध्या से कार्य शुरू किया था।इसके बाद ज्वॉइंट मजिस्ट्रेट कानपुर नगर,अलीगढ़ रहे और मुख्य विकास अधिकारी गोरखपुर के साथ जिलाधिकारी चित्रकूट,औरया,बलिया, बांदा, बागपत, प्रतापगढ़, शामली, अमरोहा, गोरखपुर जैसे कई जनपदों में काम किया। शासन में ग्राम्य विकास, राजस्व, सिंचाई, चिकित्सा शिक्षा तथा वर्तमान में सचिव लोक निर्माण विभाग के पद पर कार्यरत थे। कमिश्नर के रूप में इन्हें मिर्जापुर के बाद लखनऊ मंडल की सेवा करने का अवसर मिला है।प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाली ‘अभ्युदय कोचिंग’ का शुभारम्भ रंजन कुमार के प्रयासों से ही हुआ है।उनके जीवन से जुड़े किस्से और सफर पर शुभांकर भानु ने उनसे बात की, पेश है बातचीत का पूरा अंश…..

बचपन कैसी परिस्थितियों में बीता-

प्राइमरी स्कूल से शिक्षा ग्रहण की। ज़्यादा समय घर पर ही बीतता था, मोहल्ले में दोस्तों के साथ खेलना। मेरी माँ गायत्री पीठ से जुडी थी तो बचपन में वहां भी काफी जाना होता था जहाँ हमल लोग पूजा पाठ करते थे। खेल कूद से काफी जुड़ा रहा। क्रिकेट आदि जैसे खेल रोज़ ही खेलता था। मोहल्ले में गणित के क्विज़ भी करता था।

आपकी पारिवारिक पृष्टभूमि कैसी रही-

हमारे पिताजी पीसीएस अफसर थे, बिहार के गया में वो ड्यूटी मजिस्ट्रेट के पद पर तैनात थे, जिस कारण से बचपन का ज़्यादातर समय गया में ही बीता। पिता जी काफी सामाजिक थे जिस कारण हमारे गाँव के 30 – 40 लोग घर पर ही आकर रहते थे जिससे गाँव के लोगो की समस्याओं के बारे में पता चलता था। इसी वजह से मैं ग़ांव से भी हमेशा जुड़ा रहा।

आपने शिक्षा कहा से ग्रहण की-

गया के हरिदास सेमिनरी स्कूल से 10 वी पास की। इसके बाद गुमला, जहाँ पिता जी एसडीएम भी थे वहां के कार्तिक ओराओं कॉलेज से 12 वी की पढाई पूरी की। इसके बाद मैंने 1994 से 1998 के बीच आईआईटी कानपूर से बीटेक किया। उसके बाद 2000 के बैच में मेरा चयन आईएएस के तौर पर हो गया।

पढाई के अलावा आपकी और क्या हॉबी रहीं-

मुख्य फोकस तो हमेशा से ही पढाई पर रहा लेकिन खेल कूद में भी दिलचस्पी थी। हम क्रिकेट के बहुत दीवाने थे। हालांकि कभी क्रिकेटर बनने का नहीं सोचा क्यूंकि मुझे हमेशा से ही अधिकारी बनना था।

आपको आईएएस बनने की प्रेरणा कहा से मिली-

अधिकारी बनने की प्रेरणा तो पिता जी से ही मिली। पापा अधिकारी थे तो एक्सपोज़र ज़्यादा मिला, न्यायालय वगेरा अक्सर जाता था उनके साथ जिसे देखकर अधिकारी बनने की ही सोचता था। जिससे लोगो की सहायता कर सकूं।

आपकी पहली पोस्टिंग कहा हुई-

करियर की शुरुआत तो २ साल के प्रोबेशन पीरियड से हुई। जिस दौरान हम लोग जॉइंट मजिस्ट्रेट होते है। शुरआत में मैं फैज़ाबाद में एक ट्रेज़री विभाग में पोस्टेड था जिसमे मुझे मेरे कार्यो के लिए मसूरी में बेस्ट लॉ एंड ऑर्डर अवार्ड भी दिया गया था। शुरूआती दौर में काफी कुछ सीखने को मिला। फैज़ाबाद में पोस्टिंग के दौरान मैंने फिल्ड पर ज़्यादा काम किया।

सबसे चुनौतीपूर्ण पोस्टिंग कौनसी रही-

जब पहली बार गोरखपुर का सीडीओ बना तो काफी सारी पैसे से सम्बंधित फाइलें सामने आती थी जिसमे समझ नहीं आता था कि कैसे निर्णय ले। फिर धीरे धीरे मैंने चीज़ो को समझना शुरू किया, विभिन्न प्रोजेक्ट पर मैं खुद फिल्ड पर जाता था और देखता था कि चीज़े बिलकुल सही हो। इसी पोस्टिंग के दौरान हम लोगो ने सोचा कि कैसे लोगो में ऊर्जा लाई जाये, जसिके बाद एक फॉर्मेट तैयार करके हम लोगो ने गोरखपुर महोत्सव की शुरआत की। इसपर मैंने एक गोरखपुर गैज़ेट भी लिखा।

लखनऊ कमिश्नर के तौर पर आपकी क्या उपलब्धि रहीं-

जब मैंने यहाँ ज्वाइन किया तब कोरोना काल चल रहा था, जोइनिंग से पहले मैं यहाँ का नोडल अफसर था। पोस्टिंग के तुरंत ही बाद मैं एक्शन में आगया था। तमाम चिकित्स्कों से मिलकर मैंने 36 प्रकार के सांइटिफिक इंटरवेंशन लगाए। जिसके परिणाम स्वरूप हम लोग ने कोरोना को काबू किया। कोविड के चलते मैं आते ही काम में लग गया था। हमलोग ने कण्ट्रोल रूम बनाये, एसओएस के व्हाट्सअप ग्रुप बनाये। कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की व्यवस्था की। पूरे जिले में सिलेंडर के मूवमेंट को मैनेज किया।

पहले के युग और डिजिटल युग में क्या अंतर लगता है-

डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से बड़े स्तर पर किये जाने वाला काम आसान हो जाता है, टेक्नॉलजी काफी मदद करती है। मैं जब पीडब्ल्यूडी में था तब हमने एक सॉफ्टवेयर बनाया था जिसकी मदद से ठेकेदारों के डाटा और कामो को हमने डिजिटिलाइज किया, जिससे हमें काफी सहयोग मिला। इसके माध्यम से हमने सरकार के हज़ारो करोड़ रुपये बचाये। कोरोना में भी डिजिटल प्लेटफॉर्म ने काफी सहायता की। बिना टेक्नॉलजी के ये सब असंभव होता।

जीवन के सफर से जुड़े कुछ किस्से –

ऐसे कई किस्से है जो कभी नहीं भूलता। जब मई घटपुर में एसडीएम था तो एक दिन में लगभग 650 ट्रक पकड़ता था। कई ड्राइवर हमे कुचलने की भी कोशिश करते थे। जब मैं गोरखपुर का डीएम था तब एक ट्रेन के एक्सीडेंट के बाद मुझे कॉल आया कि “मैं अपने भाई से बात कर रहा था एकदम से फोन कट गया और काफी ज़ोर से ट्रेन की आवाज़ आयी, कोई दुर्घटना हो सकती है, ट्रेन गोरखपुर के ही आस पास थी। ” ये बात सुनते ही में तुरंत 100 एम्बुलेंस को लेकर ट्रेन ढूंढ़ने निकल पड़ा, ढूंढते ढूढंते मैं घटनास्थल पर पहुँच गया। मै वहां पहुंचे वाला पहला व्यक्ति था, रेलवे की सूचना से पहले ही मैं वहां पहुंचा और लोगो की मदद की। इस कार्य के लिए मुझे मंत्री जी से बधाई भी दी गयी थी। ऐसे ही मैंने एक भूकंप के दौरान कैम्प लगाकर 17000 लोगो की सहायता की थी। मेरी हमेशा से एक आदत है कि किसी भी आपदा में 24 घंटे के अंदर मै लोगो तक सहायता राशि का चेक पहुंचा देता हूँ।

युवाओं को क्या सन्देश देना चाहेंगे-

मैं युवाओं को ये सन्देश देना चाहूंगा कि युवा दुनिया को लीड करने की काबिलियत रखते है। एक समय पर भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था, हमे भारत को वैसा ही बनाना है। जीवन में आप जो भी बने बेस्ट बने। आज इनोवेशन का समय है, नए दिमाग से अच्छा कोई नहीं सोच सकता। युवाओं को इंटरप्रेन्योर बनना चाहिए और नए विचारों व आइडिया को बढ़ाना चाहिए। समाज में बदलाव के लिए सोचे। अपने बारे में कम और दूसरो के बारे में ज़्यादा सोचे। 80 प्रतिशत समय दूसरो को दें और 20 प्रतिशत समय अपने शरीर और मन को दें।….[/Responsivevoice] न्यूज़ ऑफ इंडिया